धनबाद । स्वास्थ्य विभाग का हाल ऐसा की न कोई टोकने वाला, न कोई रोकने वाला। आम जनता के लिए भेजी गई सरकारी राशि का सदुपयोग हो या दुरुपयोग हर जगह वरीय पदाधिकारी की दूरदर्शिता और दिशा निर्देश की कमी दिख रही है। स्वास्थ्य विभाग की मानें तो हर आंकड़े में फिसड्डी धनबाद फिर भी अपनी गलती सुधारने को तैयार नहीं।

ताजा मामला स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्देशित प्रखंड स्तरीय स्वास्थ्य मेले के आयोजन को लेकर है। एक दिवसीय स्वास्थ्य मेले के आयोजन के लिए विभाग ने लाखों रुपए आवंटित किए हैं। इस मेले का उद्देश्य आम जनता के लिए स्वास्थ्य जागरूकता से लेकर विशेष स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना है। इसके लिए आम जनता से लेकर जनता के प्रतिनिधि तक का साथ लेकर इस कार्यक्रम को सफल बनाना है। परंतु विभाग का ये निर्देश सिर्फ कागजों पर ही सिमट कर रह गया। इन कार्यकलाप से जनप्रतिनिधि भी खासे नाराज हैं।

प्रचार प्रसार कागजों पर सिमटी

स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयोजित स्वास्थ्य मेले की लेकर न तो जिला स्तर से कोई मॉनिटरिंग कि जाती है न ही इसके उपयोगिता प्रमाण पत्र के बारीकियों पर ध्यान दिया जाता है। मसलन बड़े बड़े टेंट दिखाकर और कागजी खानापूर्ति कर पैसों की बंदरबांट में दिलचस्पी ज्यादा और उपलब्धि शून्य नजर आती है।

वैसे तो प्रखंड स्तर पर लगने वाले मेले की सफलता बीडीओ से लेकर तमाम जन प्रतिनिधि की सहभागिता के साथ बिना सफल होने में संदेह नजर आता है। आम कार्यक्रम की तरह कागजी खानापूर्ति में भले ही बता दिया जा रहा हो की इस मेले से इतने लोग लाभान्वित हुए परंतु धरातल पर ये आंकड़े कुछ अलग ही कहते है।

नहीं होती जनप्रतिनिधि के साथ बैठक

मामला पैसों के बंदरबांट से जुड़ा रहता है इसलिए इसके आयोजन और सफलता से संबंधित न तो जनप्रतिनिधि, न ही पदाधिकारियों के साथ बैठकें होती है। जिसमें आयोजन से संबंधित सुझाव और विचार को अमल कर वास्तव में जनता के लिए आए पैसे सदुपयोग किया जा सके। परंतु इस तरह के आयोजन से अनजान जन प्रतिनिधि को कोई सहभागिता नही रहती।

विभागीय पदाधिकारी की मानें तो इस तरह के आयोजन में दवा खरीद, स्टॉल, प्रचार प्रसार, साज सज्जा से लेकर सभी व्यवस्था पर अलग अलग राशि आवंटित किए जाते है। परंतु कागजों पर खर्च बयान करने वाले कार्यक्रम आम जनता के लिए कितने फायदेमंद होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग पर अंगुली उठना स्वाभाविक है की कहीं पैसे की बंदरबांट में सबकी मिलीभगत तो नहीं?

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