रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से नए अंदाज में शुरू होगा। सत्र की कार्यवाही शुक्रवार से शुरू होगी। सत्र के हंगामेदार होने के आसार हैं। पांचवी विधानसभा के 12वें सत्र में पहली बार विरोधी दल की ओर से नेता प्रतिपक्ष मौजूद रहेंगे। एक बार फिर सत्ता पक्ष को घेरने के लिए विरोधी दल भाजपा के नेतृत्व में एनडीए ने कमर कस ली है। भाजपा अपराध, भ्रष्टाचार, बांग्लादेशी घुसपैठ, शिक्षक नियुक्ति, खनन जैसे मुद्दों पर हमलावर रहेगी। दूसरी ओर सत्ता पक्ष ने भी विपक्ष के एक- एक वाजिब सवाल का सदन में जवाब देने की रणनीति बना ली है।

हेमंत सरकार खतियान आधारित स्थानीय नीति, ओबीसी आरक्षण और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक को फिर से विधानसभा में पेश करने की तैयारी कर रही है। इन्हें तत्कालीन राज्यपाल ने विभिन्न कारणों से लौटा दिया था। सरकार ने इन तीनों विधेयकों को फिर से पेश करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 200 व झारखंड विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियम98 (1) के तहत राज्यपाल के संदेश के साथ सरकार एवं विधानसभा को उपलब्ध कराने का अनुरोध राजभवन सचिवालय से किया है।

  1. खतियान विधेयक

स्थानीय व्यक्तियों की झारखंड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभ देने के लिए यह विधेयक लाया गया था। इसके अनुसार स्थानीय व्यक्ति का अर्थ झारखंड का डोमिसाइल होगा जो एक भारतीय नागरिक है और झारखंड में रहता है। उसके पूर्वज का नाम 1932 या उससे पहले के खतियान में दर्ज है।

2. आरक्षण विधेयक

बिल में झारखंड में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी जबकि एसटी आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 फीसदी और एससी का आरक्षण 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी करने की व्यवस्था की गई थी. अगला ईडब्ल्यूएस के लिए भी 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गय लेख V इसके जरिए राज्य की नौकरियों में कुल आरक्षण 77 फीसदी किया गया था।

  1. मॉब लिंचिंग निषेध बिल

भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक-2021 ध्वनिमत स दिसंबर 2021 को विधानसभा से पारित हुआ था। इसके बाद सरकार ने राष्ट्रपति की मंजूरी लेने के लिये इसे राज्यपाल को भेजा था। इस विधेयक भीड़ हिंसा के दोषी को तीन साल से उम्र कैद तक की सजा, संपत्तियों की कुर्की के अलावा 25 लाख तक जुर्माने का प्रावधान किया गया था।

बता दें कि तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने 29 जनवरी 2023 को 1932 के खतियान से जुड़े स्थानीयता विधेयक को लौटा दिया था। राजभवन की ओर से कहा गया था कि विशेष प्रावधान के तहत नियोजन में शर्तें लगाने की शक्तियां संसद के पास हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का भी उल्लेख कर विधेयक की वैधानिकता पर प्रश्न उठाते हुए इसे पुनर्समीक्षा के लिए वापस किया था। वहीं सूत्रों के अनुसार राजभवन ने अटॉर्नी जनरल से विधिक राय लेने के बाद जनवरी में विधिक समीक्षा करने का निर्देश देते हुए आरक्षण विधेयक लौटा दिया था। साथ ही भीड़ हिंसा और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021 को राजभवन ने दो अलग-अलग कारण बताकर सरकार को लौटा दिया था।

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