रांची। बाबूलाल मरांडी पार्टी में और मजबूत हो गये हैं। ऐसा नहीं है कि मरांडी पहले मजबूत नहीं थे, लेकिन जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनकी ताजपोशी हुई है, वो उनकी मजबूती पर राष्ट्रीय नेतृत्व की मुहर है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा संगठन में इस बड़े फेरबदल के कई मायने हैं। जानकार मानते हैं कि बाबूलाल मरांडी की प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी से पार्टी में उनका कद सिर्फ प्रदेश में ही नहीं, बल्कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व में भी मजबूत होगा।

आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों वर्ग में स्वीकार्यता
भाजपा ने आदिवासी चेहरे को आगे लाकर ना सिर्फ हेमंत सोरेन के समानांतर एक आदिवासी चेहरे को आगे किया है, बल्कि पार्टी की तरफ से ये संकेत भी दिया है कि वो आक्रामकता के साथ झारखंड में राजनीति करेगी। 14 साल के वनवास के बाद साल 2020 में घर वापसी करने वाले बाबूलाल मरांडी को अमित शाह की पसंद कहा जाता है। कहा जाता है कि 2014 में मोदी लहर में बाबूलाल मरांडी लोकसभा और विधानसभा चुनाव हार गए थे। तब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मरांडी को वापस भारतीय जनता पार्टी में शामिल करना चाहा और उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए राज्यसभा सीट की पेशकश करते हुए उनके पास चुनाव लड़ने के लिए संदेश भेजा था। कहा जाता है कि खुद अमित शाह ने कोलकाता में मरांडी का पता लगाया, और उन्हें एक संदेशवाहक के माध्यम से भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव भेजा था। ये बात अलग है कि तब भाजपा के प्रस्ताव को मरांडी ने ठुकरा दिया था।

शाह और संघ दोनों की है मरांडी पसंद
मरांडी सिर्फ अमित शाह की ही पसंद नहीं है, बल्कि वो संघ के भी पसंदीदा है। राष्ट्री य स्वंयंसेवक संघ से जुड़े रहे बाबूलाल मरांडी का झारखंड के आदिवासी समुदायों के बीच काफी प्रभाव है। जानकारों का कहना है कि मौजूदा वक्त में भाजपा के लिए झारखंड में बाबूलाल मरांडी जरूरी भी हैं और मजबूरी भी। 2020 के चुनाव में हार के बाद भाजपा को झारखंड में एक मजबूत आदिवासी चेहरे की जरूरत थी, ताकि राज्य में पार्टी की शिथिलता को दूर किया जा सके। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मरांडी की ताजपोशी, उसी की एक कड़ी है। जानकार बताते हें कि आज भी सूबे की राजनीति में बाबूलाल मरांडी ही एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका गुरुजी के बाद पूरे झारखंड में अपना जनाधार व अपनी पहचान है। जाहिर है आने वाले दिनों झारखंड भाजपा में इसका असर भी दिखेगा। मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद ये कहा जा सकता है कि जल्द उनकी टीम भी झारखंड में तैयार होगी। जाहिर है मरांडी की टीम में कौन-कौन शामिल होंगे इस पर सभी की नजर रहेगी।

हेमंत सरकार के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं
बाबूलाल मरांडी हेमंत सरकार के खिलाफ काफी मखर रहे हैं। वो भ्रष्टाचार और सरकारी नीति-रीति को लेकर लगातार आक्रामक रहे हैं। मनरेगा घोटाला से लेकर खनन घोटाले तक में बाबूलाल मरांडी ने जमकर हेमंत सोरेन की सरकार पक कटघरे में खड़ा किया। पूजा सिंघल और छवि रंजन के घोटाले मामले को लेकर भी बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया के जरिये जमकर निशाना साधा था। साथ ही साथ सार्वजनिक मंचों पर भी मरांडी ने सरकार को आईना दिखाया था। बाबूलाल मरांडी की आक्रामकता ने राष्ट्रीय नेतृत्व की नजह में उन्हें और भी फेवरेट बनाया है।

साफ सुथरी छवि है बाबूलाल मरांडी की
बाबूलाल मरांडी की छवि साफ सुथरी रही है। ये बात अगर है कि वो इस छवि के पीछे की वजह 17 साल से किसी भी सरकार में उनका हिस्सा ना होना भी है। उनके पहले कार्यकाल की बात की जायेगी तो डोमेसाइल विवाद को छोड़ दिया जाये, तो मरांडी के कार्यकाल की आज भी मिसाल दी जाती है। मरांडी की छवि ऐसी है जिसमें भ्रष्टाचार के दाग नहीं है। वहीं उनकी स्वीकार्यता आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों में है। लिहाजा पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने में इन समीकरणों का भी जरूर ख्याल रखा है। पार्टी ये जरूर आगे भी भुनाना चाहेगी कि एक तरफ हेमंत सरकार है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप ही आरोप है, दूसरी तरफ बाबूलाल मरांडी है, जिन पर भ्रष्टाचार के कोई दाग नहीं है। उनके पहले कार्यकाल में भी भ्रष्टाचार का दाग नहीं है।

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