रांची। झारखंड में महीनों से नियुक्तियां ठप है। हाईकोर्ट की तरफ से नियोजन नीति को अवैध ठहराने के बाद अब राज्य सरकार वैकल्पिक रास्तों पर विचार कर रही है। आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर युवाओं में उम्मीद जगायी है कि राज्य में जल्द ही नियुक्तियों का दौर शुरू होगा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि सभी बाधाओं को दूर कर जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। आपको बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव में सफलता मिलने के बाद झारखंड की गद्दी पर आसीन होते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 3 फरवरी 2021 को रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द कर नई नीति लाने की घोषणा की. रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द करने के पीछे हेमंत सरकार का तर्क राज्यस्तरीय नियोजन नीति बनाना था. पिछली सरकार के नियोजन नीति में झारखंड को 11 और 13 जिलों में बांटने को अनुचित बताया गया।

हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में बनी यूपीए की सरकार ने 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाया. जिसके तहत सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास को अनिवार्य किया गया. इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी को किनारे करते हुए प्रत्येक जिला में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. जिसके खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सरकार की नियोजन नीति 2021 को असंवैधानिक मानते हुए कहा कि यह समानता के अधिकार के खिलाफ बताया. 17 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट का यह फैसला आने के बाद हेमंत सोरेन सरकार की नियोजन नीति रद्द हो गई, जिसके परिणाम स्वरूप जेएसएससी द्वारा आयोजित होने वाली सभी परीक्षाएं अधर में लटक गई.

आरक्षण के हवाले से नीति रद्द
झारखंड हाई कोर्ट ने सोनी कुमारी की याचिका की सुनवाई करते हुए इंदिरा साहनी और चेबरु लीला प्रसाद राव के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द कर दिया. कोर्ट का मानना था कि किसी भी स्थिति में कोई भी पद शत प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता है. आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत ही हो सकती है जबकि नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों में यह 100 फीसदी हो गई थी. झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ रघुवर सरकार सुप्रीम कोर्ट तक गई मगर कोई राहत नहीं मिली.

अलग राज्य बनने के बाद झारखंड 22 वर्ष में जितनी भी सरकारें बनीं नियोजन नीति को संवैधानिक रुप से बनाने में सफल नहीं हुई है. इसका खामियाजा यहां के छात्र आज तक उठा रहे हैं. एक बार फिर हेमंत सरकार की नियोजन नीति 2021 हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद प्रदेश के युवा दोराहे पर खड़े हैं कि आखिर उन्हें नौकरी कब तक मिलेगी.

बाबूलाल के समय बनी स्थानीय और नियोजन नीति
राज्य गठन के बाद सर्वप्रथम झारखंड की कुर्सी पर बैठे बाबूलाल मरांडी ने स्थानीय लोगों को रोजगार देने और आरक्षण की नई कहानी लिखने की कोशिश की. डोमिसाइल को लेकर उठा विवाद आज भी झारखंड में रहने वाले लोग याद करके सहम जाते हैं. बाबूलाल की सरकार ने भी 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू की थी. जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद उसे संवैधानिक बताते हुए नई नीति बनाने का निर्देश दिया था. इसी तरह नियोजन नीति बनाते हुए बाबूलाल मरांडी सरकार ने 73 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. मामला जब हाई कोर्ट में गया तो उसने इसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था.

रघुवर की नियोजन नीति भी असंवैधानिक
बाबूलाल मरांडी की स्थानीय और नियोजन नीति कानूनी रुप से खारिज होने के बाद लंबे समय तक राज्य में जैसे तैसे नियुक्ति की प्रक्रिया चलती रही. इस दौरान नियुक्ति प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता का दंश झारखंड के युवा आज तक झेल रहे हैं. रघुवर दास की नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय नीति के साथ नियोजन नीति भी बनी. 14 जुलाई 2016 को रघुवर सरकार की ओर से नियोजन नीति लागू की गई. नियोजन नीति के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया.इस नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप सी और डी की नौकरियों में उसी जिला के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया. यह प्रावधान 10 वर्षों के लिए किया गया. इस नियोजन नीति के तहत जैसे ही राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई यह विवादों में आने लगी. प्रार्थी सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में चुनौती देकर इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताते हुए न्याय की गुहार लगाई.

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