रांची। ये सवाल थोड़ा अजीब है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में चल रहे एक खेल को समझने के लिए आपको ये बातें जानना बेहद जरूरी है! सवाल ये है कि किसी विधायक के चुनाव लड़ने के लिए अगर न्यूनतम उम्र 25 साल है, तो क्या मुख्यमंत्री बनने के बाद वो ये दलील दे सकता है कि वो अब संवैधानिक पद पर आ गया है, इसलिए वो न्यूनतम उम्र सीमा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। अगर ऐसा नहीं हो सकता था, तो फिर एक डाक्टर, जो अभी सिविल सर्जन हैं, कैसे ये दलील दे सकता है कि वो अब प्रशासनिक पद पर आ गया है, इसलिए जिले में उसकी पूर्व की पदस्थापना बतौर एक डाक्टर गिनी ही नहीं जायेगी। दरअसल मामला धनबाद के स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा है।

धनबाद के काले हीरे की चमक ही कुछ ऐसी है कि जो अफसर यहां आता है, कुर्सी पकड़कर ऐसे बैठ जाता है, मानों पूरी जिंदगी इसी जमीं पर काट लेनी है। कई बार शिकायतें हुई, कुछ शिकायतें आधे रास्ते में अटक गयी, कुछ विधानसभा तक पहुंची और पहुंचकर खामोश हो गयी, तो कुछ विभाग के आला अफसर तक पहुंची और वहीं दबा दी गयी और जो कुछ शिकायतें सवाल के तौर पर राजधानी से धनबाद पहुंची, उसे यहां के सिविल सर्जन से लेकर डाक्टरों ने गोल-गोल जिलेबी के तरह ऐसे घुमाया, कि अफसरों को भी उस चकरी को समझने में चक्कर आ गया।

चलिये अब बात मुद्दे की करते हैं। दरअसल कुछ दिन पहले राजधानी से स्वास्थ्य विभाग की चिट्ठी धनबाद के सिविल सर्जन आलोक विश्वकर्मा के पास पहुंची। आलोक विश्वकर्मा से जानकारी तलब की गयी कि उनके जिले में कितने डाक्टर ऐसे हैं जो 9 साल से ज्यादा वक्त से पदस्थ हैं और कितने ऐसे हैं, जो एक ही जगह पर तीन साल से ज्यादा वक्त से पदस्थ हैं। लेकिन इस सवाल के जवाब में सिविल सर्जन ने जो सत्यापित कर सूची भेजी, वो बड़ा कमाल का था। प्रशासनिक अधिकारी बताकर सिविल सर्जन ने खुद अपना तो उस सूची से गायब रखा ही, अपने कुछ चहेतों का भी नाम सूची में दर्ज नहीं की। हद तो तब हो गयी, जब सिविल सर्जन को ये अंडर टैगिंग भी देनी थी की सूची में दर्ज चिकित्सक के अलावे अन्य लोग 9 साल एक ही जिले में और 3 साल एक ही पदस्थापना स्थल में पदस्थ नहीं है। जबकि सच्चाई इससे अलग है।

हालांकि “दैनिक भास्कर” अखबार से बातचीत में सिविल सर्जन डॉक्टर आलोक विश्वकर्मा बताया कि सूची डाक्टरों की मांगी गयी थी, लेकिन अब वो प्रशासनिक अधिकारी है, इसलिए उन्होंने अपना लिस्ट में नहीं भेजा है। ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या सिविल सर्जन बनते ही उनके धनबाद जिले में बतौर चिकित्सक किये गये सालों काम क्या शून्य हो गये। आलोक विश्वकर्मा अपने नाम के आगे अगर डॉक्टर लिखते हैं, तो फिर बतौर डाक्टर धनबाद में 14 साल के कार्यकाल को वो कैसे अनदेखी कर सकते हैं। जानकार बताते हैं कि इसके पीछे बड़ा खेला है।

ट्रांसफर से बचने के लिए पूरा खेला

दरअसल लंबे समय से एक ही जिले में रबड़ी खा रहे डाक्टरों का ट्रांसफर किया जाना है। स्वास्थ्य विभाग ने इसकी तैयारी कर ली है। लिहाजा सभी जिलों से तबादला पूर्व विकल्प मांगे जा रहे हैं। सिविल सर्जन डा आलोक विश्वकर्मा की पोस्टिंग धनबाद में जनवरी 2009 से रही है। उस लिहाज से जिले में उनका कार्यकाल 14 साल से ज्यादा का हो गया है। पिछले साल उन्हें सिविल सर्जन बनाया गया, लिहाजा उन्होंने पूर्व के 12 साल बतौर चिकित्सक के तौर पर किये कार्य अवधि की गणना छोड़कर सिर्फ बतौर सिविल सर्जन और वो भी प्रशासनिक पद बताकर अपनी जानकारी सरकार को नहीं भेजी।

सिविल सर्जन के कई करीबी का भी नाम नहीं

जो सूची राज्य सरकार को भेजी गयी है, उस सूची में सिर्फ सिविल सर्जन ही नहीं, बल्कि कुछ खास लोगों के भी नाम नहीं है। सदर अस्पताल के उपाधीक्षक व डीआरसीएचओ संजीव कुमार प्रसाद का भी नाम नहीं भेजा गया, जबकि संजीव कुमार पिछले कई सालों से धनबाद में पोस्टेड हैं। डॉ संजीव भी अलग-अलग पदों पर रहते हुए अभी कई सालों से DRCHO के पद संभालते हुए सदर अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक के तौर पर पदस्थ हैं। जाहिर है निर्देश के मुताबिक उनका भी नाम भेजा जाना था।

इन डाक्टरों के भेजे गये नाम

जानकारी के मुताबिक धनबाद जिले से 10 से 12 लोगों के नाम भेजे गये हैं। वो ऐसे चिकित्सक हैं, जो 13-13 साल से एक ही जिले में पदस्थ हैं। डॉ मिनी बालन करीब 10 साल से पदस्थ हैं, जबकि कुमारी पूनम भी करीब 10 साल, डॉ संजय कुमार भी करीब 10 साल, डॉ सुधा सिंह 12 साल 6 महीने, डॉ आलोक श्यानंद 9 साल 8 महीना, डॉ नताशा साहा करीब 14 साल, डॉ मनीष कुमार करीब 10 साल , डॉ रेखा कुमारी करीब 14 साल, डॉ कुमार गौतम करीब 10 साल, डॉ संतोष रजन 11 साल, डॉ इला राय करीब 10 साल और प्रतिमा दत्ता करीब 10 साल से धनबाद में ही पदस्थ हैं।

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