रांची । जिस जिले के विधानसभा क्षेत्र से खुद मुख्यमंत्री चुनकर आते हों उस जिले के कर्मी मानदेय के अभाव में मौत के शिकार हो रहे हों ये दुर्भाग्य नहीं तो क्या है। ‘ सारथी’ एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी भी जंग को जीत पाना असंभव है। वो जंग चाहे युद्ध के मैदान पर हो या, जीवन को बचाने की…. सभी को सही समय पर अस्पताल पहुंचाने से लेकर पदाधिकारियों को कार्य स्थल तक पहुंचाने की जिम्मेवारी सारथी जो आज के समय में चालक के नाम से जाने जाते है, खुद अपनी बदनसीबी का रोना रो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग झारखंड सरकार के अनुबंध दैनिक चालक जो वर्षो से विभागों में काम तो कर रहे है पर उन्हें न तो पारिश्रमिक मिल रही, न कोई सुविधा, नतीजा वेतन के आस असामयिक मृत्यु हो रही है, पर विभाग की कुंभकर्णी नींद नहीं टूट रही। ऐसा ही एक मामला साहिबगंज जिले का है, जिसमे 10 माह से वेतन न मिलने से चालक अपना इलाज नहीं कर पाए और असामयिक मौत हो गई।

क्या है घटना

ताजा मामला अनुबंध चालक राजेश कुमार रिखमासन उम्र-40 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पतना बरहेट विधानसभा जिला साहिबगंज मे पदस्थापित थे । विभागीय उदासीनता के कारण पिछले दस माह से मानदेय / वेतन का भुगतान नहीं मिलने के कारण आर्थिक कठिनाईयो एव चिकित्सा आभाव के कारण हृदयगति रुक जाने से 18/03/023 असमायीक निधन हो गई है। अपने पीछे दो पुत्र सहित भरा पूरा परिवार को छोड़ गऐ। इस घटना ने सभी अनुबंध एवं दैनिक चालक संघ झारखंड प्रदेश झकझोर कर रख दिया है।

राज्यभर के चालक में आक्रोश

चालक संघ के सदस्यों ने कहा की हमारे साथी की मौत हम सभी के लिए एक प्रश्नचिन्ह छोड़ गऐ है।हम सभी स्वास्थ्य विभाग के अनुबंध एवं दैनिक चालक संघ मांग करते हैं की मृतक के परिवार को उचित न्याय संगत मुआवजा एव संबंधित दोषी पदाधिकारियों के ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने 10 माह से मानदेय अवरुद्ध कर रखा है।

क्या है मामला

राज्य भर के कार्यालय और अस्पताल में वाहन चलाने की जिम्मेदारी इन कर्मी पर है। अधिकारी जिस वाहन में अपनी चढ़कर अस्पताल जाते है, उन्हीं चालक को पिछले 10 माह से वेतन नहीं मिल रहा। पर इन अधिकारियों ने कभी इतनी संवेदनशीलता दिखाने की जहमत नहीं उठाई कि इन कर्मियों के भी परिवार और सामाजिक दायित्व हैं। वेतन/ मानदेय के अभाव में न तो इलाज करा पा रहे न ही अपने परिवार का भरण पोषण। नतीजा साफ है की असामयिक मौत की खबर साहिबगंज जिले से आ गई।

ये विभाग का दुर्भाग्य नहीं तो क्या ? जिनके बलबूते न जाने कितने मरीजों की जान बच पति है, कितनी अधिकारी अपनी कार्यस्थल पर पहुंच ड्यूटी बजाते है परंतु उन चालक के मन व्यथा को समझने और समाधान करने की जहमत किसी में नहीं। अपने अधीनस्थ कर्मियों को समय से वेतन और दुख दर्द को समझने को कोशिश न करने वाले पदाधिकारी उस कुर्सी के लिए खुद प्रश्नचिन्ह है।

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