भगवान राम के पूर्वज शरीर के साथ जाना चाहते थे स्वर्ग, लेकिन देवताओं ने बीच रास्ते में ही रोक दिया, जानिये फिर क्या हुआ था..

Story of King Satyavrat: इक्ष्वाकु वंश के राजा सत्यव्रत को त्रिशंकु के नाम से भी जाना जाता है। सत्यव्रत से त्रिशंकु बनने की इनकी कहानी भी बेहद रोचक है। दरअसल वृद्धावस्था में राजा सत्यव्रत ने अपने राज्य का कार्यभार अपने पुत्र हरिश्चंद्र को सौंपा और स्वयं वो वन में चले गये। राम जी के पूर्वज सत्यव्रत एक धार्मिक पुरुष थे इसलिए उनकी आत्मा स्वर्ग के योग्य थी लेकिन उनकी चाह थी कि वो सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करें। उनकी ये इच्छा पूरी हुई या नहीं, उनके इस फैसले से देवताओं पर क्या प्रभाव पड़ा, इसके बारे में आइए विस्तार से जानते हैं।

सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे सत्यव्रत
सत्यव्रत अपने शरीर के साथ ही स्वर्ग जाना चाहते थे, लेकिन ये कार्य वो स्वयं करने में वो असमर्थ थे। अपनी इच्छा को लेकर सत्यव्रत ऋषि वशिष्ठ के पास पहुंचे, वशिष्ठ ऋषि में इतना योगबल था कि वो सत्यव्रत को सशरीर पहुंचा सकते थे। हालांकि राजा की बात को सुनकर वशिष्ठ चकित हुए और उन्होंने इसे नियमों के विरुद्ध बताया। कई बार प्रार्थना करने के बाद भी वशिष्ठ राजा को सशरीर स्वर्ग भेजने के लिए तैयार नहीं हुए।
वशिष्ठ ऋषि ने जब सत्यव्रत की बात नहीं मानी तो सत्यव्रत वशिष्ठ जी के बड़े पुत्र शक्ति के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बतायी। साथ ही राजा ने प्रार्थना की कि, वो उन्हें सशरीर उन्हें स्वर्ग भेजें। शक्ति को जब पता चला कि उनके पिता सत्यव्रत को पहले ही मना कर चुके हैं और उसके बाद भी राजा ने उनके पास आने का दुस्साहस किया है तो शक्ति ने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का श्राप दे दिया। त्रिशंकु यानि निराधार, जिसका कोई आधार न हो। शक्ति के श्राप के बाद सत्यव्रत ने अपना राज्य छोड़ दिया और वन-वन भटकने लगे।

वन में विश्वामित्र से मिले राजा त्रिशंकु
वन में भटकते हुए त्रिशंकु की मुलाकात ऋषि विश्वामित्र से हुई और राजा ने पूरी बात विश्वामित्र को बताई। विश्वामित्र को जब ये बात पता चला कि, ऋषि वशिष्ठ ने राजा त्रिशंकु की बात को नहीं माना तो उन्होंने राजा को वचन दिया कि उन्हें स-शरीर स्वर्ग पहुंचाएंगे। इसके पीछे कारण ये था कि विश्वामित्र, गुरु वशिष्ठ को अपना प्रतिद्वंदी मानते थे। वो खुद को वशिष्ठ से बेहतर साबित करने का मौका नहीं झोड़ना चाहते थे।

विश्वामित्र के योगबल से बढ़ने लगे स्वर्ग की ओर
विश्वामित्र ने अपने योगबल का उपयोग करके सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग में भेजने की पूरी तैयारी की। अनुष्ठान शुरू होने के बाद सत्यव्रत धीरे-धीरे स्वर्ग की और उठने लगे। ये दृश्य देखकर स्वर्ग के देवता चकित रह गए। लेकिन इंद्र ने सत्यव्रत को स्वर्ग में प्रवेश करने से रोक दिया और उन्हें पृथ्वी की ओर वापस फेंक दिया। जिसके कारण सत्यव्रत स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटक गए। ये वजह भी है कि, सत्यव्रत को त्रिशंकु के नाम से जाना जाता है।

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इसके बाद विश्वामित्र देवताओं पर बहुत क्रोधित हुए, लेकिन देवताओं ने जब उन्हें समझाया कि ऐसा करना अप्राकृतिक है तो वो मान गए। हालांकि त्रिशंकु को दिए वचन को पूरा करने के लिए विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग का निर्माण कर दिया और देवताओं से वचन लिया कि वो सत्यव्रत को उनके बनाए स्वर्ग में रहने देंगे। देवताओं ने विश्वामित्र की बात मानी और इस तरह विश्वामित्र के बनाए स्वर्ग में राम जी के पूर्वज त्रिशंकु का प्रवेश हुआ।

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