रांची । लोकतांत्रिक सरकार में संविधान के तहत विभागीय मंत्री उस विभाग के सर्वे सर्वा होते हैं । विभागीय मंत्री के आदेश का कार्यान्वयन विभागीय अधिकारी न कर उसके विपरीत आदेश जारी करने लगे तो ये सवाल उठना स्वाभाविक है की आखिर ये कैसी सरकार !

राज्य भर के सारे विभाग में अनुबंध पर कर्मी कार्यरत है अनुबंध कर्मी हमेशा अपनी नियमितीकरण की मांग को जोर-शोर से उठाते रहे है।उसके बावजूद सरकार नियमितीकरण की बात तो छोड़िए ,बढ़ती महंगाई को देखते हुईं कर्मियों के मानदेय में समय-समय पर बढ़ोतरी भी नहीं करती है। मजबूरन यदि कर्मी आंदोलन पर उतर आते हैं तो किए गए समझौते के अनुरूप आदेश का अनुपालन न होकर उसके विपरीत एक आदेश फिर से भी विभागीय सचिव जारी कर अनुबंध कर्मियों के लिए हैरतअंगेज कहानी से कम नहीं है। ताजा मामला स्वास्थ्य विभाग के अनुबंध कर्मियों का है।

क्या है मामला

करीब 42 दिनों की लंबी हड़ताल के बाद स्वास्थ्य विभाग के अनुबंध कर्मियों की स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के साथ हुए समझौते में इस प्रस्ताव पर सहमति बनी थी सातवें वेतनमान की अनुरूप अनुबंध कर्मियों को 15% मानदेय वृद्धि के साथ भुगतान किया जाएगा। इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा पत्र भी जारी किए गए। सभी सिविल सर्जन ने प्राप्त पत्र के आलोक में कार्रवाई करनी शुरू की।

कुछ जिले के सिविल सर्जन द्वारा पत्र के आलोक में भुगतान भी कर दिया गया। परंतु प्राप्त सूचना के अनुसार 16 अक्टूबर को विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह को जानकारी मिलने के बाद आदेश जारी कर कहा है कि जिन कर्मियों को यह 15% का भुगतान जारी किया गया है उसे तत्काल अगले महीने के मानदेय में कटौती कर ली जाए और किन्हीं भी NHM कर्मियों को यह भुगतान न किया जाए।

जैसे ही इस आदेश की सूचना राज्य भर में फैली अनुबंधकर्मी और पदाधिकारी सकते में आ गए उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर यह कैसा समझौता ? एक तरफ विभागीय मंत्री जो विभाग के प्रमुख होते हैं उनके द्वारा किए गए समझौते के अनुपालन पर रोक लगाई जा रही है।अब सब कर्मियों की निगाहें विभागीय मंत्री के ऊपर टिकी है की इस त्योहारी सीजन में ये कैसा आदेश?

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