देशभर कर रहा माता की पूजा और यहां माताएं मांग रही वेतन की भीख....7 माह में बिन वेतन हालत हो गई ऐसी कि...दुर्गापूजा में पकवान तो छोड़िए, सूखी रोटी भी नहीं हो रही नसीब

रांची 7 महीने से वेतन की बाट देखते राज्यभर के स्वास्थ्य कर्मचारी दुर्गा पूजा में कभी अपने बैंक अकाउंट चेक करते तो, तो कभी विभागो में पता करते थक गए....की शायद सरकार हम कर्मचारियों पर तरस खाकर आवंटन मुहैया कराएगी ताकि वेतन का भुगतान हो सके। आखिर अपने दुख साझा करे भी तो किससे करें। इन कर्मियों से काम लेने वाले प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी से लेकर सिविल सर्जन तक अपना पल्ला झाड़ चुके हैं। जब से कोरोना महामारी की शुरुवात हुई है तब से स्वास्थ्य कर्मी के सभी अवकाश बंद कर दिए गए। रविवारीय अवकाश समेत राजपत्रित अवकाश तक में सभी कर्मी स्वास्थ्य कार्य में लगे हुए है। उसके बावजूद न कोई सुनने वाला, न कोई दर्द समझने वाला.... जब अपने कार्यालय के पदाधिकारी ने ही वेतन देने के मामले में मुंह फेर लिया तो औरों से क्या उम्मीद?

ये दर्द सैंकड़ों कर्मचारी का नहीं बल्कि हजारों कर्मचारी का है जो शीर्ष 2211 परिवार कल्याण अंतर्गत कार्यरत हैं। रात दिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में आम जनता को स्वस्थ्य बनाए रखने का जिम्मा लेकर कार्य कर रहें हैं। इन कर्मचारियों का दुर्भाग्य तो देखिए साहब..... घर परिवार दाने दाने के मोहताज हो रहे हैं, बच्चे घरों के खिड़की से सड़क पर नए नए कपड़े पहने आते जाते राहगीर को कभी देखते तो कभी अपने नन्हें हाथों से आंसू पोछते ,उसके बाद रही सही कसर स्वास्थ्य विभाग के उस फरमान ने पूरी कर दी जिसमे कहा गया की सभी पूजा पंडाल में स्वास्थ्य कर्मी टीकाकरण का कार्य करेंगे। मतलब साफ है जले पर नमक छिड़कने वाली कहावत पूरी फिट बैठ रही है। जो कर्मी 7 माह से वेतन के लिए तरस रहे हों वो पूजा पंडाल में रंग बिरंगी पोशाक पहने, पूजा का आनंद उठाने वाले को देखते रहें ताकि उन कर्मी के दर्द आंखों में आंसू के रूप में निकलते रहें।

हम बात कर रहे स्वास्थ्य विभाग में शीर्ष 2211 के परिवार कल्याण अंर्तगत कार्य कर रहे कर्मियों का, जो पिछले मार्च महीने (7 माह) से वेतन के लिए तरस रहे है। इस संबंध में कई बार ऑल झारखंड पारा मेडिकल एसोसिएशन ने शीर्ष पदाधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराया उसके बावजूद विभाग ने आवंटन मुहैया नहीं कराया। नतीजा राज्यभर के कर्मी को दुर्गा पूजा में भी वेतन नहीं मिला।

आखिर कौन हैं जिम्मेदार

HPBL की टीम ने जब मुद्दे की गहराई में जानने की कोशिश की तो सभी एक दूसरे पर फेंका फेंकी करते नजर आए। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी जो इन कर्मियों से काम लेने के जिम्मेदार होते है उन्होंने आवंटन नहीं आने की बात कह अपना पल्ला झाड़ा। सिविल सर्जन जो स्वास्थ्य विभाग के जिले भर के सबसे उच्च पदाधिकारी होते हैं उनका कहना था की आवंटन भेजने की जिम्मेदारी विभाग के उच्च पदाधिकारी के पास है,आवंटन आने के बाद भुगतान की प्रक्रिया पूर्ण होगी। सचिवालय स्तर के पदाधिकारी विभागीय प्रक्रिया का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ा।

सवाल ये की पदाधिकारी की जिम्मेवारी सिर्फ कर्मियों से काम लेने की नहीं बल्कि समय से वेतन देने की भी होनी चाहिए। यदि आवंटन में देरी हो रही है तो जिला स्तर से पत्राचार भी होने चाहिए, ताकि उच्च पदाधिकारी के संज्ञान में इन बातों को लाया जा सके। पूजा पंडाल में कार्य कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों से सवाल पूछते ही उनका दर्द छलक कर अश्रुपूरित आंखो तक पहुंचा, फिर सिर्फ एक बात निकली की "आपने तो कम से कम हमारी परेशानी पूछी, पर जो पदाधिकारी हमसे काम ले रहे है उन्होंने इतनी सांत्वना देने की भी जहमत नहीं उठाई"। ऐसे में सवाल सरकार से की कर्मियों के वेतन और उसकी समस्या दूर करने वाले पदाधिकारी कैसे गैरजिम्मेदार हो सकते हैं।

HPBL Desk
HPBL Desk  

हर खबर आप तक सबसे सच्ची और सबसे पक्की पहुंचे। ब्रेकिंग खबरें, फिर चाहे वो राजनीति की हो, खेलकूद की हो, अपराध की हो, मनोरंजन की या फिर रोजगार की, उसे LIVE खबर की तर्ज पर हम आप तक पहुंचाते हैं।

Related Articles
Next Story