रांची। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) की शुरुआत आज नहाय-खाय (Nahay Khay) के साथ हो रही है। यह चार दिन का त्योहार है। भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है। इस दिन का काफी महत्व होता है और नहाय-खाय के दिन गंगा स्नान का विधान है। इसके बाद खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रख कर रोटी-खीर या फिर लौकी की खीचड़ी बनाती हैं, जिसे भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद के रूप में खाया जाता है, और तब से छठ व्रती का 36 घंटों का उपवास शुरू होता है, जो सुबह के अर्घ्य के साथ समाप्त होता है।

पारण के साथ पूरा होता है व्रतियों का उपवास
18 नवंबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 19 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा और फिर 20 नवंबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उगते सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा.

पहला दिन:

छठ व्रत की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय किया जाता है. जिसमें छठ व्रतियां किसी भी नदी, तालाब या अन्य किसी भी जलाशय में स्नान कर इसकी शुरुआत करती हैं. इसके पहले घर की साफ सफाई कर ली जाती है और नहाय-खाय के दिन अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद बनाया जाता है. जिसमें सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है. यह प्रसाद लोगों के बीच वितरित भी किया जाता है और यही से छठ पर्व की शुरुआत होती है.

दूसरा दिन:

छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना के रूप में जाना जाता है. हालांकि इसी दिन से छठ व्रती का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. पहले सुबह से ही व्रती अन्न जल त्याग कर भगवान भास्कर की आराधना करने लगते हैं. शाम के वक्त अरवा चावल, दूध, गुड़, खीर इत्यादि का प्रसाद बनता है तथा भगवान भास्कर को चढ़ाने के बाद व्रती अल्प प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस दिन निर्जला उपवास की शुरुआत हो जाती है.

तीसरा दिन:

छठ पर्व का तीसरा दिन सबसे कठिन होता है. इस दिन छठ व्रतियों के निर्जला उपवास का दूसरा दिन प्रारंभ हो जाता है और इसी दिन छठ व्रती के द्वारा पूजा के दौरान इस्तेमाल में लाया जाने वाला ठेकुआ सहित अन्य प्रसाद भी बनाया जाता है. इसी दिन शाम के वक्त लोग छठ घाट जाते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं.

चौथा दिन:

छठ पर्व का चौथा दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को होता है. इस दिन अहले सुबह भगवान भास्कर के उदीयमान स्वरूप को अर्घ्य दिया जाता है. सुबह के वक्त भी लोग छठ घाट पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं. इसके बाद छठ व्रतियों के द्वारा पारण किया जाता है तथा छठ का व्रत खोल दिया जाता है. इसी के साथ छठ पर्व का समापन भी हो जाता है.

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