चित्तौरगढ़। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अपने शिक्षक का पैर छुते देख, हर कोई हैरान रह गया। उपराष्ट्रपति का गुरू के प्रति इस सम्मान ने साबित कर दिया, कि छात्र कितना भी बड़ा ओहदा क्यों ना पा ले, वो शिक्षक की नजर में हमेशा छात्र ही रहता है। दरअसल उपराष्ट्रपति धनकड़ चित्तौड़ में सैनिक स्कूल पहुंचे थे। इस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की थी। स्कूल पहुंचने पर उन्होंने अपना हॉस्टल और कमरा देखा।

इस दौरान वे अपने टीचर से मिलने उनके घर भी पहुंचे और चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया। इस दौरान स्कूल के दिनों की यादें ताजा की। इसके बाद स्कूल के स्टूडेंट्स से अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहा- मैं पढ़ने में होशियार था, लेकिन मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। इस बारे में टीचर्स को बता दिया था। सैनिक स्कूल में ही मेरा पुनर्जन्म हुआ है।

उपराष्ट्रपति करीब 20 मिनट अपने सर के घर रुके। इस दौरान उन्होंने स्कूल के दिनों की शरारतों और अन्य पलों को याद किया। उन्होंने अपने टीचर के साथ शेयर किया कि कैसे स्कूल के बच्चे बंक करके फिल्म देखने जाते थे। इस पर सभी हंसने लगे। इसके अलावा दोस्तों के साथ ठेले पर नाश्ता करने के पलों को याद किया। एचएस राठी के बेटे बीएसएफ डिप्टी कमांडेंट दीपक राठी दिल्ली से ही उपराष्ट्रपति के साथ आए। दीपक की पत्नी पूनम राठी और उनके दोनों बेटे भी साथ में रहे।

सैनिक स्कूल के छात्र-छात्राओं से मुलाकात के दौरान उपराष्ट्रपति जी ने अपने स्कूल के दिनों के कई रोचक संस्मरण सुनाए। उन्होंने बताया कि गांव के प्राइमरी स्कूल में पांचवीं कक्षा तक ABCD नहीं सिखाई जाती थी इस कारण उन्हें सैनिक स्कूल में शुरुआती दिनों में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एक बार प्रिंसिपल ने कक्षा में उनसे अंग्रेजी में कुछ सवाल पूछे तो वे समझ नहीं सके। प्रिंसिपल ने उन्हें शाम को अपने घर पर चाय के समय बुलाया, तब उन्होंने हिम्मत कर प्रिंसिपल से कहा, “सर मैं होशियार लड़का हूँ, पर अंग्रेजी नहीं आती।” उपराष्ट्रपति जी ने बताया कि उन प्रिंसिपल ने मुझे मार्गदर्शन दिया और मेरा जीवन बदल गया। मैं आजीवन उनका ऋणी रहूँगा।

एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति जी ने बताया कि उनके बड़े भाई श्री कुलदीप धनखड़ भी सैनिक स्कूल में पढ़ते थे और उन्हें एक बार स्कूल से सजा मिली, साथ ही एक लैटर उनके पिता को भेजा गया जिसमें लिखा था “Your ward has been awarded punishment for camel riding.” चूँकि गांव में अंग्रेजी किसी को आती नहीं थी अतः उन लोगों ने समझ लिया कि कुलदीप को स्कूल से “अवार्ड” मिला है।

श्री धनखड़ ने बताया कि बेहद कम उम्र में सैनिक स्कूल में आने से उनकी मां को बहुत चिंता रहती थी। अतः वे रोज एक पोस्टकार्ड अपनी मां के लिए लिख कर भेजा करते थे। “जब मैं घर जाता था तो मां खाली पोस्टकार्ड का एक पैकेट मुझे दे दिया करती थीं” उन्होंने बताया।

अपने कैरियर के शुरुआती दिनों के बारे में बात करते हुए उपराष्ट्रपति जी ने बताया कि उनका एक सपना था अपनी स्वयं की लाइब्रेरी बनाने का। “मैं आभारी हूँ उस बैंक मैनेजर का जिसने मुझे उस समय छह हजार रुपए की लोन दी जिससे मैं अपनी लाइब्रेरी सेट अप कर पाया,” उन्होंने कहा।

इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति जी ने युवाओं से कहा कि आप भाग्यशाली हैं कि ऐसे समय में जी रहे हैं जब भारत अभूतपूर्व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है। “आज देश में ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया गया है कि आपके पास सिर्फ एक आईडिया होना चाहिए, आपको वित्त और मार्गदर्शन की कमी नहीं रहेगी,” उन्होंने कहा और युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने आईडिया को अपने दिमाग में न रखें बल्कि उसे हकीकत में उतारने की हर संभव कोशिश करें।

छात्रों को अति-प्रतिस्पर्धा में न पड़ने की सलाह देते हुए उपराष्ट्रपति जी ने उनसे अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था और हमेशा डरा रहता था कि फर्स्ट न आया तो क्या होगा। उस डर के कारण मैंने बहुत कुछ खोया… मैं अधिक दोस्त बना पाता, अधिक हॉबी कर पाता।”

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