रांची। …उपर जो तस्वीर दिख रही है ना सरकार !… वो इन स्वास्थ्यकर्मियों का शौक नहीं है, आपलोगों ने मजबूर किया है इन्हें, सर्द मौसम में इस खुले आसमान के नीचे बैठने को। इन्ही स्वास्थ्यकर्मियों के बूते आपने कोरोना की जंग जीती थी, देश में झारखंड के स्वास्थ्य व्यवस्था के अव्वल होने का दावा किया था, इन्ही स्वास्थ्यकर्मियों के बूते आपकी सरकार अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही थी… और आज यही स्वास्थ्यकर्मी जब अपना हक मांग रहे हैं तो ना तो मुख्यमंत्री और ना ही स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को फुर्सत के दो पल हैं कि इनसे बात तक कर लें। माफ कीजियेगा हेमंत सोरेन जी, कहना थोड़ा कड़वा जरूर है, लेकिन हकीकत तो यही है ना कि “चिराग तले अंधेरा” …खतियान अधिकार यात्रा में आप उड़नखटोले पर सवार होकर प्रदेश के कोने-कोने में उड़ रहे हैं, लेकिन लेकिन आपके ही बहन-भाई आपके बंगले से कुछ दूर पर बैठे हैं, लेकिन इनकी समस्याओं के सुध लेने की आप जहमत नहीं उठा रहे। … ये शर्मनाक भी है और अमानवीयता भी।

AJPMA के पदाधिकारी आंदोलनरत कर्मियों के साथ मंत्रना करते हुए

दरअसल कुछ दिन पहले अचानक से मीडिया की सुर्खियां बनी कि स्वास्थ्यकर्मी नियमित होने वाले हैं। मीडिया ने तो स्वास्थ्यकर्मियों के नियमितिकरण फाइलें वित्त..विधि और ना जाने कहां-कहां भेज दी। जिस तरह से टीवी और अखबारों में नियमितिकरण की खबरों को प्रोजेक्ट किया गया, उससे तो लगा मानों एक दिन बाद क्या आज के आज ही सभी का नियमितिकरण आदेश जारी हो जायेगा। अगर ऐसा था तो फिर चार दिन से सरकार और स्वास्थ्य महकमा चुप क्यों हैं। क्यों नहीं मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारी डंके की चोट पर बता रहे हैं कि स्वास्थ्यकर्मियों का नियमितिकरण होने जा रहा है।

खुले आसमान के नीचे आंदोलन करते हुए स्वास्थ्य कर्मी

अब मीडिया में नियमितिकरण की खबरों के फैलाये प्रोपगेंडा की क्रोनोलॉजी समझिये। खबरे मीडिया में कब प्रोजेक्ट की गयी? ये खबरें उस वक्त आयी, जब ठीक 1 से 2 दिन बार अनुबंध स्वास्थ्यकर्मियों का आंदोलन होना था। खबरों के बाद यही सरकार को उम्मीद थी कि स्वास्थ्यकर्मी इस कोरे दावे पर यकीन कर लेंगे और फिर हड़ताल स्थगित हो जायेगा। लेकिन, पिछले 10-15 सालों से सिर्फ आश्वासन की घुट्टी पीकर छले जा रहे अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मियों ने उस छलावे को महसूस कर लिया। अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मी संघ और उनसे जुड़े आंदोलनकारी संगठनों को ये अहसास हो गया कि एक बार फिर उन्हें हड़ताल से रोकने के लिए षड़यंत्र की दीवार खड़ी की जा रही है। लिहाजा, कोरे आश्वासन के बहकावे में आये बगैर ना सिर्फ अनुबंधित पारा मेडिकल एसोसिएशन और अन्य संगठनों ने मुख्यमंत्री निवास का उग्र घेराव किया, बल्कि 17 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर भी बैठ गये। कहां मीडिया के जरिये एक एजेंडा सेट किया गया कि सरकार अनुबंधकर्मियों का नियमितिकरण करने जा रही है। और अब चार दिन आदेश तो छोड़िये किसी जिम्मेदार का कोई ठोस बयान तक नहीं आ पाया है कि अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मियों का नियमितिकरण करने जा रहे हैं।

AJPMA का प्रतिनिधिमंडल आंदोलन की रण नीति बनाते हुए

अगर आंकड़ों की बात करें तो 8 हजार से ज्यादा अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मी हैं, जो 10 से ज्यादा समय से अनुबंध पर काम कर रहे हैं कि लेकिन अभी तक उनकी नियमितिकरण की दिशा में हेमंत सरकार कोई ठोस पहल नहीं कर पायी है। वो भी तब जब झामुमो ने सत्ता में आने के लिए अपने घोषणा पत्र में अनुबंधकर्मियों के नियमितिकरण का दावा किया था। खुद मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक मंचों से अनुबंधकर्मियों के साथ हमदर्दी जता चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्री कई दफा अनुबंधकर्मियों के हिमायती बनने का दावा कर चुके हैं, तो फिर आखिर ऐसा क्या है कि जिन स्वास्थ्यकर्मियों को अस्पताल में मरीजों की सेवा में होना चाहिये था था। जिन टेक्निशियम को लैब में होना चाहिये था? वो आज नियमितिकरण की मांग को लेकर कई दिनों से सर्द मौसम में खुले आसमान के नीचे बैठने को मजबूर हैं।

भीषण ठंड ने भी अनुबंध स्वास्थ्य कर्मी राजभवन के समक्ष आंदोलन पर डटे हुए

प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था ठप हैं। कहीं डाक्टर नहीं, कहीं डाक्टर हैं तो नर्स नहीं, कहीं नर्स तो टेक्निशियन नहीं, कहीं जांच नहीं, कभी डिलेवरी बंद, कई अस्पतालों में तो ताला लटकने की नौबत है। जाहिर है जिन स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत के बूते प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था खड़ी हुई है, वो रीढ़ ही टूट जाये , तो भी उस व्यवस्था का धाराशायी होना लाजिमी है। अनुबंधित स्वास्थ्यकर्मियों को हर तरफ से संगठनों का सहयोग मिल रहा है। ऑल झारखंड पारा मेडिकल एसोसिएशन ने भी खुले तौर पर इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है।

अनुबंध कर्मी का जज्बा देख प्रशासन भी हैरान

पिछले चार दिनों से प्रदेश में प्रदर्शनकारी और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच जिद और अहम की लड़ाई छिड़ी हुई है। और इस जिद और अहम की लड़ाई का खामियाजा उन गरीब मरीजों को उठाना पड़ रहा है, जो इस उम्मीद अस्पताल पहुंच रहे हैं कि उन्हें उनके मर्ज का इलाज मिलेगा, लेकिन डाक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों को अस्पताल में नहीं देख मायूसी के साथ लौटने मजबूर हैं। अब उन मरीजों को कौन बताये, कि अगर अस्पताल वाली नर्स दीदी, टेक्निशियन भैया नहीं आ रहे हैं तो इसके लिए आपकी सरकार जिम्मेदार है, स्वास्थ्य विभाग जिम्मेदार है और यहां के हुक्मरान जिम्मेदार हैं।

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