लखनऊ। लिंग परिवर्तन कराने की महिला सिपाही नेहा सिंह की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि लिंग परिवर्तन करवाना संवैधानिक अधिकार है. हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आधुनिक समाज में पहचान बदलने के अधिकार से वंचित किया जाना सिर्फ लिंग पहचान विकार सिंड्रोम कहलाएगा. जस्टिस अजीत कुमार की सिंगल बेंच ने कहा कि कभी-कभी ऐसी समस्या बेहद घातक हो सकती है. ऐसा व्यक्ति विकार, चिंता, अवसाद, नकारात्मक छवि और किसी की यौन शारीरिक रचना के प्रति नापसंदगी से पीड़ित हो सकता है।

महिला सिपाही नेहा सिंह की तरफ से कोर्ट में जेंडर डिस्फोरिया पीड़ित होने का हवाला दिया गया था। याचिका में बताया गया था कि याची खुद को एक पुरुष के रूप में पहचानती है। इसलिए सेक्स री असाइनमेंट सर्जरी कराना चाहती है। याची का कहना था कि सेक्स री असाइनमेंट सर्जरी कराने का आवेदन पुलिस महानिदेश कार्यालय में 11 मार्च को अर्जी दी थी, लेकिन आवेदन पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है, इसलिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

21 सितंबर को होगी फिर से सुनवाई
महिला सिपाही की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब दाखिल करने को भी कहा है. इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया गया है.कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 21 सितंबर को करेगा. महिला सिपाही ने याचिका में बताया था कि याची खुद को एक पुरुष के रूप में पहचानती है. इसलिए सेक्स री असाइनमेंट सर्जरी कराना चाहती है. महिला कांस्टेबल ने लिंग डिस्फोरिया का अनुभव होने का दावा करते हुए अदालत का रुख किया और पुरुष पहचान को पूरी तरह से अपनाने के लिए एसआरएस से गुजरना चाहता था. इसके लिए उन्होंाने इस साल 11 मार्च को यूपी डीजीपी के कार्यालय में अर्जी दी थी।

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