रांची। झारखंड में हाल के सालों में नक्सलवादी घटनाएं कम हुई है। ये बात अलग है कि माओवादियों पर लगाम लगाने को लेकर श्रेय की होड़ है। झारखंड सरकार जहां इसका श्रेय खुद को देती है, तो वहीं केंद्र का दावा है कि उनकी रणनीति और कार्रवाईयों की बदौलत नक्सलवाद घटा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ झारखंड में नक्सली वारदात कम हुई है, बल्कि आंकड़े तो यही बताते हैं कि पूरे देश में नक्सली अब सिमटते जा रहे हैं। नक्सलियों का सबसे दबदबा वाला राज्य कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ भी अब नक्सल मुक्त होने की कगार पर है।

इससे पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तो नक्सलियों की स्थिति कमजोर हो ही चुकी है। उड़ीसा, बंगाल और बिहार में भी बहुत ज्यादा माओवादियों का वजूद नहीं रह गया है। इक्का-दुक्का घटनाओं की बदौलत वामपंथी उग्रवाद अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की जरूर कोशिश करता है, लेकिन पुलिस व सुरक्षाबलों की माओवादियों की मांद तक में हो चुकी पहुंच की बदौलत, अब घटनाओं की नकेल पूरी तरह से कसी जा चुकी है।

पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने एक ग्राफ सोशल मीडिया X पर शेयर किया है। जिसमें उन्होंने माओवाद का खात्मा करने का श्रेय मोदी सरकार की कुशल रणनीति को दिया है। उन्होंने लिखा है कि वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई अब अंतिम दौर में, मोदी सरकार की कुशल रणनीति से वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में अभूतपूर्व कमी आयी है। उन्होंने एक ग्राफ भी शेयर किया है, जिसमें 2005 से 2014 की यूपीए सरकार बनाम 2014 से 2023 की मोदी सरकार के दौरान नक्सली वारदात की तुलना की है।

उन्होंने लिखा है कि मई 2005 से अप्रैल 2014 के बीच 1750 सुरक्षाबलों की मृत्यु हुई थी, जबकि मई 2014 से अप्रैल 2023 के बीच सिर्फ 485 सुरक्षाबलों की जान गयी। उसी तरफ सामान्य नागरिकों के जो आंकड़े दिये हैं, उसके मुताबिक मई 2005 से अप्रैल 2014 के बीच 4285 लोगों की जान गयी थी, जबकि मोदी कार्यकाल यानि मई 2014 से अप्रैल 2023 तक में नागरिकों की मौत का आंकड़ा घटकर 1383 रह गया है। वहीं हिंसक घटनाओं की बात करें तो मई 2005 से अप्रैल 2014 तक में 14862 हिंसक घटनाएं हुई, जबकि मई 2014 से अप्रैल 2023 में ये आंकड़ा घटकर सिर्फ 7182 रह गया।

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