रांची स्वास्थ्य विभाग में शीर्ष 2211(परिवार कल्याण) अंतर्गत कार्य कर रहे राज्यभर में कर्मचारी भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। सुनने में ये अटपटा जरूर लग रहा होगा पर ये बिल्कुल हकीकत है। ये भुखमरी किसी प्राकृतिक आपदा या अकाल के कारण नहीं बल्कि अपने ही राज्य में अपने विभाग के आला अधिकारी के वजह से है, जिन्होंने 24× 7 के सिद्धांत पर काम तो करवाया पर उनलोगों को काम के बदले पिछले 7 माह से वेतन नहीं दिए।

मामला ये नहीं, की वेतन भुगतान में देरी हो रही है, मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब विभाग के आला अधिकारी इस बाबत बोलने की तैयार नहीं। तो सवाल उठना स्वाभाविक है की कहीं मामले की जानबूझकर अनदेखी तो नहीं की जा रही हैं। स्वास्थ्य विभाग की संवेदनशीलता तो देखिए साहब….शीर्ष 2211 (परिवार कल्याण) अंतर्गत कर्मियों की ये दुर्दशा पिछले 10 वर्ष से भी लंबे समय से चलती आ रही है और ये मामला राज्यभर में सैंकड़ों कर्मियों का नहीं बल्कि कई हजारों का हैं उसके बावजूद कोई सुधि लेने वाला नहीं। वर्तमान में मार्च 2022 से राज्यभर के कर्मियों का वेतनादि का भुगतान नहीं हुआ है। न जाने कितने होली, दिवाली, ईद बिना वेतन के गुजर गए और अब कर्मियों को फिर से आशंका हो रही की कहीं इस बार भी दुर्गा पूजा, दिवाली यूं ही तो नहीं गुजारनी पड़ेगी।

HPBL को प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग में अलग अलग शीर्ष -उपशीर्ष के अंतर्गत कर्मचारियों का वेतनादि का भुगतान किया जाता रहा है। जिन्हें योजना और गैर योजना मद के नाम से जाना जाता है। गैर योजना मद के अंतर्गत कर्मियों का वेतनादि के भुगतान का बोझ राज्य सरकार पर पड़ता हैं। वहीं योजना मद के अंतर्गत कर्मियों के भुगतान का खर्च राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों के सामूहिक बोझ पर पड़ता है।

वर्तमान स्थिति में शीर्ष 2211(परिवार कल्याण) अंतर्गत कर्मियों का भुगतान NHM द्वारा किए जाने का प्रावधान किया गया है। परंतु वित्तीय वर्ष के लगभग 7 माह गुजरने के बाबजूद मार्च 2022 से भुगतान नहीं हो पाया है ,जब HPBL की टीम ने भुगतान न होने की वजह जानने कि कोशिश की तो जिले के आला अधिकारी आवंटन न होने की वजह बता कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की।

ऑल झारखंड पारा मेडिकल एसोसिएशन (AJPMA) ने लिखा पत्र

मामले की गंभीरता को देखते हुए ऑल झारखंड पारा मेडिकल एसोसिएशन (AJPMA) के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह ने विभाग के मंत्री, अपर मुख्य सचिव ,अभियान निदेशक को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है की विगत छ माह से वेतन न मिलने से कर्मियों की हालत दयनीय हो गई है इसलिए अविलंब इस पर संज्ञान लेकर वेतनादि भुगतान की कारवाई की जाय। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार सिंह ने कहा की सब्र की सीमा पार हो चुकी है। वेतन के अभाव में बच्चों की शिक्षा, इलाज, सामाजिक दायित्व पर असर पड़ रहा है। आगामी पर्व त्यौहार को देखते हुए जल्द भुगतान कराए जाय अन्यथा मजबूरन एसोसिएशन कड़े निर्णय लेने को बाध्य होगा।

भुखमरी के कगार पर कर्मियों को पहुंचाने में कौन है जिम्मेदार

विभागीय प्रक्रिया को थोड़ा समझने की कोशिश की जाय तो जब से NHM के तहत भुगतान की कारवाई शुरू हुई तब से आवंटन अभियान निदेशक NHM से निर्गत की जाती रही है। जबकि संचिका स्वास्थ्य विभाग के सचिव और विभागीय मंत्री से होकर गुजरती है। उसके बाबजूद अबतक ये परेशानी उनतक नही पहुंची,ये समझ के परे है। जबकि जिले स्तर पर सिविल सर्जन, जिला लेखा प्रबंधक, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, प्रखंड लेखा प्रबंधक सबों की सामूहिक भूमिका है।

सवाल अपने आप में अहम है की प्रखंड स्तर और जिले स्तर के पदाधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मियों से काम तो लेते हैं पर उनको काम के बदले समय पर वेतन भुगतान क्यों नहीं हो पाती? आवंटन नहीं आने की बात कहने मात्र से जिम्मेवारी कम तो नहीं हो जाती? आखिरकार राज्यस्तर के पदाधिकारी तक ये बात समय रहते क्यों नहीं पहुंच पाती? कर्मियों की समय पर वेतनादि भुगतान की जिम्मेवारी आखिर किसकी है? समय रहते कर्मियों की समस्या का समाधान क्यों नही हो पाता? आंदोलन की राह पर जाने को मजबूर एसोसिएशन से काम की क्षति की जिम्मेवारी आखिर कार किसकी होगी? इन तमाम सवालों के जवाब देने से भले जिले और राज्य स्तर के पदाधिकारी बच रहे हों पर मांगे पूरा न होने से कर्मियों का गुस्सा भड़कना लाजिमी है।

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