रायपुर। प्रधानमंत्री की सभा का अलग प्रोटोकॉल होता है। प्रधानमंत्री का स्वागत कौन कौन करेगा, किसकी कुर्सी पीएम के पास लगेगी, प्रधानमंत्री से कौन-कौन मिलेगा? ये सब कुछ SPG के अफसर और स्थानीय प्रशासन मिलकर फाइनल करता है, लेकिन प्रधानमंत्री कभी-कभी अपने कुछ खास मेहमानों के लिए प्रोटोकॉल को भी तोड़ देते हैं। छत्तीसगढ़ के सक्ती जिला में प्रधानमंत्री मोदी चुनावी सभा के लिए पहुंचे थे, इस दौरान उन्होंने अपने दो खास मेहमानों के लिए मंत्री और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी साइड करवा दी

मुख्यमंत्री और मंत्री की कुर्सी करवायी साइड
दरअसल सक्ती के जेठा गांव में प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी सभा थी। प्रधानमंत्री जब मंच पर पहुंचे, तो प्रधानमंत्री की कुर्सी के दाहिने तरफ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और बांयी तरफ वित्त मंत्री ओपी चौधरी की कुर्सी लगी थी। लेकिन कुछ देर बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यंत्री और वित्त मंत्री दोनों की कुर्सी साइड करवा दी और दो अलग कुर्सियां अपने दाहिनें और बायी ओर लगवायी।

प्रधानमंत्री ने रामनामी समाज के बारे में जाना
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की सभा के वो दो खास मेहमान थे, आचार्य मेहतर राम रामनामी और माता सेतबाई रामनामी। ये दोनों छत्तीसगढ़ के चर्चित रामनामी समाज से आते हैं, जिन्हें राम का अटूट भक्त कहा जाता है। इस संप्रदाय के जितने भी महिला और पुरुष होते हैं, ये अपने पूरे शरीर में राम नाम का गोदना उकेरते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने रामनामी संप्रदाय के दोनों लोगों से काफी देर तक बातें की। ना सिर्फ उन्होंने रामनामी समाज से चर्चा की, बल्कि संबोधन के दौरान रामनामी समाज का जिक्र किया।

पीएम मोदी ने अयोध्या-काशी किया आमंत्रित
प्रधानमंत्री मोदी से इस दौरान आचार्य मेहतर राम रामनामी ने बताया कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। इसकी भविष्यवाणी इस समाज के पुराने लोगों ने पहले ही कर दी थी। 150 साल पहले इस संप्रदाय ने बता दिया था कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कब और किस सन् में होगी। इन बातों का जिक्र पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भी किया, उन्होंने बताया कि जब अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, तो उस दौरान भी रामनामी संप्रदाय के लोगों ने उन्हें अयोध्या पहुंचकर आशीर्वाद दिया था, आज भी वो मंच पर आशीर्वाद देने पहुंचे हैं।
रामनामी समुदाय कौन हैं
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा समुदाय है, जिसे रामनामी नाम से जाना जाता है। परशुराम द्वारा स्थापित यह एक हिंदू संप्रदाय है, जो भगवान राम की पूजा करता है। यहां के लोग पूरी तरह से राम भक्ति में रमे हुए हैं। इसका अंदाजा आप उन्हें देखकर ही लगा सकते हैं। राम की भक्ति इनके अंदर ऐसी बसी हुई है कि इन्होंने पूरे शरीर पर ‘राम नाम’ का टैटू बनवाया हुआ है, जो भगवान राम से गहरे संबंध की अभिव्यक्ति है। इस समुदाय के लिए राम उनकी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। भगवान राम की भक्ति और उनका गुणगान ही इनकी जिंदगी का खास मकसद है। इस समुदाय की स्थापना सन् 1870 में जांजगीर चाम्पा जिले के चारपारा गांव के सतनामी समाज के परशुराम जी ने किया था। उन्होंने ही पहली बार राम नाम का गोदना करवाया था।

रामनामी समुदाय के लोगों के घर बहुत ही साधारण होते हैं। जो उनकी साधारण जीवनशैली को बयां करते हैं। मिट्टी या बांस से बने इस घरों की वास्तुकला खास होती है। रामनामी समुदाय के लोग मृत्यु के बाद लाशों को जलाते नहीं, बल्कि पंचतत्व में विलीन करते हैं। उनका मानना है कि वो राम नाम को सामने से जलते हुए नहीं देख सकते। इस समुदाय के लोग प्राकृतिक स्याही बनाने का काम करते हैं। इस स्याही का इस्तेमाल राम नाम के जाप और पूजा-पाठ के लिए किया जाता है। इस स्याही को पारंपरिक तरीकों से तैयार किया जाता है। जिसमें लाल रंग के फूलों के पानियों का उपयोग किया जाता है। स्याही को गाढ़ा रंग देने में काफी वक्त और मेहनत लगती है।

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