नयी दिल्ली: समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। याचिका पर सुनवाई कर रही पांच जजों की पीठ में अध्यक्षता कर रहे सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक संबंध एक बार का रिश्ता नहीं, ये रिश्ते हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं। ये न सिर्फ शारीरिक बल्कि भावनात्मक रूप से मिलन भी है। यही कारण है कि समलैंगिग विवाह के लिए 69 साल पुराने स्पेशल मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर गुरुवार को तीसरे दिन सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ इस मसले की सुनवाई कर रही है. इस दौरान CJI चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या शादी करने के लिए बाइनरी जेंडर – यानी पुरुष और महिला – का होना ज़रूरी है?

न्यायमूर्ति एसके कौल, एस रवींद्र भट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने कहा कि 1954 (विशेष विवाह अधिनियम) में कानून का उद्देश्य उन लोगों को शामिल करना था, जो एक वैवाहिक संबंध द्वारा शासित होंगे। उनके व्यक्तिगत कानूनों के अलावे पीठ ने समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी से कहा कि कानून निश्चित रूप से व्यापक रूप से सक्षम है, आपके अनुसार समान लिंग के स्थिर संबंधों को भी ध्यान में रखा जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील केवी विश्वनाथन ने सवाल किया कि केंद्र सरकार का कहना है कि समलैंगिक जोड़े बच्चे पैदा नहीं कर सकते, तो क्या शादी करने के लिए प्रजनन एक वैध आधार है? इसके आगे उन्होंने तर्क दिया कि 45 साल से ज़्यादा उम्र की महिलाएं जो प्रेगनेंसी के लिए फ़िट नहीं होतीं, उन्हें तो शादी करने की अनुमति है. वो हेट्रो-सेक्शुअल जोड़े, जो किसी कारण से बच्चे नहीं पैदा कर सकते – उन्हें भी शादी करने की इजाज़त है.

इसके आगे याचिकाकर्ताओं ने ये भी तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 21 अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार देता है. वरिष्ठ वकील ने ये भी कहा कि विवाह का अधिकार ऐसे जोड़ों (समलैंगिक) को सामाजिक सुरक्षा देगा.इस पर CJI चंद्रचूड़ ने 2018 के उस फ़ैसले का ज़िक्र किया, जिसके तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने ये तो माना ही था कि सहमति से एक ही जेंडर के वयस्कों के बीच संबंध मान्य हैं. साथ ही ये भी माना कि ऐसे संबंध स्थिर होते हैं. CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “हम इन सेम-सेक्स संबंधों को केवल शारीरिक संबंधों के रूप में नहीं देखते. बल्कि एक स्थिर, भावनात्मक संबंध के रूप में भी देखते हैं. समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए हमें विवाह की धारणा को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत है. क्या विवाह के लिए बाइनरी जेंडर – यानी पुरुष और महिला – का होना ज़रूरी है?”
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं का केंद्र सरकार ने यह कहते हुए विरोध किया कि भारतीय परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और बच्चों की है, जिसकी समलैंगिक विवाह से तुलना नहीं की जा सकती है. इससे पहले बुधवार को केंद्र ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए, क्योंकि इस मुद्दे पर उनका (राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का) विचार प्राप्त किये बिना कोई भी निर्णय वर्तमान ‘प्रतिकूल प्रयास’ को अधूरा और तुच्छ कर देगा. शीर्ष अदालत में दायर एक ताजा हलफनामे में, केंद्र ने कहा है कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों को एक पत्र जारी कर याचिकाओं में उठाये गये ‘मौलिक मुद्दे’ पर टिप्पणी और विचार आमंत्रित किये थे.

हर खबर आप तक सबसे सच्ची और सबसे पक्की पहुंचे। ब्रेकिंग खबरें, फिर चाहे वो राजनीति...