CM तय करने में भाजपा को क्यों लग गया इतना समय? पढ़िए 5 बड़ी वजह

दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम 8 फरवरी,2025 को ही आ चुका है। बीजेपी ने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) को हराकर दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत हासिल की है। लेकिन, 10 दिनों बाद भी पार्टी मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर सकी है।इसके लिए एक बार टलने के बाद अब बुधवार (19 फरवरी, 2025) को बीजेपी विधायक दल की बैठक बुलाई गई है।
पिछले साल के आखिर में बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा दो राज्यों में भी धमाकेदार जीत के साथ सत्ता में आई है। हरियाणा में पार्टी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को ही सीएम का चेहरा बनाया था, इसलिए उनका नाम तय करने में कोई बाधा नहीं थी। लेकिन, महाराष्ट्र में बीजेपी और महायुति (NDA) को ऐतिहासिक जीत मिलने के बाद भी मुख्यमंत्री तय करने में काफी दिन लग गए थे।दिल्ली में भी वही हुआ है, लेकिन इसके पीछे कुछ खास वजहें हो सकती हैं और हम यहां पर ऐसी 5 संभावित वजहों के बारे में बात कर रहे हैं।CM
दिल्ली में बीजेपी का पहला और एकमात्र कार्यकाल 1993 से 1998 तक रहा था। इन पांच वर्षों में ही पार्टी को अलग-अलग वजहों से तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे। पहले मदनलाल खुराना को मौका मिला। लेकिन, जैन डायरी की वजह से उनकी कुर्सी चली गई। उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा को सीएम बनाया गया। इस दौरान कई घटनाएं हो गईं, जैसे उपहार सिनेमा और यमुना में स्कूली बस का गिरना। लेकिन, फिर प्याज की कीमतों ने ऐसा आसमान छूना शुरू किया कि विपक्ष को उनके खिलाफ मौका मिल गया।CM
पार्टी ने हालात संभालने के लिए चुनाव से कुछ महीने पहले सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन, प्याज ने फिर भी बीजेपी को रोने पर मजबूर कर दिया। अबकी बार पार्टी इसी वजह से काफी सोच-विचार करके मुख्यमंत्री तय करना चाहती है और हो सकता है कि इसी वजह से इतना वक्त लग गया।
दिल्ली में बीजेपी को 70 में से 48 सीटें मिली हैं और करीब 46% वोट मिले हैं। मतलब, समाज के हर वर्ग ने इस बार उसे सरकार बनाने के लिए मौका देने का काम किया है। शायद यही वजह है कि पार्टी एक ऐसे सर्वमान्य नेता को सीएम पद की जिम्मेदारी देना चाह रही है, जो सभी वर्गों को पसंद हो या कम से कम जिसके पीछे व्यापक जन-समर्थन हो।CM
माना जा रहा है कि बीजेपी सिर्फ मुख्यमंत्री पद के लिए नेता की लोकप्रियता पर ही ध्यान नहीं दे रही है, बल्कि उसके लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का आशीर्वाद भी चाहती है। इसलिए पार्टी के 48 एमएलए में उस नेता को भी चुनने की कोशिश हो सकती है, जिसका या तो संघ वाला बैकग्राउंड हो या फिर कम से कम जिस चेहरे पर संघ को कोई आपत्ति न हो।
पिछले दो बार से दिल्ली में ‘आप’की जबरदस्त बहुमत वाली सरकारें थीं और अधिकतर समय तक उसके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रहे, जो अपने समर्थकों के बीच आज भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं। ऐसे में बीजेपी को एक ऐसा चेहरा ढूंढ़ने की चुनौती भी रही है, जो उनकी छवि का मुकाबला कर सके और साथ ही साथ दिल्ली के लोगों के मन में अपनी विशेष जगह भी बना सके।CM
आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार की भ्रष्टाचार और उसके बड़े नेताओं के आचरण की वजह से जनता में बहुत बदनामी हो चुकी है। इसका पूरा शीर्ष नेतृत्व दागदार हो गया था। ऐसे में बीजेपी को एक ऐसे नेता की तलाश रही जो उनके मुकाबले में जनता की नजरों में पूरी तरह से बेदाग हो और समाज के बड़े तबके में उसकी प्रतिष्ठा भी हो।मुख्य तौर पर यही पांच वजहें हो सकती है, जिससे तालमेल बिठाने की वजह से बीजेपी को विधायक दल की बैठक बुलाने में 11-12 दिन लग गए।CM
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