झामुमो का बड़ा निर्णय : कल्पना सोरेन को मिल गई बड़ी जिम्मेदारी…जानिए क्यों

JMM's 13th convention: Kalpana Soren may get a big responsibility... know why

कल्पना मुर्मू सोरेन को झारखंड मुक्ति मोर्चा में बड़ी भूमिका दी है?राष्ट्रीय पार्टी बनने की कवायद में लगा झामुमो कल्पना मुर्मू सोरेन को ये मिशन सौंप दिया. झारखंड मुक्ति मोर्चा नये दौर में प्रवेश कर चुका है. 5 दशक पुराने इस दल की कमान अब हेमंत सोरेन के हाथों में है. लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब मार्गदर्शक मंडल में हैं और हेमंत सोरेन पार्टी के सुप्रीम लीडर हैं.

पार्टी की कमान अब नई पीढ़ी के हाथों में है.

हेमंत सोरेन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं लेकिन, कल्पना मुर्मू सोरेन के बारे पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे. गांडेय विधानसभा सीट पर लगातार दूसरी बार चुनी गईं कल्पना मुर्मू सोरेन की इस नए झामुमो में क्या भूमिका होगी.परंतु अब जिम्मेदारी का बंटवारा किया जा चुका है।

कौन है कल्पना सोरेन

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तक गुरुजी की बहू और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कगे रूप में पहचानी जाती रहीं कल्पना मुर्मू सोरेन ने बीते 1 साल में खुद को झारखंड की सियासत में स्थापित किया है. पिछले साल हेमंत सोरेन 5 महीने जेल में रहे. बीमार गुरुजी सार्वजनिक सियासत में सक्रिय नहीं हैं और तब कल्पना मुर्मू सोरेन ने न केवल पार्टी को संभाला बल्कि यदि झामुमो ने विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया तो श्रेय कल्पना मुर्मू सोरेन को भी जाता है.

14 और 15 अप्रैल को रांची के खेलगांव में आयोजित झामुमो के 13वें महाधिवेशन से पहले कल्पना मुर्मू सोरेन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी. चर्चा थी कि हेमंत सोरेन के केंद्रीय अध्यक्ष बनते ही कल्पना मुर्मू सोरेन कार्यकारी अध्यक्ष बनेंगी.

हालांकि, 14 अप्रैल को महाधिवेशन के पहले दिन कार्यकारी अध्यक्ष का पद ही खत्म कर दिया गया तो सवाल है कि कल्पना मुर्मू सोरेन के लिए पार्टी ने क्या सोचा है? क्या कल्पना मुर्मू सोरेन संगठन में एक सामान्य कार्यकर्ता और विधानसभा में गांडेय विधायक के रूप में दायित्वों को निर्वहन करती रहेंगी या फिर उनको संगठन के थिंक टैंक में शामिल किया जाएगा.

वैसे पिछले 1 साल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के तमाम सांगठनिक फैसलों में कल्पना मुर्मू सोरेन का बराबर दखल दिखता है.उनकी सलाह सुनी जाती है लेकिन वह संगठन में किसी पद पर नहीं हैं. क्या आगे भी ऐसा ही चलेगा?

हेमंत सोरेन ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात की
महाधिवेशन के दूसरे दिन पार्टी का केंद्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद हेमंत सोरेन ने कहा कि भविष्य में संगठन में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जायेगी.

पार्टी में महिलाओं को भी बड़ी जिम्मेदारी दी जायेगी.

तो क्या हेमंत सोरेन ने परोक्ष रूप से कल्पना मुर्मू सोरेन को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा दिया है. न केवल मंईयां सम्मान योजना के जरिये बल्कि कल्पना मुर्मू सोरेन द्वारा चुनावी कैंपेन के दौरान की गयी व्यक्तिगत अपीलों से भी प्रदेश की महिला मतदाता झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर लामबंद हुई हैं.

महिलाओं में कल्पना मुर्मू सोरेन की अच्छी-खासी अपील है तो क्या भविष्य में कल्पना मुर्मू सोरेन को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. क्या वह राष्ट्रीय पार्टी बनने की कवायद में लगे झामुमो की पहली राष्ट्रीय महिला मोर्चा की अध्यक्ष हो सकती हैं.

इतना तो तय है कि कल्पना मुर्मू सोरेन अब संगठन के थिंक टैंक का हिस्सा हैं.सवाल है कि परोक्ष हिस्सेदारी से इतर पार्टी में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी क्या होगी. आज इन्हीं सवालों का जवाब तलाशेंगे.

कल्पना मुर्मू सोरेन ने जब सार्वजनिक जीवन में रखा कदम
यूं तो कल्पना मुर्मू सोरेन, जनवरी 2020 से ही सरकारी कार्यक्रमों में पति मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ नजर आती रहीं लेकिन दिसंबर 2023 में पहली बार उनका नाम राज्य के अगले या यूं कह लीजिए कि पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में लिया जाने लगा.

इसकी वजह क्या

रांची के बरियातू में कथित जमीन घोटाला केस को लेकर अक्टूबर 2023 से ही ईडी, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन पर समन भेज रहा था. सत्तारूढ़ झामुमो की चिंता थी कि यदि इस केस में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जांच एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया तो अगला मूव क्या होगा. पार्टी और सरकार, दोनों को मजबूत चेहरे की जरूरत थी.

सवाल था कि ये चेहरा कौन बनेगा?

