रांची। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए रामटहल चौधरी के साथ क्या गुगली हो गयी? क्या दल बदलना रामटहल चौधरी के लिए घाटे का सौदा बन गया? ये सवाल इसलिए खड़ा हुआ है, क्योंकि भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए रामटहल चौधरी का दर्द छलका है। टिकट नहीं मिलने पर नाखुश पूर्व सांसद ने कहा है कि वो लोकसभा चुनाव लड़ने की शर्त पर पार्टी में शामिल हुए थे, अब जबकि पार्टी में ही बागी आवाज उठने लगा है, तो फिर आखिर कांग्रेस कितनी मजबूती के साथ रांची में चुनाव लड़ पायेगी।

दरअसल कांग्रेस ने सभी को चौकाते हुए रांची लोकसभा सीट से सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन इससे कांग्रेस में ही खींचतान चल रही है।पूर्व सांसद रामटहल चौधरी ने बयान दिया है कि मैं कांग्रेस में झंडा ढोने नहीं बल्कि रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की शर्त पर शामिल हुआ था। लेकिन कांग्रेस ने सुबोध कांत सहाय के बदले उनकी बेटी यशस्विनी सहाय को उम्मीदवार बना कर जीती हुई सीट को हार गई है। पूरे राज्य में इंडी गठबंधन हारने की स्थिति में है।

रामटहल चौधरी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की ओर से उन्हें बुलाया गया। रांची लोकसभा सीट का फीडबैक लिया गया. फिर टिकट का आश्वासन दिया गया. कहा गया कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. इसके बाद ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। उन्हें टिकट नहीं मिलने से उनके समर्थकों व कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, यह पूछे जाने पर कि अब आपका अगला कदम क्या होगा? क्या कांग्रेस पार्टी छोड़ देंगे? उन्होंने कहा कि इस संबंध में कार्यकर्ता व समर्थकों के साथ बातचीत कर उचित निर्णय लेंगे।

जाहिर है पूर्व सांसद के ये तेवर रांची सीट पर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रही है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि इस चुनाव में किसी पार्टी का कैडर बन कर काम नहीं करेंगे. कहा कि हम कांग्रेस पार्टी में चुनाव लड़ने गये थे, झंडा ढोने के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण ही उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ा था. चुनाव लड़ने के लिए वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। उन्होंने बताया कि इससे पहले उनकी मुलाकात नीतीश कुमार से हुई थी। उन्होंने भी रांची सीट से टिकट दिलाने का भरोसा दिया था, लेकिन बाद में जदयू एनडीए खेमे के साथ चले जाने के कारण बात आगे नहीं बढ़ पायी।

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