रांची । झारखंड हाईकोर्ट ने जेएसएससी झारखंड कर्म की संशोधित नियुक्ति नियमावली खारिज कर दी है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने संशोधित नियमावली के तहत जारी नियुक्ति के सभी विज्ञापन को भी निरस्त कर दिया। अदालत ने कहा कि जेपीएससी कोर्ट के आदेश के आलोक में उसके तहत फिर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करें।

पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को गायब करना गलत

पूर्व की सुनवाई में प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कोर्ट को बताया कि भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को हटाया जाना अनुचित है, क्योंकि राज्य में सबसे ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं। इस तरह की असंवैधानिक शर्त के आधार पर राज्य में नियुक्ति नहीं की जा सकती है। राज्य में 61.25 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं इसलिए विवादित नियुक्ति नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए।

राज्य के बाहर से बोर्ड की परीक्षा पास करने वाले के साथ भेदभाव

यह भी कहा गया कि राज्य सरकार की ओर से संशोधित नियुक्ति नियमावली में लगाई गई शर्तों के कारण वैसे अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने राज्य के शिक्षण संस्थाओं में स्नातक की डिग्री हासिल किए लेकिन उन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा दूसरे राज्य से पास की है। प्रार्थी की ओर से झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग की नियुक्ति को रद्द करने का आग्रह किया गया है। कहा गया है कि इस नीति में झारखंड के राज्य में नौकरी हासिल नहीं कर सकती है।

पूर्व की सुनवाई में राज्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट के बढ़िया अधिवक्ता सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा कि जैसे से स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली संवैधानिक रूप से सही है। यह भी बताया गया कि जेपीएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली में संशोधन के माध्यम से यहां की रीति रिवाज और भाषा को परखने के लिए एक मापदंड तैयार किया है। हिंदी और अंग्रेजी को क्वालीफाइंग पेपर वन में रखा गया। स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए भाषा के पेपर दो से हिंदी अंग्रेजी को हटाया गया।

नौकरी की आस फिर अधर में

झारखंड के युवा के भविष्य पर फिर से ग्रहण लग गया है। आखरी ये सवाल फिर से युवा पूछने लगे हैं… की नौकरी मिलेगी या सिर्फ ये सिर्फ घोषणा बन कर रह जाएगी। क्योंकि हाईकोर्ट की आदेश आने के बाद आयोग में गई हुई अधियाचना को फिर से सुधार करना पड़ सकता है। उसके बाद फिर अधियाचना कब निकलेगी यह भी अपने आप में सवाल है। काफी दिनों के बाद युवा ये आस में रहते हैं कि विज्ञापन जारी होने के बाद सरकारी नौकरी की कारवाई पूरी हो पाएगी। परंतु बार-बार यह राजनीतिक हथकंडे और गैर कानूनी तरीके से बनाई गई नीति का असर आखिरकार युवा के भविष्य पर ही पड़ता है।

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