गोड्डा/लोयाबाद। दिपावली पर कालीपूजा की परंपरा सालों से चली आ रही है। एक ओर दीपावली पर जहां घरों में दीये और बिजली की लरियां जगमगाती है, तो वहीं काली पूजा पर तंत्र साधना होती है। झारखंड के कई ऐसे काली मंदिर हैं, जहां काली पूजा पर तंत्र साधना का अनूठा विधान होता है। आइए इस कालीपूजा पर हम आपको मां काली के उस रूप के बारे में बतायेंगे, जिसकी अराधना या दर्शन से आपके कष्ट हमेशा केलिए मिट जाते हैं।

धनबाद का प्रसिद्ध लोयाबाद काली मंदिर
100 साल से भी ज्यादा पुराने लोयाबाद 3 नंबर काली मंदिर सिद्धि मंदिर की काफी महिमा है। आज भी अमावस्या की रात में कुछ लोग चोरी छिपे यहां पर साधना करते हैं। सिद्धि मंदिर होने के कारण लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि सिर्फ माथा टेक लेने से ही अशुभ कार्य शुभ में बदल जाता है।यह श्मशान काली के नाम से भी प्रसिद्ध है। पहले मंदिर के पास श्मशानघाट था। चिंताएं जलाई जाती थीं। साधक दूर-दूर से सिद्धि प्राप्त करने के लिए यहां आते थे। काली पूजा में विशेष रूप से पूरे विधि विधान के साथ मां काली की पूजा की जाती है। काली पूजा के मौके पर मेला भी लगता है ।पूजा कमेटी इसकी तैयारी में जुट गई है। दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। यह एक बहुत ही पुरानी मंदिर है इसकी स्थापना कब हुई इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है।

तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है
काली पूजा पर गोड्डा के मोहनपुर खदहारा माल गांव स्थित काली मंदिर में तांत्रिक विधि विधान का काफी महत्व है। सैकड़ो वर्ष पुराने इस मंदिर में जहां हर वर्ष दिवाली की रातमां काली की भव्य पूजा अर्चना शुरू होती है जो की तीन दिनों तक चलती है। मान्यता है कि यहां स्थापित मां काली की एक प्रतिमा लोगों को मिली थी। इसके बाद धीरे-धीरे आसपास के लोगों द्वारा यहां मंदिर स्थापित कर दिया गया था। लोगों की इस मंदिर में काफी आस्था है, लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी सच्चे दिल से मां काली से अपनी मन्नत मांगता है, उनकी हर एक मनोकामना पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ण होने पर कई भक्त यहां पाठा की बलि भी दी जाती है।

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