क्या अब हेमंत सोरेन को भी मिलेगी राहत ? संजय सिंह की जमानत से झामुमो क्यों है उत्साहित, सीएम चंपई सोरेन से लेकर कल्पना सोरेन तक ट्वीट के मायने…

रांची। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की जमानत से INDIA गठबंधन की उम्मीदें बढ़ गयी है। आम आदमी पार्टी को जहां जल्द ही अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन के बाहर निकलने की उम्मीदें हैं, तो वहीं झारखंड में भी अब हेमंत सोरेन को राहत दिलाने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो हेमंत सोरेन की भी जमानत की कोशिशें अब तेज होगी। हालांकि यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं और हेमंत सोरेन पर लगे आरोप दोनों अलग-अलग हैं। ऐसे में जमानत का वहीं फार्मूला हेमंत सोरेन के लिए भी सटीक बैठेगा, ये तो कोर्ट ही तय करेगा।

चर्चा तो ये भी है दो महीने से ज्यादा वक्त से जेल में बंद हेमंत सोरेन की जमानत के लिए भी वही ग्राउंड लिया जायेगा, जो संजय सिंह की जमानत में सुप्रीम कोर्ट ने माना है। दरअसल गिरफ्तारी के बाद से ही ये दलील दी जाती रही है कि अभी तक हेमंत सोरेन के खिलाफ किसी तरह का साक्ष्य नहीं मिला है। जिस जमीन के फर्जीवाड़े का आरोप लगा है, वो जमीन भी हेमंत सोरेन के नाम है, वो ईडी साबित नहीं कर पायी है।

ऐसे में जमानत के लिए इसे ही ग्राउंड बनाकर याचिका दायर की जाये। चूंकि ईडी की तरफ से गिरफ्तारी के बाद संजय सिंह को जमानत मिल चुकी है, ऐसे में अन्य को भी ईडी के गिरफ्त से बाहर निकालने के लिए अब आप के साथ-साथ झामुमो भी सक्रिय हो गयी है। संजय सिंह की जमानत ने झामुमो के लिए कितनी राहत ही, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि जमानत की खबर के बाद तत्काल जहां कल्पना सोरेन ने ट्वीट कर कहा.. तानाशाही ताकतों का किला ध्वस्त होना शुरु हो गया है। आप नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह जी ने अन्यायपूर्ण कारावास के खिलाफ एक बड़ी जंग जीती है। यह सत्य और संघर्ष की जीत है, यह INDIA की जीत है। संजय सिंह, उनकी धर्मपत्नी अनिता सिंह तथा उनके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और जोहार। ~ कल्पना मुर्मू सोरेन

वहीं मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा है कि एक मेयर के चुनाव से लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड तक, और सहयोगियों को भ्रामक विज्ञापन के सहारे करोड़ों की लूट की छूट देने से लेकर श्री संजय सिंह की जमानत तक, फिर एक बार साबित हुआ कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के सहारे बचा हुआ है। बिना सबूत के महीनों तक किसी को जेल में रखने और मीडिया ट्रायल द्वारा उन्हें बदनाम करने का मकसद क्या है? क्या ईडी, आईटी एवं सीबीआई जैसी एजेंसियों का एकमात्र मकसद सिर्फ विपक्षी दलों की सरकारों को परेशान करना है? साल 2004 के इंडिया शाइनिंग की तरह ही, इस बार भी अति-आत्म विश्वास का यह गुब्बारा फूटने वाला है। इंतजार कीजिए, चार जून को देश, दो दशक पुराने "फील गुड" का एक्शन रिप्ले देखेगा।

HPBL Desk
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