Ranchi। Highcourt order for niymitikaran …अलग अलग विभागों में अनुबंध पर कार्य कर रहे कर्मियों के नियमितिकरण के मुद्दे पर झारखंड हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। 69 याचिकाओं पर झारखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को. न्यायमूर्ति एसएन पाठक की कोर्ट ने मामले पर निर्देश दिया है की प्रार्थी अपना रिप्रेजेंटेशन एक माह में संबंधित विभाग को देंगे.

संबंधित विभाग के अध्यक्ष कमेटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम उमा देवी के अलावे अन्य जजमेंट एवं हाई कोर्ट के नरेंद्र कुमार तिवारी बनाम स्टेट आफ झारखंड के जजमेंट को देखते हुए 3 माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया।मालूम हो की नियमितिकरण की अलग अलग याचिका पर बहस के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।

हाईकोर्ट ने दिया ये निर्देश

हाईकोर्ट ने ये भी कहा की विभाग के स्तर पर अगर यह मामला निष्पादित नहीं होता है तो विभागीय सचिव कारण बताते हुए उनके मामले को मुख्य सचिव के पास भेजेंगे. मुख्य सचिव उसपर चार माह में निर्णय लेंगे. इसके लिए मुख्य सचिव विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएंगे. यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अलग अलग जजमेंट को संज्ञान में रखते हुए फैसला लेगी. अगर प्रार्थी को लगता है कि उनके मामले में सही फैसला नहीं आया है तो वह फिर से कोर्ट आ सकते हैं. कोर्ट ने ये भी टिप्पणी कि नियमितीकरण झारखंड का बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है.

सरकार की तरफ से ये था तर्क

याचिकाकर्ताओं में संविदाकर्मी, दैनिककर्मी और अस्थाईकर्मी भी शामिल हैं. उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के कई जजमेंट सहित राज्य सरकार की नियमावली का जिक्र करते हुए कहा गया कि उनकी नियुक्ति नियमित की जानी चाहिए. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जिस समय इन कर्मियों की नियुक्ति हुई थी तो उसे समय वह पद स्वीकृत और रिक्त पद में शामिल नहीं था, हालांकि बाद में यह पद स्वीकृत व रिक्त पदों में शामिल किया गया. इसलिए याचिकाकर्ताओं को नियमित नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट का दिया हवाला

मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से यह पक्ष रखा गया था कि वे स्वीकृत व रिक्त पद पर 10 वर्षों से अधिक समय से काम कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में कहा है कि अगर 10 साल से अधिक समय से कर्मी अस्थाई रूप से स्वीकृत व रिक्त पद पर काम कर रहे है तो सरकार स्कीम बनाकर उन्हें सरकार नियमित करें.

मालूम हो की राज्य गठन के बाद से ही सरकार अनुबंध पर कर्मियों से काम ले रही है।परंतु नियमित नियुक्ति और नियमितिकरण के मुद्दे पर सरकार की नीति काफी धीमी है।याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी कहा गया था कि अगर कोई लंबे समय से काम कर रहा हो भले ही वह जिस पद पर काम कर रहा हो वह स्वीकृत या रिक्त पद पर हो ऐसे में सरकार को स्वीकृत कराकर उन्हें नियमित करना चाहिए.

याचिकाकर्ताओं में कपिल देव सिंह, महेंद्र उरांव, अब्दुल कलाम, अशोक पंडित, धारो उरांव, नूतन कुमारी सहित 69 अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थी. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता सौरभ अरुण, अमृतांश वत्स, इंद्रजीत सिन्हा, राधाकृष्ण गुप्ता एवं एके साहनी ने पैरवी की। अलग अलग समय में नियुक्त कर्मियों के कई याचिका पर एक साथ हाईकोर्ट ने फैसला दिया।

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