Danger on OPS: Last chance given to teachers and employees to return from OPS to NPS, thousands of teachers were deprived of OPS due to this rule

कर्मचारी न्यूज (एजेंसियां)। पुरानी पेंशन योजना (OPS) में ही रहना है या फिर न्यू पेंशन योजना (NPS) में लौटना है ? शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को इस फैसले पर विचार करने का एक और मौका दिया है। शिक्षा विभाग की तरफ से सभी शिक्षकों को इस संबंध में निर्देश जारी कर दिया गया है, कि वो चाहें तो अपने फैसले पर विचार कर सकते हैं।

दरअसल हुआ यूं है कि जब राज्य में OPS लागू हुआ, तो शिक्षकों ने बिना नियम शर्त जाने ही OPS के लिए हामी भर दी। लेकिन बाद में शर्तें ऐसी तय हुई कि हजारों शिक्षक पुरानी पेंशन योजना में शामिल होकर भी लाभ से दूर चले गये।ये आदेश छत्तीसगढ़ के कोरबा से जारी हुआ है।परंतु ये मामला राज्य भर के सभी कर्मियो के लिए भी है।

ऐसे में शिक्षकों को अपने पेंशन स्कीम पर विचार करने के लिए मौका दिया गया है। बीईओ कार्यालय से जारी पत्र के अनुसार पुरानी पेंशन योजना (OPS) का विकल्प लेने वाले कर्मचारियों को पेंशन नियमों के अंतर्गत न्यूनतम सेवा अवधि नहीं होने के प्रकरणों में उनका विकल्प NPS में बने रहने को लेकर सिर्फ एक बार परिवर्तन करने की स्वीकृति के लिए संचालक, पेंशन एवं भविष्य निधि को अधिकृत किया गया है।

ऐसे में संकुल या संस्था में कार्यरत कर्मचारी जिनका पेंशन नियमों को अंतर्गत न्यूनतम सेवा अवधि पूर्ण नहीं हो रहा है, का NPS में केवल एक बार के लिए विकल्प परिवर्तन करने के लिए आवेदन सहित नोटराईज्ड विकल्प प्रपत्र प्राप्त कर 9 अप्रैल तक मांगा गया है।

तीन राज्यों में सबसे पहले लागू हुआ था ओपीएस

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड तीन ऐसे राज्य थे, जहां पुरानी पेंशन योजना लागू हुई थी। पुरानी पेंशन योजना लागू होते ही कर्मचारियों में उत्साह भर गया। हालांकि तब ये मालूम नहीं था, कि पुरानी पेंशन योजना लागू होने को लेकर कई तरह के लेकिन.. किंतु… परंतु भी जुड़ेंगे। जाहिर है पुरानी पेंशन योजना लागू होने के बावजूद भी सबसे ज्यादा किसी राज्य के कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, तो वो थे छत्तीसगढ़ के शिक्षक… । परंतु ये परेशानी अन्य राज्य जहां पुरानी पेंशन योजना लागू की गई है वहां भी आनी तय है।

छत्तीसगढ़ में शिक्षक क्यों है परेशान

इसकी बड़ी वजह ये रही कि प्रदेश में संविदा शिक्षकों की नियमितिकरण। 1998 से ही छत्तीसगढ़ में नियमित शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई, उनकी जगह शिक्षाकर्मी यानि अनियमित शिक्षकों की नियुक्ति हुई। 2018 में राज्य सरकार ने प्रदेश के करीब पौने दो लाख शिक्षकों की नियमितिकरण का आदेश दिया। जाहिर है कि शिक्षाकर्मी से शिक्षक की नौकरी तो पक्की हो गयी, लेकिन उनकी शासकीय नौकरी को नियमित 2018 से माना गया। मतलब के पूर्व की जितने भी सालों की उनकी सेवाएं थी, वो शून्य हो गयी।

पुरानी सेवा गणना शून्य कर दी गयी

हालांकि ये नियम भी है कि अनियमित कर्मचारियों को राज्य सरकार अपना कर्मचारी नहीं मानती क्योंकि उन्हें सैलरी नहीं मानदेय मिलता है। हालांकि शिक्षकों को ये उम्मीद थी कि अगर सरकार ने ओपीएस लागू किया है, तो सभी को इसका बराबर का हक मिलेगा, लेकिन राज्य सरकार ने जब ओपीएस का निर्देश जारी किया, तो उसमें 10 साल की सेवा शर्तें डाल दी। मतलब जिनकी सेवा 10 साल बची है, वो ही ओपीएस से आच्छादित होंगे।

छत्तीसगढ़ में शिक्षकों को लगा झटका

10 साल की सेवा शर्तों ने छत्तीसगढ़ के करीब 1 लाख से ज्यादा शिक्षकों को झटका दिया है। मतलब उनकी सेवाएं 10 साल से कम बची है, ऐसे में वो ओपी एस के दायरे में आ ही नहीं सकते हैं। कई लोग इस उम्मीद में बने हुए थे कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी, तो वो आंदोलन प्रदर्शन के जरिये दवाब बनाकर सरकार से पूर्व की सेवा शर्तों को ओपीएस में जोड़वा लेंगे, लेकिन भाजपा की सरकार छत्तीसगढ़ में बनी है, जो ओपीएस के विरोध में हैं।

भाजपा सरकार बनने पर लगा झटका

जब भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ में बनी तो ये अफवाह भी उड़ी थी, कि कहीं छत्तीसगढ़ में ओपीएस बंद तो नहीं हो जायेगा, लेकिन विधानसभा में भाजपा सरकार ने स्थिति स्पष्ट कर दी है कि वो पुरानी पेंशन योजना को बंद करने पर विचार नहीं कर रही है। शासकीय कर्मचारियों की जान में जान तो आयी है, लेकिन शिक्षाकर्मी से शिक्षक बने हजारों शिक्षकों की जान हलक में अटक गयी है।

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