खूंटी। आदिवासियों के उत्थान का मुद्दा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज प्रधानमंत्री के सामने उठाया। आदिवासी गौरव दिवस पर खूंटी फुटबाल मैदान में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में कहा कि आज तक आदिवासी समाज को उचित जगह नहीं मिली। उन्होंने कहा कि झारखण्ड एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है। मैं खुद भी आदिवासी समाज से आता हूँ। मुझे गर्व है आदिवासी होने पर। आज केंद्र सरकार ने पूरे देश को इस कार्यक्रम से जोड़ा है। भगवान बिरसा मुंडा, इस राज्य में ही नहीं पूरे देश में पूजे जाते हैं। पूरा झारखण्ड वीरों की धरती रही है, चाहे वो भगवान बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो, हो या तेलंग खड़िया जैसे वीर।

आदिवासी समाज सदियों से अपने हक-अधिकार की लड़ाई लड़ता रहा है, चाहे वो अंग्रेजों से हो या महाजनों से। हमेशा फांसी पर लटकने के लिए भी तैयार रहा है।लेकिन दुर्भाग्य की बात है इतिहासकारों ने आजतक हम आदिवासियों को जगह नहीं दी। आज यहाँ से पीवीटीजी के लिए विशेष घोषणा हो रही है। यह समाज हम आदिवासियों के सबसे पिछड़े समाज से आता है। पीवीटीजी का उत्थान हम सभी का दायित्व है। यह सभी के लिए चुनौती है कि अगर पीवीटीजी नहीं बचे तो हम सभी आदिवासी भी अति सम्वेदनशील वर्ग में आ जायेंगे।

बहुत विचित्र बात है कि आज हम चांद पर पहुंचे हैं पर समाज के अंदर आदिवासी, पीवीटीजी, दलित, पिछड़ी जाति, अति पिछड़ी जाति आदि हक-अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। आज के इस युग मे यह अंतर पट जाना चाहिए। मैं एक आदिवासी राज्य का नेतृत्व कर रहा हूँ। हम आज विकास के लाइन में खड़े अंतिम व्यक्ति की बात करते हैं,मगर दुर्भाग्य से वह कागजों और अखबारों में ही सिमटा दिखता है। सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के जरिये आज झारखण्ड सरकार की आँखे, सरकार की आवाज, राज्य के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रही है और हर एक व्यक्ति को विकास की कड़ियों से हम जोड़ रहे हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी आप यहाँ आये हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आदिवासी विकास के जो लक्ष्य है, जिसे लेकर आज इस कार्यक्रम को लेकर आपने पूरे देश को जोड़ा है, यह आदिवासी समाज के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।

झारखण्ड कई मायनों को लेकर आगे बढ़ा है। चाहे खनिज संपदा हो, चाहे खिलाड़ियों को लेकर हो, या किसी अन्य विषय को लेकर हो। प्रधानमंत्री जी, हम यह आग्रह करना चाहेंगे कि यहाँ बड़े पैमाने पर आदिवासी जो जंगलों में बसते हैं उन्हें विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है। खनिज सम्पदाओं को निकालने के लिए बड़े पैमाने में कई वर्षों से इनका विस्थापन होता रहा है। मैं आशा और उम्मीद करूंगा कि इस क्षेत्र में बसने वाले लोगों के प्रति भी ऐसी विशेष कार्ययोजना तैयार की जाय, जहाँ हमारे आदिवासी भाई-बहन अपने जल-जंगल-जमीन के साथ अपने आप को समग्र विकास की कड़ियों से जोड़ सके। उलिहातू की इस पावन भूमि में आप पहली बार आये हैं। इसी आशा उम्मीद के साथ कि आज के कार्यक्रम से आदिवासी समाज आगे बढे, आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ।

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