जामताड़ा स्वास्थ्य विभाग में कार्य प्रणाली में सुधार और स्वास्थ्य सेवा दुरुस्त करने के ख्याल से अलग अलग पद सृजित किए गए हैं। उनमें एक सृजित पद हैं CHO का। जिसके एवज में उन्हें मोटी तनख्वाह भी दी जा रही है, परंतु स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई परिवर्तन होती नही दिख रही। स्वास्थ्य विभाग का मानना था कि कर्मचारी के पदनाम में अधिकारी जोड़ दिए जाने कार्य प्रणाली और गुणवत्ता में सुधार हो पाएगी, परंतु शायद ऐसा हो नहीं सका। ऊपर से स्वास्थ्य विभाग की मेहरबानी तो देखिए.. न तो इन कर्मचारियों की कार्य की समीक्षा करने वाला न ही कोई देखने वाला। कागजी खानापूर्ति तो खूब हो रही
इन कर्मियों पर सरकारी राशि से प्रशिक्षण और सुविधा के नाम पर पैसे खूब लुटाए जा रहे हैं। परंतु जिले के पदाधिकारी के पास इतना वक्त भी नही की इन प्रशिक्षण का लाभ ग्रामीण जनता को मिल भी रहा है या नही ,ये देख सके। हम बात कर रहे हैं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHO) की। GNM/B.sc नर्सिंग का प्रशिक्षण प्राप्त उम्मीदवार को ब्रिज कोर्स करा कर स्वास्थ विभाग ने बना तो दिया CHO, परंतु जिस अवधारणा के साथ इस पद का सृजन किया गया था उसका लाभ ग्रामीणों को मिल सके ऐसा होता नहीं दिख रहा। आइए देखते हैं ग्राउंड रिपोर्ट…
स्वास्थ्य केंद्र को अपग्रेड कर बना दिया HWC, सुविधा नगण्य
राज्य सरकार द्वारा प्रखंड स्तर पर तीन प्रकार के केंद्र बनाए गए थे, पीएचसी, एपीएचसी, एचएससी। पांच वर्ष पूर्व NHM के नए निर्देश के मुताबिक कुछ स्वास्थ्य उपकेंद्र (HSC) को अपग्रेड करते हुए HWC बना दिया गया। जिसका मकसद ग्रामीणों को अधिक से अधिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना था। HWC केंद्र के संचालन की जिम्मेदारी CHO को दी गई।
इसके लिए एचएससी के भवन की मरम्मत, आवास और खास अंदाज के साथ निर्माण कार्य कराया गया। जिसकी पहली शर्ते थी HWC में बनाए गए आवास में सीएचओ को रहने की। ताकि केंद्र में आने वाले ग्रामीणों को 24×7 स्वास्थ्य लाभ मिल सके।
क्या क्या देनी है सुविधा,केंद्र पर नहीं रहते हैं CHO
HWC में कार्यरत CHO को प्रसव सुविधा, एएनसी जांच , स्वास्थ्य प्रशिक्षण, प्राथमिक उपचार, सामुदायिक क्षेत्र प्रशिक्षण, महामारी उपचार सहित अन्य सभी सुवधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश है। परंतु जिले में करीब 40 CHO कार्यरत रहने के बावजूद किसी भी HWC पर ये सारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। साथ ही किसी भी केंद्र पर कर्मचारी के नहीं रहने से भवन जर्जर हो चुकी है। मरम्मती और थोड़ी बहुत रख रखाव के लिए अनटाइड फंड भी हर साल मिलते है परंतु वो खर्च कहां होते है या महज कागजों तक ही सीमित हैं ये जांच का विषय है।
मिलती हैं मोटी तनख्वाह
CHO को उनके कार्य के बदले 40 हजार मासिक भुगतान किए जाने का प्रावधान हैं। सरकार के निर्देश के मुताबिक ये राशि उनके कार्य की समीक्षा के उपरांत दिए जाने है। जिसमें उनके हरेक कार्य की समीक्षा और केंद्र में रहने के उपरांत दिए जाने का आदेश निर्गत है। बाबजूद इसके भुगतान करने वाले पदाधिकारी इसकी समीक्षा नहीं करते,परंतु भुगतान बिना किसी रोक टोक के जारी है। कार्य की समीक्षा से संभव हैं की स्वास्थ्य सेवा बेहतर होती।
नहीं होती कार्य समीक्षा, हर माह हो रहा भुगतान
वर्तमान समय में स्वास्थ्य उपकेंद्र और HWC के कार्य प्रणाली और स्वास्थ्य सुविधा में कोई इजाफा होता नहीं दिख रहा। दिशा निर्देश के अनुरूप कार्य प्रणाली में बदलाव से ग्रामीणों को लाभ मिल पाता। इसके लिए आवश्यक है की समय समय पर जिला के पदाधिकारी द्वारा निरीक्षण किया जाय। परंतु इस मामले में जिला के पदाधिकारी चुप्पी साधे हैं।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) ने सरकार के ही आदेश पर उठाई अंगुली
HPBL की टीम ने जब जिला कार्यक्रम प्रबंधक संगीता लुसी बाला एक्का से इस विषय पर बात की तो उल्टे सरकार के आदेश को ही कठघरे में खड़ा किया। उनका मानना हैं की संसाधन के अभाव में HWC केंद्र पर CHO नहीं रहते। CHO का भवन रहने लायक नहीं है। सवाल केंद्र पर रहने या नही रहने का नहीं बल्कि सवाल ये है की जिनकी नियुक्ति ही केंद्र पर रहने को लेकर हुई हो तो विभाग के दिशा निर्देश के अनुपालन कि जिम्मेवारी किसकी है? साथ ही भवन बने कुछ ही वर्ष हुए है ऐसे में भवन की स्थिति जर्जर कैसे हो सकती है। जबकि रिपोर्ट के मुताबिक भवन की स्थिति अच्छी है। कार्य का अनुपालन नहीं हो रहा तो सभी कार्य के लिए भुगतान कैसे किया जा रहा है। मालूम हो की 1000 रुपए प्रत्येक कार्य के लिए इंसेंटिव दिए जाने का प्रावधान है। जबकि HWC के रख रखाव के लिए सालाना 50 हजार से ज्यादा की राशि भी दी जाती है।
आखिरकार उस राशि का इस्तेमाल कहां किया जा रहा है? क्या ये सरकारी राशि का दुरुपयोग नहीं हैं? जिला कार्यक्रम प्रबंधक जिनकी पहली जिम्मेवारी कार्यक्रम को सुचारू रूप से कार्यान्वयन करना है। उनसे जब इन सभी मामले पर बात करने की कोशिश की गई तो घर में साफ सफाई करने का हवाला देकर विभाग का पक्ष देने से मना कर दिया गया। इन सभी स्तर पर विस्तृत कार्य समीक्षा की जरूरत है।जब विभागीय आदेश के अनुरूप कार्य न करने पर भी भुगतान होता रहे तो सवाल उठना लाजिमी है, की कहीं ये सबकी मिलीभगत तो नहीं।
शेष अगले अंक में एक नए पड़ताल के साथ