Chaitra Navratra: स्थापना के साथ वासंतिक नवरात्र बुधवार 22 मार्च, 2023 से शुरू हो गया. वासंतिक नवरात्र का आरंभ हिंदू नववर्ष के साथ होता है. दो दिन से मूसलाधार बारिश होने के कारण वासंतिक नवरात्र में जिन दुर्गा मंडपों में पाठ होता है, वहां थोड़ी परेशानी हुई है. बावजूद इसके लोगों में काफी उत्साह है. बुधवार को कलश स्थापन के साथ पूजा शुरू होगी. जिसको लेकर मंगलवार को स्थानीय लोग तैयारी में देर शाम तक लगे हुए थे. नवरात्र को लेकर सप्तमी से दशमी तक विशेष चहल-पहल रहेगी.

पंडित गोपाल पांडेय ने बताया कि नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है. सौभाग्य की देवी शैलपुत्री की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा. बताया कि चैत्र नवरात्र में नौ दिनों तक मां दुर्गे के अलग-अगल स्वरूप की पूजा होती है।

चैत्र नवरात्रि 2023 कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि का शुभ मुहूर्त (Chaitra Navratri 2023 Shubh Muhurat) 22 मार्च 2023 दिन बुधवार से सुबह 6 बजकर 30 मिनट से शुरू है और उसी दिन सुबह 7 बजकर 32 तक है. इस शुभ मुहूर्त में घट स्थापना यानी कलश स्थापना करना चाहिए.

2023 कलश स्थापना विधि

  • चैत्र नवरात्रि मां देवी को पूरी तरह से समर्पित होते हैं. नवरात्रि के पहले ही दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना की जाती है. यह दिन बेहद खास होता है.
  • कलश स्थापना शुरू करने से पहले सूर्य के उदय होने से पहले उठे और मां धरती का आशीर्वाद लेते हुए, नहाकर साफ कपड़ा पहने.
  • जिस जगह पर कलश को स्थापित करना है उस स्थान को साफ कर लें.
  • लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां देवी की प्रतिमा स्थापित करें.
  • कपड़े पर थोड़े चावल रख ले. एक छोटी सी मिट्टी के पात्र में जौ रख दें.
  • उस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें.
  • कलश पर स्वास्तिक बना लें और उसमें अक्षत, सिक्का, साबुत सुपारी डालकर पान के पत्ते रखें. एक नारियल ले उस पर चुनरी से लपेट लें उसे कलश से बांधे.
  • कलश के ऊपर उस नारियल को रख लें. इसके बाद दीपक, सिंदूर, अक्षत, दही, फूल, फल आदि का आह्वान करते हुए कलश की पूजा करें.
  • इस दिन मां देवी की पूजा तांबा की कलश से करें

ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें. पूरे परिवार के साथ विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है. घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है. इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है. इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं. इसके बाद सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें. माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं. इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें. इसके बाद परिवार समेत माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें. शाम के समय में भी माता की आरती करें और ध्यान करें.

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