और तभी नाम सामने आया कल्पना मुर्मू सोरेन का. इन अटकलों की पुष्टि तब और हो गई जब 31 दिसंबर 2023 को गांडेय के तात्कालीन विधायक डॉ. सरफराज अहमद ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया. स्पीकर रबींद्रनाथ महतो ने तुरंत ये इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया. कभी सीधे तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से तैयारी यही थी कि यदि किसी अपरिहार्य स्थिति में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हो गई तो कल्पना अगली चीफ मिनिस्टर होंगी.

वजह साफ थी. भरोसा. कल्पना मुर्मू सोरेन उस समय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने सबसे भरोसमंद शख्स थीं जिनको ये भूमिका सौंपी जा सकती थी.

जनवरी 2024 में सीएम बनते-बनते रह गईं कल्पना मुर्मू सोरेन
जिसकी आशंका थी वही हुआ भी. 31 जनवरी को मुख्यमंत्री गिरफ्तार कर लिए गये.

हालांकि, इससे पहले 30 जनवरी को ही उन्होंने झामुमो के थिंक टैंक और गठबंधन में सहयोगी कांग्रेस विधायकों को विश्वास में लेकर सादे कागज पर दस्तखत लिए थे. ये तय किया था कि हेमंत सोरेन जिनको सीएम पद के लिए नामित करेंगे, सबकी उस नाम पर सहमति होगी लेकिन, पेंच फंस गया.

परिवार से ही विरोध के तीखे स्वर उठे.

सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने लगभग बगावती रूख अख्तियार करते हुए ऐलान कर दिया कि यदि कल्पना मुर्मू सीएम बनीं तो बर्दाश्त नहीं करूंगी. उन्होंने अपना दावा ठोक दिया.

खैर! मुख्यमंत्री बने तब दिशोम गुरु के सबसे भरोसेमंद चंपाई सोरेन. कल्पना मुख्यमंत्री तो नहीं बनीं लेकिन, उन्होंने जैसे कुछ ठान लिया था.

हेमंत सोरेन की गैर-मौजूदगी में झामुमो की दिलाई पहली सफलता
हेमंत सोरेन को जेल भेज दिया गया. चंपाई सोरेन सरकार गठन की कवायद में लग गए.

गुरुजी गंभीर रूप से बीमार थे और बड़ी बहू सीता सोरेन बगावत कर चुकी थीं. ऐसी अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों में चुनौती बड़ी थी. न केवल झामुमो के विधायकों को एकजुट रखने की बल्कि सहयोगी कांग्रेस को भी विश्वास में लेकर आगे बढ़ने की.

पति की अनुपस्थिति में कल्पना मुर्मू सोरेन ने मोर्चा संभाल लिया.

4 फरवरी 2024 को कल्पना मुर्मू सोरेन ने पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में गिरिडीह में पहली बार सार्वजनिक जीवन में कदम रखा. पलकों में आंसू लिए कल्पना मुर्मू सोरेन ने जब जनता से संवाद किया तो हर तरफ केवल तालियां ही तालियां थी.

नीतिगत मुद्दों और राजनीतिक हमलों में पिरोया गया उनका भावनात्मक भाषण, लोगों और खासतौर पर महिलाओं को छू गया. कल्पना मुर्मू सोरेन ने पहले ही पब्लिक अपियरेंस में खुद को एक ऐसी पत्नी के रूप में जनता के सामने पेश किया जिसके पति को अन्यायपूर्ण ढंग से जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया.

उन्होंने तब कहा था कि मेरी पति की गलती क्या थी कि उनको जेल में डाल दिया?

क्या कोल रॉयल्टी का बकाया 1.32 लाख करोड़ मांगना गलती थी. क्या सरना धर्मकोड बिल पास करना गुनाह था. क्या हेमंत सोरेन ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति पर कानून बनाकर गलती की है.

स्थानीय नीति और सरना धर्मकोड, आदिवासियों के लिए भावनात्मक मुद्दा है और कल्पना मुर्मू सोरेन ने वक्त की नजाकत को समझते हुए गर्म लोहे पर हथौड़ा चला दिया. मुंबई, दिल्ली और फिर रांची में इंडिया गठबंधन के घटक दलों की महारैली, जिसे संकल्प सभा का नाम दिया गया था. इनमें कल्पना मुर्मू सोरेन के भाषण चर्चा का विषय बन गये

कल्पना मुर्मू सोरेन ने भाषणों से आदिवासियों को झकझोरा
कभी लगा ही नहीं कि सियासी पिच पर कल्पना मुर्मू सोरेन कोई नौसिखिया बैटर हैं बल्कि वह तो डगआउट से ही सेट होकर आई थीं. बिलकुल मंझी हुई राजनेता.

लोकसभा का चुनाव था. हेमंत सोरेन जेल में थे.

गुरुजी का स्वास्थ्य अब उनको पब्लिक अपीयरेंस की इजाजत नहीं देता. चंपाई सोरेन राजकाज में व्यस्त थे और ऐसे समय में झामुमो को ऐसे नेता की दरकार थी जो कोल्हान से संताल तक, जनता को झकझोर दे.

कल्पना मुर्मू सोरेन ने ये भूमिका बखूबी निभाई. चुनावी रैलियों में उन्होंने जनभावना को महागठबंधन के पक्ष में मोड़ा. दूसरी और न केवल झामुमो के विधायकों को एकजुट रखा बल्कि सहयोगी कांग्रेस को भी साधती चली गयीं.

कल्पना मुर्मू सोरेन ने बंद दरवाजे के भीतर पार्टी और महागठबंधन के लिए अचूक रणनीति तैयार की तो वहीं रैलियों में पब्लिक को यकीन दिला दिया कि हेमंत सोरेन केवल इसलिए जेल में हैं क्योंकि वह एक आदिवासी हैं.

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