Saryu Rai Biography In hindi: सरयू राय झारखंड की राजनीति में वो नाम है, जो अपने बागी तेवरों की वजह से हमेशा चर्चा में रहते हैं। वो पार्टी लाइन से ज्यादा लीक से हटकर काम करने के लिए जाने जाते हैं। लिहाजा वो सत्ता में रहते हुए भी विपक्ष के साथ दिखायी पड़ते है। वो अपनी पार्टी के खिलाफ भी बोलने से गुरेज नहीं करते। फिलहाल उनकी चर्चा लोकसभा चुनाव को लड़ने को लेकर है। तेवर बता रहे हैं कि सरयू राय धनबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। हालांकि फिलहाल कांग्रेस के रूख को लेकर वो वेट एंड वाच की मुद्रा में हैं। उन्होंने आलमगीर आलम से धनबाद लोकसभा चुनाव के लिए समर्थन मांगा था। हालांकि कांग्रेस खेमे से इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है।

अब चर्चा है कि सरयू राय निर्दलीय ही धनबाद लोकसभा से ताल ठोकेंगे। अगर ऐसा हुआ, तो निश्चित ही ढुल्लू महतों के लिए चुनावी राह मुश्किल होगी। 2019 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। वो अभी जमशेदपुर पूर्व से विधायक हैं। इससे पहले 2014 से लेकर 2019 तक रघुबर सरकार में मंत्री भी रहे। उस दौरान भी उनके बागी बोल काफी चर्चाओं में रहे।

सरयू राय के बारे में जानिये
सरयू राय हमेशा अपने बागी तेवर के लिए जाने जाते हैं। सरकार में रहकर भी सरकार के खिलाफ जाने से गुरेज नहीं करते हैं। सरयू राय की पहली पहचान यह है कि पूर्व सीएम मधु कोड़ा के काले कारनामों का उन्होंने भंडाफोड़ किया था। कोड़ा को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भी जाना पड़ा। उनके पास नेताओं के काले कारनामों का पुलिंदा हमेशा पड़ा रहता है। मूल रूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले सरयू राय की झारखंड में राजनीति वर्ष 2000 में उसके अस्तित्व में आने के साथ ही शुरू हुई।

बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं
सरयू राय के जीवन का काफी समय बिहार में ही बीता। वर्ष 2000 में बिहार राज्य के पुनगर्ठन के बाद उन्होंने नवगठित राज्य झारखंड को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि के रूप में चुना। आर्थिक और सामाजिक विषयों के विशेषज्ञ के रूप में सरयू राय की गिनती होती है। वर्ष 2014 में रघुवर दास के नेतृत्व में गठित झारखंड मंत्रिपरिषद में वे संसदीय कार्य, खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग के मंत्री रहे। हालांकि कुछ मुद्दों पर रघुवर दास से उनके मतभेद सार्वजनिक होने लगे थे। उन्होंने मंत्री पद छोड़ने का फैसला भी किया, पर पार्टी के कुछ नेताओं के समझाने पर मन बदल लिया।

भ्रष्टाचार को लेकर हमेशा आवाज करते रहे हैं बुलंद
सरयू राय एक समय मुख्यमंत्री पद के भी दावेदारों में थे। पत्रकार आनंद कुमार ने किताब ‘एक नाम कई आयाम’ भी लिखी है। पुस्तक के परिचय में बताया गया है कि सरयू राय सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार के अलावा नैतिक मूल्यों की राजनीति करनेवाले गंभीर व्यक्ति हैं। सरयू राय ने भी झारखंड में लौह अयस्क के अवैध उत्खनन पर एक चर्चित किताब लिखी है- रहबर की राहजनी। किताब में पिछली सरकार के भ्रष्टाचार का ब्यौरा है। रघुवर दास के मन में सरयू राय के प्रति धारणा अच्छी नहीं थी।

मुख्यमंत्री रघुबर दास को चुनाव में हराया
रघुबर दास को चुनाव में हराया थाजब वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव का समय आया तो भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। सरयू राय का कहना था कि रघुवर दास ने ही उनका टिकट काटने के लिए भाजपा नेतृत्व पर दबाव डाला। पूर्व में सरयू राय जमशेदपुर पश्चिमी क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से विधायक बने थे। गुस्से में सरयू राय ने अपनी सीट बदल ली और रघुवर दास के क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा। भाजपा की पूरी कोशिश के बावजूद सरयू राय ने रघुवर दास को हरा दिया। एक सीएम को उनके ही कैबिनेट के सहयोगी ने निर्दलीय उम्मीदवार बन कर हराया। इसकी खूब चर्चा हुई। 2019 के चुनाव में न सिर्फ रघुवर दास हारे, बल्कि भाजपा भी झारखंड में सरकार बनाने से चूक गई।

कई मुख्यमंत्रियों को पहुंचाया है जेल के पीछे
रघुवर दास सरकार में शामिल मंत्री सरयू राय ने 1994 में सबसे पहले पशुपालन घोटाले का भंडाफोड़ किया था। बाद में इस घोटाले की सीबीआइ जांच हुई। राय ने घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने को उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक संघर्ष किया। इसके फलस्वरूप राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव समेत दर्जनों राजनीतिक नेताओं व अफसरों को जेल जाना पड़ा। सरयू राय ने 1980 में किसानों को आपूर्ति होने वाले घटिया खाद, बीज, तथा नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली शीर्ष सहकारिता संस्थाओं के विरूद्ध भी आवाज उठायी थी। तब उन्होंने किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए सफल आंदोलन किया। सरयू राय ने ही संयुक्त बिहार में अलकतरा घोटाले का भी भंडाफोड़ किया था। इसके अलावा झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में सरयू राय की अहम भूमिका रही। इतने घोटालों के पर्दाफाश के बाद तो सरयू राय का नाम भ्रष्ट नेताओं में खौफ का पर्याय बन गया।

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