गरियाबंद(छत्तीसगढ़)। 11 शिक्षकों के लिए साल 2023 का आखिरी दिन बेहद कड़वा बन गया। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे 11 शिक्षाकर्मियों की नौकरी से छुटटी हो गयी है, वहीं फर्जी सर्टिफिकेट मामले में सभी को 3-3 साल की जेल की सजा सुनायी गयी है। मामला छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का है। पूरा मामला साल 2008- 09 का है, इस दौरान प्रदेश में आई शिक्षा भर्ती में कुछ लोगों ने गड़बड़ी की थी और फर्जी तरीके से उनका चयन हो गया था।

इस दौरान चयनित अभ्यर्थी BED, DED का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर शिक्षक बन गए थे. इसकी भनक लगने के बाद मैनपुर थाने में RTI कार्यकर्ता कृष्ण कुमार ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिस पर कार्रवाई करते हुए गरियाबंद के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 3 साल की सजा सुनाई है. इसके अलावा 1 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. बता दें कि फर्जीवाड़े में दो महिलाएं भी शामिल हैं. साल 2008 में व्यापम से हुई भर्ती में बगैर D.Ed-B.Ed के अभ्यर्थियों को चयन परीक्षा में शामिल होने की पात्रता नहीं थी। आरोपियों ने परीक्षा के लिए भरे गए ऑनलाइन में डीएड करना बताया था।

इसके बाद किसी तरह अपने आप को चयन सूची में शामिल भी करा लिया था। सत्यापन की बारी आई तो डीएड का फर्जी सर्टिफिकेट अटैच भी कर दिया, जिसे चयन समिति ने भी मान लिया था।इन 11 फर्जी शिक्षाकर्मी में पिताम्बर साहू, योगेन्द्र सिन्हा, देव नारायण साहू, भेगेश्वरी साहू, हेमलाल साहू, दौलत राम साहू, संजय शर्मा, ममता सिन्हा, शंकर लाल साहू, अरविंद कुमार सिन्हा, शिव कुमार साहू का नाम शामिल है।

फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे नौकरी करने वाले इस मामले की 11 साल तक सुनवाई चली। कोर्ट ने 26 गवाहों के बयान दर्ज किए थे। आरटीआई कार्यकर्ता कृष्ण कुमार ने आरटीआई के तहत जानकारी निकाल कर 11 लोगों के द्वारा लगाए गए सर्टिफिकेट के फर्जी होने का खुलासा किया था। रायपुर एसपी के समक्ष अप्रैल 2010 को इसकी लिखित शिकायत दर्ज करवाया। मामले को रायपुर से गरियाबंद एसपी कार्यालय ट्रांसफर करने के बाद जांच नए सिरे से शुरू की गई।
राजनीतिक सरंक्षण के चलते मामला खींचता गया। आखिरकार 28 जनवरी 2012 को इस मामले में मैनपुर थाने में मामला दर्ज किया गया था। मामले में 11 शिक्षाकर्मी समेत चयन समिति के 6 अफसरों को आरोपी बनाया गया था।

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