नयी दिल्ली। देर रात राज्यसभा से भी महिला आरक्षण बिल रिकॉर्ड वोटों से पारित हो गया। महिला आरक्षण बिल के विरोध में राज्यसभा में एक भी वोट नहीं पड़े। ये एक ऐतिहासिक लम्हा था। इसके साथ संसद का विशेष सत्र तय समय से एक दिन पहले ही खत्म हो गया। राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल 214 वोटों के पास होने के बाद राज्यसभा में राष्ट्रगीत बजा।

राज्यसभा के बाद प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा पहुंचे, फिर थोड़ी देर बाद लोकसभा को भी अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। 18 सितंबर से शुरू हुआ यह सत्र 22 सितंबर तक चलना था, लेकिन यह सत्र 21 सितंबर को ही खत्म कर दिया गया। सत्र की शुरुआत से पहले कई कयास लगाए जा रहे थे। एक दिन पहले ही लोकसभा में महिला आरक्षण बिल दो-तिहाई बहुमत से पास हुआ था. बिल के पक्ष में 454 वोट पड़े थे, जबकि इसके विरोध में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी और औरंगाबाद से सांसद इम्तियाज जलील ने वोट किया.

संसद के विशेष सत्र के दौरान राज्यसभा (Rajya Sabha) में सभी दलों ने इस बिल का समर्थन किया। बिल के समर्थन में 214 वोट और विरोध में कोई वोट नहीं पड़ा। ये बिल बुधवार को लोकसभा में लंबी चर्चा के बाद पारित हो गया था। राज्यसभा में इस बिल पर प्रस्तावित सारे संशोधन भी गिर गए। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 454 और विरोध में 2 वोट पड़े थे। इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है।

पीएम मोदी ने इस बिल के पारित होने पर कहा कि हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा में ये एक निर्णायक क्षण है. 140 करोड़ भारतीयों को बधाई. मैं उन सभी राज्यसभा सांसदों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के लिए वोट किया. इस तरह का सर्वसम्मत समर्थन वास्तव में खुशी देने वाला है. इसी के साथ, हम भारत की महिलाओं के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण के युग की शुरुआत करते हैं. ये ऐतिहासिक कदम यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता है कि उनकी आवाज को और भी अधिक प्रभावी ढंग से सुना जाए।

33% रिजर्वेशन का प्रावधान
महिला आरक्षण बिल (Nari Shakti Vandan Adhiniyam) के मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा. लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा. इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है. यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा. यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा.

संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव 3 दशक से अटका हुआ था. पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने इस मुद्दे को उठाया. इसके बाद 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था. लेकिन तब सपा और आरजेडी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध किया. दोनों पार्टियों ने तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी. इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया.

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