Deoghar । जिले के स्वास्थ्य विभाग में सिविल सर्सुजन कार्यालय के लिपिक पर गंभीर आरोप लगे है।सूनडीहा करमाटांड़ निवासी मालजी रवानी ने स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर स्वास्थ्य विभाग के सिविल सर्जन कार्यालय में वर्षों से लिपिक के पद पर जमे हुए तारकेश्वर कुमार सिंह के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए जांच कर कारवाई की मांग की है। पत्र की प्रतिलिपि उपायुक्त तथा उप विकास आयुक्त देवघर को भी दी गई है। उपायुक्त तथा उप विकास आयुक्त के द्वारा सिविल सर्जन देवघर को जांच का निर्देश दिया गया है।

ये है आरोप, क्या लिखा है पत्र में

श्री रवानी के द्वारा कहा गया है कि तारकेश्वर कुमार सिंह ने जालसाजी करके वर्ष 2007 में अनुकम्पा पर नौकरी पाया । वर्ष 2012 से लगातार सिविल सर्जन कार्यालय में जमे हुए हैं जबकि विभाग का स्पष्ट निर्देश है कि लिपिक को पांच साल से अधिक एक स्थान पर नहीं रहना है। महिला कर्मचारी के शोषण के मामले में जांचोपरांत वर्ष 2015 में उपायुक्त देवघर के द्वारा इनके स्थानांतरण का निर्देश सिविल सर्जन देवघर को दिया गया था।

एएनएम प्रशिक्षणार्थी के चयन सूची में हेराफेरी के मामले आयुक्त के निर्देश पर जांचोपरांत क्षेत्रीय उप निदेशक के द्वारा इनका साहिबगंज स्थानांतरण किया गया था लेकिन इन आदेशों पर कोई कारवाई नहीं हुआ। वर्ष 2022-2023 में भी निदेशक प्रमुख के द्वारा प्रशासनिक दृष्टिकोण से इनका स्थानांतरण पालोजोरी किया गया था, लेकिन सिविल सर्जन कार्यालय के मिली भगत से पुनः अपनी प्रतिनियुक्ति सिविल सर्जन कार्यालय में करवा लिया।

दवा खरीद बिक्री के हेराफेरी में भी इनकी संलिप्तता साबित हुई। अब तक के इनके सेवा काल में इनके खिलाफ दर्जनों जांच में आरोप साबित हुआ लेकिन विभागीय मिलीभगत के सहारे लगातार मामले को दबाते हुए सिविल सर्जन कार्यालय में जमे हुए हैं । पूर्व से आरोप के वावजूद कारवाई नहीं होने पर सबकी निगाहें निदेशालय/सचिवालय पर टिकी है। वर्तमान में इन पर कोई कारवाई होती है या फिर सभी सरकारी नियमों को धत्ता बताते हुए मिलीभगत के सहारे फिर यह अपने पद पर बने रहेंगे इन विषयों के जवाब पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। आशंका ये भी जताई जा रही है की इन सभी कारनामों में कही जिला पदाधिकारी की संलिप्तता तो नही?

मालूम हो की हाल के दिनों में सदर अस्पताल के उपाधीक्षक और प्रयोगशाला प्रावैधिक द्वारा भी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप दौर चला था। जिसमें एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए गए थे। उसके बाद सिविल सर्जन की मध्यस्था के बाद उत्पन्न विवाद को सुलझाया गया था। मतलब साफ है की जिले के स्वास्थ्य विभाग में पूर्व से विवादों से गहरा नाता रहा है। ऐसे में निष्पक्ष जांच पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

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