रांची। पूरा झारखंड जिसे टाईगर के नाम से जानता था, वो इतना जल्दी खामोश हो जायेगा? किसी को यकीन नहीं था। 6 अप्रैल की वो मनहूस तारीख थी, सूबे के शिक्षा मंत्री और डुमरी के लाड़ले विधायक जगरनाथ महतो ने इस दुनिया को अलविदा कर दिया। उनकी मौत ने कईयों को हैरत में डाल दिया। लोग उनकी मौत को लेकर तरह-तरह के सवाल भी पूछ रहे हैं, कि जब जगरनाथ महतो का कोरोना की वजह से खराब हो चुका फेफड़ा बदल दिया गया था, तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसकी वजह से जगरनाथ महतो ने इतनी जल्दी दुनिया छोड़ दी।

खुद एक इंटरव्यू में शिक्षा मंत्री ने अपनी सेहत के बारे में बताया था कि वो डाक्टरों के बताये सलाह पर अमल करते हैं, हालांकि कभी-कभी मन नहीं भी मानता है। हालांकि उन्हें जानने वाले लोग कहते हैं कि वो रांची में रहें या फिर अपने क्षेत्र में, उनकी दिनचर्या काफी संतुलित होती थी। सुबह 4 से 5 बजे उठना और मार्निंग वाक करना उनकी दिनचर्या थी। हल्की एक्सरसाईज भी वो करते थे। खाना भी वो बिल्कुल नियमानुसार ही लेते थे।

फेफड़ा ट्रांसप्लांट के बाद कितनी लंबी होती है आयु

हालांकि लंग्स ट्रांसप्लांट में शामिल कार्डियोवस्कुलर एंड थोरासिस सर्जरी के प्रोफेसर राणा संदीप सिंह ने मीडिया में एक सवाल पूछा गया था कि लंग्स ट्रांसप्लांट के बाद मरीज कितने साल तक जीवित रह सकता है तो उनका जवाब था कि 50 प्रतिशत लोग पांच साल तक जीवित रहते हैं। जबकि 50 प्रतिशत इससे कम साल तक जीवित रह पाते हैं। जब उनसे पूछा गया कि जब इतना रिस्क है तो ट्रांसप्लांट क्यों कराया जाए। उनका कहना था कि ट्रांसप्लांट से मरीज की जिंदगी बेहतर होती है। जब फेफड़े काम नहीं करते तो मरीज की जिंदगी आक्सीजन के सहारे चलती है। और रिस्क फैक्टर मरीज पर भी निर्भर करता है। कुछ मरीज पांच साल से ज्यादा वक्त जीते हैं।

10 नवंबर 2022 को हुआ था फेफड़ा का प्रत्यारोपण

जगरनाथ महतो लंबी बीमारी से ग्रसित थे। 10 नवंबर, 2020 को उनका लंग्स ट्रांस्पलांट किया गया था। बीच में उनकी सेहत ठीक थी, इस बीच वह राजनीतिक तौर पर खूब सक्रिय रहे। अचानक 14 मार्च की सुबह उनकी तबीयत खराब हुई उन्हें एयर एम्बुलेंस से चेन्नई ले जाया गया जहां उनका निधन हो गया कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान संक्रमित हुए। इस संक्रमण का असर इतना हुआ कि शिक्षा मंत्री का लंग्स 95% संक्रमित हो गयी । 28 सितंबर से 22 दिनों तक रांची के अस्पतालों में 100 फीसदी तक हाई फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ वेंटिलेटर पर रखा गया था। 19 अक्टूबर को एयर लिफ्ट कर इन्हें एकमो सपोर्ट (कृत्रिम लंग्स) पर एमजीएम चेन्नई ले जाया गया। यहां स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम ने 10 नवंबर को फेफड़ा ट्रांसप्लांट किया था। इस दौरान वे 22 दिनों तक एकमो सपोर्ट पर रहे थे। स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार होने लगा और 111 दिन बाद शिक्षा मंत्री स्वस्थ हो गये।

डाक्टर ने दी थी सख्त हिदायत


डॉक्टर तो सलाह देते हैं लेकिन मेरा मन नहीं मानता है। इसके बाद उन्होंने अपनी दिनचर्या भी बताते हुए कहा था लेकिन मैं सुबह चार बजे उठ जाता हूं, छह बजे मॉर्निंग वॉक पर निकल जाता हूं। सेहत का ध्यान रख रहा हूं।

14 मार्च को कराया गया था चेन्नई शिफ्ट


1 अप्रैल 2022 को अचानक उनकी तबीयत फिर खराब हुई। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अचानक खराब हो गयी. घबराहट और बेचैनी के बाद उनको नजदीक के अस्पताल एचइसी-पारस अस्पताल में 11:25 बजे लाया गया. यहां उनकी प्रारंभिक जांच की गयी, जिसमें ऑक्सीजन का स्तर नीचे पाया गया। सीटी स्कैन सहित सभी प्रकार की जांच की गयी, जिसमें फेफड़ा में माइल्ड इन्फेक्शन के संकेत मिले । इस बार जब स्वस्थ होकर वापस लौटे तो राजनीति में खूब सक्रिय रहे। 14 मार्च को विधानसभा के बजट सत्र के दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। थी। रांची के पारस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सीएम हेमंत सोरेन की सलाह पर उन्हें तत्काल एयर एंबुलेंस से चेन्नई ले जाया गया था। उनकी तबीयत में सुधार की जानकारी आयी लेकिन अचानक धीरे- धीरे उनकी तबीयत खराब होती गयी और आज सुबह 6.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

फेफड़ा प्रत्यारोपण के बाद भी खूब सक्रिय रहे


जगन्नाथ महतो ने डुमरी विधानसभा क्षेत्र का लगातार चौथी बार प्रतिनिधित्व किया। अपने चौथे कार्यकाल में वे मंत्री बने। जगरनाथ महतो बोकारो जिले के अलार्गो पंचायत अंतर्गत सिमराकुली गांव के निवासी थे। इनका जन्म 31 जुलाई 1967 में हुआ था। वे अपने परिवार में चार भाईयों में सबसे बड़े थे। नवम्बर 2020 में कोविड-19 के दौरान संक्रमित हो गए। जिसके बाद चेन्नई एम जी एम अस्पताल में इनका लंग्स का ट्रांसप्लांट हुआ। बाद में वे वापस लौट आए और अपना कार्यभार संभाल लिया। लेकिन तबीयत बिगड़ने के बाद 14 मार्च को फिर उन्हें चेन्नई अस्पताल ले जाया गया, जहां गुरुवार को उनका निधन हो गया। शुक्रवार को दिवंगत जगरनाथ महतो का पार्थिव शरीर पैतृक गांव पहुंचा। शाम में 4.30 बजे दामोदर नदी के तट पर राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि हो गई।

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