पंचर वाले का बेटा बना जज : कभी पिता संग साइकिल के पंचर बनाये, तो कभी सिले कपड़े, अब जज की कुर्सी पर बैठेंगे अहद
प्रयागराज। वो कहते हैं ना किसी भी चीज को शिद्दत से चाहो, तो पूरी कायनात उसे मिलाने में आपके साथ जुट जाती है। बेशक ये डॉयलॉग फिल्मी है, लेकिन है, हकीकत के बिल्कुल पास। आपने ने ईमानदारी से मेहनत की है, लक्ष्य के प्रति आपने दृढ़ता दिखायी है, तो फिर मंजिल मिल ही जाती है। यहां हम बात कर रहे हैं अहद अहमद की। साइकिल का पंचर और कपड़ों की सिलाई करने वाले अहद अहमद ने कामयाबी का वो करिश्मा कर दिखाया, जो किसी सपने से कम नहीं।
पंचर वाले का बेटा अहद अब जज बन गये हैं। यूपी में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की भर्ती परीक्षा को पास कर अहद ने जज बनने का गौरव पाया है। अहद को यह कामयाबी पहली ही कोशिश में मिली है, वो भी बिना किसी कोचिंग। साइकिल का पंचर बनाने वाले के बेटे की कामयाबी पर प्रयागराज के लोग फूले नहीं समा रहे हैं।
कहीं उसकी कामयाबी का जश्न मनाया जा रहा है तो कोई खास अंदाज में अहद और उसके परिवार को मुबारकबाद दे रहा है। अहद की कामयाबी इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि साइकिल का पंक्चर बनाकर परिवार का पेट पालने वाले पिता ने दिन-रात कड़ी मेहनत कर उसे पढ़ाया है। अहद अहमद चार भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हैं. उनके माता-पिता ने सिर्फ अहद अहमद को ही नहीं पढ़ाया बल्कि अपने दूसरे बच्चों को भी तालीम दिलाई। अहद के बड़े भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन चुके हैं तो छोटा भाई एक प्राइवेट बैंक में ब्रांच मैनेजर है।
बेटे अहद को पढ़ा लिखा कर कामयाब इंसान बनने का आईडिया उनकी मां अफसाना को फिल्म घर द्वार देखकर आया। इस फिल्म को देखने के बाद ही उन्होंने तय किया कि पति के पंचर की दुकान से परिवार का पेट चलेगा और वह लेडीज़ कपड़ों की सिलाई कर बच्चों को पढ़ाएंगी। अहद अहमद प्रयागराज शहर से तकरीबन किलोमीटर दूर नवाबगंज इलाके के छोटे से गांव बरई हरख के रहने वाले हैं। गांव में उनका छोटा सा टूटा-फूटा मकान है।
घर के बगल में ही उनके पिता शहजाद अहमद की साइकिल का पंचर बनाने की छोटी सी दुकान है। इसी दुकान में वह बच्चों के लिए टॉफी व चिप्स भी बेचते हैं। पिता की पंचर की दुकान अब भी चलती है. पिछले कुछ सालों से आहट यहां नियमित तौर पर तो नहीं बैठते लेकिन कभी कभार पिता के काम में हाथ जरूर बटा लेते हैं।