रांची। यूं तो सोरेन परिवार 5 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुआ है, लेकिन पनौती ऐसी है, कि किसी भी बार इस परिवार का सदस्य 5 साल तक मुख्यमंत्री नहीं रह सका है। 24 सालों से ये विंडबना चली आ रही है। शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री रहे, वो भी 5 साल पूरा नहीं कर सके। हेमंत सोरेन दो बार मुख्यमंत्री रहे, वो भी दोनों बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

झाऱखंड में चंपई सोरेन 12वें मुख्यमंत्री हैं। उससे पहले जो 11 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली गयी, उसमें से 5 बार सोरेन परिवार का चेहरा था। जबकि बाकी वक्त में बाबूलाल, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुबर दास थे। ऐसे देखा जाये तो झारखंड के साथ ये त्रासदी है कि किसी भी पार्टी को यहां बहुमत नहीं मिलता है। हर बार यहां जोड़ तोड़कर ही सरकार बनती है। लिहाजा खींचतान के बीच सरकारें गिर जाती है।

पहली बार शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन दुर्भाग्य ये रहा कि वो महज 10 दिन ही कुर्सी पर रह सके। बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके तीन साल बाद एक बार फिर शिबू सोरेन के सर पर ताज सजा। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने, लेकिन तब शिबू सोरेन विधायक नहीं थे। ऐसे में उन्हें छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना था।

उसी दौरान रांची जिला की तमाड़ विधानसभा सीट जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के कारण खाली हुई थी। चार महीने के भीतर यहां उपचुनाव हुए। शिबू सोरेन यहां से चुनाव लड़े। लेकिन राजा पीटर से वे हार गए। ऐसे में उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई। एक साल बाद फिर यानि 30 दिसंबर 2009 को उन्हें सरकार बनाने का मौका मिला। भाजपा और आजसू के साथ शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने, लेकिन 5 महीने के बाद भी शिबू सोरेन सरकार चली गयी।

हेमंत सोरेन पहली बार 13 जुलाई 2013 को मुख्यमंत्री बने, लेकिन उस बार उन्हें भाजपा ने गच्चा दे दिया। अर्जुन मुंडा तो अपनी पारी में मुख्यमंत्री बन गये, लेकिन जब हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री बनने की बारी आयी, तो भाजपा ने गच्चा दे दिया। 2019 में महागठबंधन के साथ झामुमो की सरकार बनी हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने, लेकिन 5वें साल में प्रवेश करते ही, उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ गया।

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