पटना। बिहार में जातीय जनगणना होगी। पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को बड़ी राहत दे दी है। हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, इन याचिकाओं में जातिगत जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गई थी. जातीय गणना को लेकर पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया था कि सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए सभी अपनी जाति बताने को आतुर रहते हैं। सुनवाई के बाद कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण कराने को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने सात जुलाई को इस मामले में सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था।

जातीय जनगणना मामले में 17 अप्रैल को पहली बार सुनवाई हुई थी। उच्च न्यायालय ने चार मई को अंतरिम आदेश पारित कर बिहार में जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के अंतरिम निर्णय में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। लगभग 11 दिन चली लंबी सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत किया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव, दीनू कुमार एवं एमपी दीक्षित कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए थे।

सरकार ने नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण नहीं देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है। सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया था कि इसलिए भी जातीय गणना जरूरी है।

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