धनबाद । जिले को भले ही कोयला की राजधानी कही जाती हो परंतु यहां के अधिकारियों के कारनामे भी एक से बढ़कर एक है। पिछले साल जिस जिले पर 6 बच्चों के मौत का दाग लगा हो उस दाग को मिटाने के बजाय पदाधिकारी अपने संरक्षण में कर्मी पर मेहरबानी दिखा रहे हैं ।आखिर इस मेहरबानी की वजह कई सवाल खड़े करते है। मसलन वर्षों से जमे अधिकारियों के तबादले यही वजह तो नहीं? अधिकारी अपने स्वार्थ की पूर्ति तो नहीं कर रहे? अन्यथा अधिकारियों के नाक के नीचे 3 – 3 महीने तक प्रतिरक्षण न होना उनके पद पर बने रहने पर सवालिया निशान लगा रहा है।

क्या है मामला

जिले के गोविंदपुर प्रखंड अंतर्गत स्वास्थ्य उपकेंद्र आसना का आंगनबाड़ी केंद्र बागदुडीह 2, जहां 3 महीने के बाद एएनएम द्वारा प्रतिरक्षण कार्य करने की बात सामने आई है। उस केंद्र पर प्रतिरक्षण करने की जिम्मेवारी एएनएम की है। जो पिछले 25 अप्रैल को प्रतिरक्षण कार्य करने गई थी, जिसके 3 महीने बाद 25 जुलाई को प्रतिरक्षण कार्य करने आंगनबाड़ी केंद्र बागदूडीह पहुंची।

क्या कहती है आंगनवाड़ी सेविका

680 की आबादी वाले इस क्षेत्र में आंगनवाड़ी केंद्र पर सेविका सुचंद्रा देवी और सहायिका चाइना देवी कार्यरत हैं। आंगनवाड़ी केंद्र की सेविका ने बताया कि केंद्र में 23 बच्चे नामांकित हैं। 25 अप्रैल को प्रतिरक्षण कार्य करने एएनएम आई थी। फिर 3 महीने बाद 25 जुलाई को एएनएम टीकाकरण करने पहुंची।

सेविका ने बताया की इतने लंबे समय तक टीकाकरण नहीं होने से ग्रामीण काफी रोष में थे, और मुझपर टीकाकरण कराने के लिए दबाव बना रहे थे। एएनएम से संपर्क करने पर अलग अलग कार्य करने की बात कही गई। परंतु ग्रामीण मानने को तैयार नहीं थे। सेविका ने ये भी बताया की केंद्र से प्रखंड स्वास्थ्य केंद्र करीब 24 km दूर है। इन सारी बात की जानकारी होने के बावजूद प्रतिरक्षण समय पर नहीं किया गया।

क्या कहता है नियम

क्षेत्र में शत प्रतिशत प्रतिरक्षण कराने के उद्देश्य से हरेक आंगनवाड़ी केंद्र में हर माह प्रतिरक्षण तिथि निर्धारित है। जिसकी रिपोर्टिंग प्रखंड से लेकर जिला और राज्य तक जाती है। जिसमें गर्भवती माता से लेकर बच्चों तक का टीकाकरण किया जाता है। इस कार्य के लिए आंगनवाड़ी केंद्र के कर्मी, सहिया, एएनएम जिम्मेदार होती है। सभी को अपने अपने अधिकारी को रिपोर्ट करने का प्रावधान निर्धारित है। परंतु 3 माह तक प्रतिरक्षण न होने की रिपोर्टिंग के बावजूद प्रखंड से लेकर जिला तक के पदाधिकारी की नींद न टूटना सवालिया निशान खड़े करता है।

नहीं मिली सुविधा, कहीं मिलीभगत तो नहीं

प्रतिरक्षण न होने से गर्भवती को टीका एवम हेल्थ कार्ड नहीं मिल पाया। साथ ही आंगनवाड़ी केंद्र से मिलने वाली सुविधा भी नहीं मिल पाई। बच्चे भी प्रतिरक्षित नहीं हो पाए। मालूम हो की अलग अलग रोगों से बचाव के लिए बच्चों को टीका दिया जाता है जिससे उस बच्चे का बचाव जीवन भर होता है।

प्रतिरक्षण के लिए दवा ले जाने वाले AVD को सरकार के तरफ से राशि दी जाती हैं। जिसका लेखा जोखा कोल्ड चेन हैंडलर के पास रहता है। साथ ही सहिया को भी सत्र आयोजित होने पर भी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। जाहिर सी बात है की यदि बागदुडीह केंद्र पर दवा नही जा रही थी तो कोल्ड चेन हैंडलर की भूमिका भी संदेह के घेरे में हैं।

सहिया द्वारा सत्र आयोजित नहीं हो रही थी उनकी सुपरवाइजर सहिया साथी और BTT की क्या भूमिका रही? इन सारे कार्य को सुचारू रूप से प्रखंड स्तर पर चलाने के जिम्मेदार प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और जिला स्तर पर DRCHO ही इन सवाल का जबाव बेहतर तरीके से दे सकते हैं ।

WHO की क्या है भूमिका

मालूम हो की प्रतिरक्षण कार्य की विशेष मॉनिटरिंग WHO द्वारा की जाती है। जिसके मॉनिटर हरेक क्षेत्र का भ्रमण करते है। सूत्र बताते हैं कि 3 महीने तक प्रतिरक्षण न होने की सूचना WHO के प्रतिनिधि को नहीं होना समझ से परे है। आंगनवाड़ी सेविका की माने तो उन्होंने अपने स्तर से सूचना दी थी और सत्र आयोजन का अनुरोध भी किया था।

बहरहाल वजह जो भी हो खामियाजा तो उन बच्चों को भुगतना पड़ा जिन्हें समय से प्रतिरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया। गर्भवती माताओं को समय से टीका नहीं लग पाया। प्रखंड मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर रहने का नुकसान उन बच्चों और माताओं को झेलना पड़ा जो “स्वस्थ्य झारखंड सुखी झारखंड” का सपना संजोए बैठे हैं। आंगनवाड़ी केंद्र के कर्मियों को ग्रामीणों का कोपभाजन का शिकार होना पड़ा।

इन सारे सवालों पर अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने का नारा बेमानी लगती है। झारखंड सरकार जहां स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने का दंभ भर रही हो ऐसे में इस तरह के कारनामे अपने आप में सवालिया निशान खड़ा कर रही है की कहीं कर्मी और पदाधिकारी की मिलीभगत तो नहीं चल रही ? साथ ही पिछले वर्ष की तरह मिजिल्स महामारी को आमंत्रण तो नहीं देने जा रहे।

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