रांची । बजट सत्र के दौरान विधायक राज सिन्हा ने स्वास्थ्य विभाग से सवाल क्या पूछा स्वास्थ्य विभाग परेशान हो गई। ना तो इनका जवाब विभाग दे पाया न मंत्री कोई सकारात्मक आश्वासन दे पाए। मामला दरअसल धनबाद के चिकित्सा व्यवस्था से जुड़ा है। धनबाद की गिरती चिकित्सा व्यवस्था पर विधायक राज सिंह ने चिंता व्यक्त की।

क्या है मामला

विभाग के नियमानुसार प्रत्येक 3 वर्ष में चिकित्सक के स्थानांतरण का प्रावधान है, वो भी इसलिए क्योंकि विभाग ये मानता है की एक ही स्थान पर जमे रहने से चिकित्सक सरकारी कामों से ज्यादा निजी धनोपार्जन पर ज्यादा ध्यान देंगे। आखिर ये सवाल उठना लाजिमी है की जब 3 वर्षो से स्थानांतरण के प्रावधान है तो एक ही जिले में 10 वर्षों से चिकित्सक एक ही जिले में कैसे पदस्थापित है ।

विधायक राज सिन्हा ने पूछा सवाल

राज सिन्हा ने पूछा ये सवाल

टीकाकरण में धनबाद पिछड़ रहा है साथ ही सदर अस्पताल की पैथोलॉजी रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है। अतः लोक महत्व के इस बिंदु पर सदन के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए राज सिन्हा ने यह मांग की कि जो भी चिकित्सा पदाधिकारी नियम विरुद्ध एक ही जिले में निर्धारित समय से अधिक समय से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं उन्हें तत्काल वहां से हटाया जाए एवं उनके कार्यकाल के क्रियाकलापों की जांच एवं अभिलंब नए चिकित्सा पदाधिकारी को पदस्थापित किया जाए जिससे जिले में चिकित्सा व्यवस्था बेहतर हो सके।

धनबाद में स्वास्थ्य विभाग बनता जा रहा है राजनीति का अड्डा

आपको बता दे की कुछ ही दिन पूर्व जिला स्तरीय के पदाधिकारी के तानाशाही आदेश पर खूब विरोध हुआ था जिसके बाद उन्हें अपना आदेश वापस लेना पड़ा था। उसे अपनी आन पर लेते हुए सदर अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक पर प्रतिनियुक्ति का आदेश विभाग से प्राप्त कर लिया। सदर अस्पताल के साथ साथ जिले भर की प्रतिरक्षण और अन्य चिकित्सा व्यवस्था सुधरने के बजाय लगातार गिरती जा रही है।

जिले भर के चिकित्सक रहते है निजी प्रैक्टिस में मस्त

सरकारी चिकित्सक पर सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधा बहाल करने की जिम्मेदारी है परंतु जब जिला स्तरीय पदाधिकारी अपनी निजी क्लीनिक चमकाने में मस्त रहते है तो अपने अधीनस्थ चिकित्सक को भी निजी क्लीनिक में प्रेक्टिस पर लगाम लगाने में असमर्थ रहते है। नतीजा ड्यूटी समय में भी निजी प्रैक्टिस करते हुए चिकित्सक को साफ देखा जा सकता है।

अपने क्लीनिक में रोगी लाने के लिए कर्मियों को देते रहते हैं प्रलोभन

प्राप्त जानकारी के अनुसार समय समय अपने अधीनस्थ कर्मियों पर अपने निजी क्लीनिक में रोगी लाने और भेजने के लिए दबाव भी बनाया जाता है, रोगी लाने के एवज में कमीशन की भी बात कही जाती है। इसका सबसे ज्यादा असर उन रोगी पर पड़ता है जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक तंगहाली से गुजर रहे होते है। जो सुविधाएं सरकारी अस्पताल में मिल सकती थी उसके लिए भी उसे निजी क्लीनिक में भुगतान करना पड़ता है।

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