…जब एक चिड़िया की मौत ने शिबू सोरेन की बदल दी जिंदगी, मांसाहार छोड़कर बन गये शाकाहारी, जानिये दो घटना, जिससे शिबू सोरेन बन गये दिशोम गुरू

...When the death of a bird changed Shibu Soren's life, he gave up non-vegetarian food and became a vegetarian, know two incidents, due to which Shibu Soren became Dishom Guru

Shibu Soren Story: शिबू सोरेन यूं तो ताउम्र संघर्ष करते रहे…संघर्ष के दौरान कई बार उन पर हत्या जैसे आरोप भी लगे, लेकिन हर बार वह बेदाग निकले। उनकी जिंदगी से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो उनके नेकदिली को भी बया करते हैं। उन्हीं किस्सों में एक है उनका मांसाहारी से शाकाहारी बन जाना।

 

दरअसल शिबू सोरेन का बचपन सामान्य था, लेकिन एक घटना ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। 9 साल की उम्र में 1953 में दशहरे के दिन उनके पिता सोबरन सोरेन घर में मोर का पंख निकल रहे थे। तभी पालतू चिड़िया भेग़राज बार-बार उनके पैर में चोंच मारने लगी। परेशान होकर सोबरन ने बंदूक की नोक से चिड़िया को हटाने की कोशिश की, लेकिन इस दौरान गलती से चिड़िया की मौत हो गई।

 

इस घटना ने शिबू सोरेन को काफी मर्माहत कर दिया। इस घटना ने उनके कोमल मन में इतना गहरा आघात पहुंचाया, कि उन्होंने न सिर्फ चिड़िया के लिए खटिया बनाई बल्कि उसके कफन तक की व्यवस्था की और उसका दाह संस्कार भी किया।

 

यहीं से शिबू सोरेन ने मांस मछली छोड़ दी और पूरी तरह से शाकाहारी बन गए। अहिंसा को उन्होंने अपने जीवन का मूल मंत्र बना दिया। हालांकि यह बात अलग है कि कई बार उन पर गंभीर आरोप भी लगे। शिबू सोरेन का जीवन तब और बदल गया जब 27 नवंबर 1957 को उनके पिता सोबरन की हत्या कर दी गई।

 

सोबरन एक शिक्षक थे और महाजनों के शोषणकारी प्रथा के खिलाफ आदिवासियों को जागरुक करते थे। इस घटना ने शिबू सोरेन को काफी ज्यादा झकझोर कर रख दिया। उस वक्त शिबू सोरेन स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे।

 

पिता सोबरन ने हॉस्टल में रहकर उनकी पढ़ाई की व्यवस्था की थी, लेकिन इस घटना के बाद शिबू सोरेन का मन पढ़ाई से ऊब गया और उन्होंने हजारीबाग में फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता लाल केदारनाथ सिंह के पास पहुंचकर महाजनों के खिलाफ आवाज उठाने के अपने संकल्प को बताया। इसके बाद शिबू सोरेन न सिर्फ संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ गए, बल्कि आदिवासी समाज को एकजुट कर शोषण के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया। यही उन्होंने धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की जो बाद में एक बड़े संघर्ष का पर्याय बन गया।

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