रांची/नयी दिल्ली। वोट के बदले नोट के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पुराने उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें वोट के बदले नोट के तहत सांसदों को किसी भी कानूनी कार्रवाई से राहत मिली हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है। अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला दिया गया। कोर्ट ने कहा कि किसी को घूसखोरी की कोई छूट नहीं है। रिश्वत लेकर वोट देने पर अभियोजन को छूट नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से झामुमो को बड़ा झटका लगा है।

दरअसल, झामुमो की विधायक सीता सोरेन पर साल 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी आरके अग्रवाल से डेढ़ करोड़ रु लेकर वोट देने का आरोप लगा था । मामले में सीता सोरेन पर मामला दर्ज हुआ था। धुर्वा स्थित आवास की कुर्की के बाद उन्होंने सीबीआई कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से जेल भेज दिया गया था। सीता सोरेन ने इसे लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन याचिका खारिज हो गई। जिसके बाद सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने अपने ससुर सह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1993 के संसद रिश्वत कांड में 1998 में मिली राहत का हवाला देते हुए क्रिमिनेल केस से छूट की मांग की थी।

2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने सीता की याचिका को खंडपीठ को भेज दिया था। उन्होंने पूर्व के फैसले पर दोबारा विचार करने का फैसला दिया था। उन्होंने कहा था कि क्या किसी सांसद या विधायक को वोट के बदले नोट लेने की छूट दी जा सकती है. क्या कोई ऐसा कर आपराधिक मामलों से बचने का दावा कर सकता है। अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया है।

इसी के तहत चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने इस बारे में सभी पहलुओं पर निर्णय लिया और विचार किया है कि क्या सांसदों को इससे छूट मिलनी चाहिए? हम इस बात से असहमत हैं। इसलिए बहुमत से इसे खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि हमने पी नरसिम्हा राव मामले में फैसले को खारिज कर दिया है। ऐसे में कोर्ट के फैसले के आने के बाद यदि कोई सांसद संसद में पैसे लेते या भ्रष्टाचारी साबित होता है तो उसके खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो सांसदों और विधायकों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।

26 साल पहले यानी साल 1998 में सदन में वोट के बदले नोट मामले में सांसदों को मुकदमें से छूट दी गई थी। बता दें कि इस मामले पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की पीठ ने तब पाया कि सांसदों को अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। संसद और विधानसभा में सांसदों और विधायकों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं।

कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। बता दें कि साल 1998 में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि वोट के बदले नोट जैसे मामले में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन अब यह फैसला पलट चुका है। साधारण भाषा में अगर समझाएं तो अब से यदि कोई भी सांसद या विधायक घूसखोरी या पैसे और गिफ्ट लेकर सदन में कुछ भी सवाल पूछता नजर आया तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया की जा सकती है।

1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार थी. तब भाजपा ने अल्पमत का हवाला देते हुए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था. लेकिन झामुमो के सांसद शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी ने पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था. इसकी वजह से नरसिम्हा राव की सरकार बच गई थी. इसमें जनता दल समेत अन्य सांसदों ने भी मदद की थी. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही थी. तब झामुमो सांसदों ने दलील दी थी कि बरामद पैसे पार्टी फंड के थे. फिर 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संसद रिश्वत कांड का खुलासा किया था. तब शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया था कि नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए वोट के बदले चारों सांसदों को 50-50 लाख रुपए की घूस मिली थी. इसी के बाद सीबीआई जांच शुरु हुई थी.

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