नयी दिल्ली। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब कोई मुख्यमंत्री गिरफ्तार हुआ है। इससे पहले जितनी भी गिरफ्तारी हुई थी, उसमें मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दियाहै कि वो इस्तीफा नहीं देंगे, जेल से ही वो सरकार चलायेंगे। हालांकि देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है, लिहाजा इसे लेकर बहस भी खूब हो रही है। हालांकि इस पूरे मामले का कानूनी पहलू यही है कि किसी भी नेता या मुख्यमंत्री को जेल जाने से पहले इस्तीफा देने की कोई बाध्यता नहीं है। वो चाहे जेल से ही सरकार चला सकता है। हालांकि तार्किक रूप से ऐसा होना काफी मुश्किल है।

मुख्यमंत्री के व्यापक काम, बैठकें, फाइलें, कैबिनेट, प्रतिनिधियों से मुलाकात, अधिकारियों को निर्देश, ये सब जेल में बंद होकर संभव नहीं है। दूसरी बात ये है कि जब कोई भी आरोपी जेल में रहता है, तो उसे हर फैसला कोर्ट के अनुमति से करना होता है। लिहाजा अगर कोई फाइल पर हस्ताक्षर मुख्यमंत्री के तौर पर करेंगे या कोई फैसला लेंगे, तो उसके लिए उन्हें कोर्ट की अनुमति लेनी होगी। नियम के मुताबिक ये संभव नहीं है।

अरविंद केजरीवाल पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है. उनसे पहले इसी साल झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्होंने गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले लालू प्रसाद यादव, जयललिता सहित कई अन्य उदाहरण है, जब जेल जाने से पहले उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया था।

कोई भी मंत्री या मुख्यमंत्री किसी भी मामले में गिरफ्तार होकर जेल जाते हैं तो भी उन पर इस्तीफा देने की बाध्यता नहीं होती है. बता दें क‍ि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि जनप्रतिनिधि कानून में जेल जाने पर इस्तीफा देने की अनिवार्यता को लेकर कोई प्रावधान नहीं है. भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी हो सकती है, लेकिन मुकदमा चलाने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर की मंजूरी लेनी होगी. वहीं, अगर सजा हो जाती है तो 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग सकती है. वहीं, अगर कोई नेता सिर्फ आरोपी है और जेल में भी है तो सांसद-विधायक का चुनाव लड़ सकता है।

‘गिरफ्तारी को दोष सिद्धि नहीं माना जाता है’

सुप्रीम के वकील विराग गुप्तान का कहना है कि किसी भी मुख्यमंत्री पर गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा देने की बाध्यता नहीं होती है. दरअसल, कानून की नजर में गिरफ्तारी होना दोष सिद्धि नहीं माना जाता है. लिहाजा, किसी सीएम की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उनसे इस्तीफा नहीं लिया जा सकता है. हालांकि, इसमें यह देखना दिलचस्प् होगा कि जेल से सरकार चलाना कितना व्यवाहारिक होगा. साथ ही जेल से सरकार चलाना लोकतांत्रिक परंपराओं के आधार पर कितना सही होगा? वहीं, जेल से सरकार चलाना जेल के नियमों पर काफी निर्भर करेगा.

क्या ऐसा हो सकता है?

जेल से सरकार चलाना थोड़ा अतार्किक लगता है, लेकिन ऐसा कोई कानून या नियम नहीं है जो मुख्यमंत्री को ऐसा करने से रोक सके.फिर भी केजरीवाल के लिए जेल से सरकार चलाना टेढ़ी खीर है. दरअसल, जब भी कोई कैदी आता है, तो उसे वहां का जेल मैनुअल फॉलो करना पड़ता है. जेल के अंदर सभी कैदी के सारे विशेषाधिकार खत्म हो जाते हैं, भले ही वो अंडरट्रायल कैदी ही क्यों ना हो. हालांकि, मौलिक अधिकार बने रहते हैं.

जेल में हर काम सिस्टमैटिक तरीके से होता है. जेल मैनुअल के मुताबिक, जेल में बंद हर कैदी को हफ्ते में दो बार अपने रिश्तेदार या दोस्तों से मिलने की इजाजत होती है. हर मुलाकात का समय भी आधे घंटे का होता है.
इतना ही नहीं, जेल में बंद नेता चुनाव तो लड़ सकता है, सदन की कार्यवाही में भी शामिल हो सकता है, लेकिन वहां किसी तरह की बैठक नहीं कर सकता. जनवरी में जब ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था, तो PMLA कोर्ट ने उन्हें विश्वास मत में भाग लेने की इजाजत दे दी थी.

इसके अलावा, कैदी जब तक जेल में है, उसकी कई सारी गतिविधियां कोर्ट के आदेश पर निर्भर होती हैं. कैदी अपने वकील के जरिए किसी कानूनी दस्तावेज पर तो दस्तखत कर सकता है. लेकिन किसी सरकारी दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए कोर्ट की मंजूरी लेनी होगी.
अरविंद केजरीवाल अभी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं. ये अलग बात है कि वो खुद अपनी मर्जी से इस्तीफा दे दें. और फिर कोई नया मुख्यमंत्री बने.
1951 के जनप्रतिनिधि कानून में कहीं इसका जिक्र नहीं है कि जेल जाने पर किसी मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद या विधायक को इस्तीफा देना होगा.

कानून के मुताबिक, किसी मुख्यमंत्री को तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है, जब उन्हें किसी मामले में दोषी ठहराया गया हो. इस मामले में केजरीवाल को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है. उन्हें अभी सिर्फ गिरफ्तार किया गया है. हालांकि, अरविंद केजरीवाल अगर इस्तीफा नहीं देते हैं तो दिल्ली में संवैधानिक संकट खड़ा होने का खतरा है. क्योंकि उनके जेल में रहने से सरकारी कामकाज में बाधा आ सकती है.

अगर केजरीवाल इस्तीफा दे भी देते हैं, तो भी वो विधायक रहेंगे ही. क्योंकि जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, किसी विधायक या सांसद को अयोग्य तभी ठहराया जा सकता है, जब किसी आपराधिक मामले में उसे दो साल या उससे ज्यादा की सजा हुई हो.
हालांकि, आम आदमी पार्टी के नेताओं समेत दिल्ली विधानसभा के स्पीकर रामनिवास गोयल का कहना है कि केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे.

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