रांची। द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति होगी। यशवंत सिन्हा को हराकर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों और दर्द से भरा रहा। अपने निजी जीवन में कई झंझावत झेलने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू ने पीछे पलटकर कभी नहीं देखा। आज वोटों की गिनती में तीसरे की दौर की गिनती मे ही उन्होंने जरूरी 50 फीसदी वोट हासिल कर लिये और रायसीना हिल्स तक का सफर पूरा किया।

द्रौपदी मुर्मू के बारे में जानिये

द्रौपदी मुर्मू 18 मई 2015 को झारखण्ड की राज्यपाल बनी थी। वो झारखण्ड की प्रथम महिला राज्यपाल थी। वो वर्ष 2000 से 2004 तक ओडिशा विधानसभा में रायरंगपुर से विधायक तथा राज्य सरकार में मंत्री भी रहीं। वो पहली ओडिया नेता हैं जिन्हें किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल नियुक्त किया गया है। वो भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल की गठबन्धन सरकार में 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार की राज्य मंत्री रही। 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री रहीं।

द्रौपदी मुर्मू अपनी सादगी के लिए भी याद की जाती हैं।

राजभवन में रहते हुए भी उनकी सादगी की हमेशा चर्चा होती रही। वे खुद शाकाहारी हैं। उन्होंने पूरे राजभवन परिसर में मांसाहार पर रोक लगाई। राज्यपाल के रूप में मुर्मू प्रतिदिन विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों तथा किसी समस्या लेकर आनेवाले लोगों से मुलाकात करती थीं।

द्रौपदी मुर्मू झारखंड के राज्यपाल के रूप में हमेशा आदिवासियों, बालिकाओं के हितों को लेकर सजग और तत्पर रहीं। आदिवासियों के हितों से जुड़े मुद्दों पर कई बार उन्होंने संज्ञान लेते हुए संबंधित पदाधिकारियों को निर्देश दिए। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बननेवाली द्रौपदी मुर्मू का छह साल एक माह अठारह दिनों का कार्यकाल विवादों से भी परे रहा। विश्वविद्यालयों की चांसलर के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने अपने कार्यकाल के दौरान चांसलर पोर्टल पर सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए एक साथ ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया।

द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में लंबे समय तक शिक्षक के रूप में काम किया। जिस प्रकास से सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा के क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे थे, वैसे ही द्रौपदी मुर्मू ने भी एक अहम भूमिका निभाई है। आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वालीं द्रौपदी मुर्मू छह साल एक महीने तक झारखंड की राज्यपाल रही हैं। मुर्मू ओडिशा के रायरंगपुर की रहने वाली हैं।वो 64 साल की हैं। द्रौपदी मुर्मू की बात करें तो वे देश की पहली आदिवासी राज्यपाल बनाई गई थीं। वे साल 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल रहीं. राज्यपाल का पद संभालने से पहले द्रौपदी मुर्मू बीजेपी की S.T. मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रह चुकी थीं।

अपने जीवन में पति और दो बच्चों को खोने वाली द्रौपदी मुर्मू का पूरा जीवन ही एक मिसाल है। उड़ीसा के बेहद पिछड़े और छोटे से गांव से वास्ता रखने वाली द्रौपदी मुर्मू आज भी बेहद सादगी भरा जीवन बिताती है। उनहे गांव में आज भी पानी की किल्लत है। कई किलोमीटर का सफर तक लोगों को पीने के पानी का इंतजाम करना पड़ता है।

समाज से लड़कर उन्होंने प्रेम विवाह किया, लेकिन उनके पति का निधन हो गया। उन्होंने अपने दो बच्चों को खोया है। निजी जिंदगी के इस दर्द को कभी भी उन्होंने अपनी राह में रोड़ा बनने नहीं दिया। वो देश की पहली महिला है, जो आदिवासी होते हुए राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर पहुंची है। जैसे ही उनकी जीत की खबर सामने आयी, पूरा देश झूम उठा। उड़ीसा में तो मानों उत्सव का माहौल है।

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