• केंद्र सरकार सुखाड़ से निपटने हेतु झारखण्ड के लिए विशेष पैकेज स्वीकृत करे
  • लघु सिंचाई परियोजना के माध्यम से सिंचाई की सुविधा बढ़ाने विशेष पैकेज
  • 1लाख 36 हजार करोड़ बकाया राशि भुगतान हेतु खनन कंपनियों को निर्देश दे
  • खनिज संपदा के उत्खनन से प्राप्त आय का ज्यादा हिस्सा झारखण्ड को प्राप्त हो

रांची। सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण हर तीन-चार साल पर राज्य को सुखाड़ का दंश झेलना पड़ता है। इस वर्ष भी अभी तक सामान्य से 50 प्रतिशत कम वर्षा हुई है एवं 20 प्रतिशत से भी कम जमीन पर धान की रोपनी हो पाई है। वर्त्तमान परिस्थिति में झारखण्ड सुखाड़ की ओर बढ़ रहा है। मैं केंद्र सरकार से आग्रह करता हूं कि झारखण्ड राज्य के लिए विशेष पैकेज स्वीकृत किया जाए, जिससे की सुखाड़ से निबटा जा सके। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री नई दिल्ली में नीति आयोग के शासी निकाय की बैठक में बोल रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा विगत दो वर्षों से कोविड- 19 जैसी महामारी के फलस्वरूप झारखण्ड जैसे पिछड़े राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है इस कुप्रभाव को न्यूनतम करने के लिए राज्य सरकार अथक प्रयास कर रही है और बेहतर परिणाम भी मिल रहे हैं। विगत ढाई वर्षों में झारखण्ड ने आर्थिक, सामाजिक विकास एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में विभिन्न कदम उठाये हैं। प्रदेश की मूलभूत सरंचना को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। इस आयाम को और अधिक बल देने हेतु केन्द्र सरकार का सहयोग सभी राज्यों, विशेष कर झारखण्ड जैसे पिछड़े एवं आदिवासी बाहुल्य राज्य को प्राप्त हो।

केसीसी हेतु बैंकों को निर्देश दे नीति आयोग

मुख्यमंत्री ने कहा कि 2019 तक 38 लाख किसानों में से मात्र 13 लाख किसानों को KCC मिल पाया था। पिछले 2 सालों में सरकार के अथक प्रयास से 5 लाख नए किसानों को KCC का लाभ प्राप्त हुआ है परन्तु अभी भी 10 लाख से अधिक आवेदन विभिन्न बैंकों में लंबित हैं। राज्य सरकार नीति आयोग से सभी बैंको को KCC की स्वीकृति हेतु आवश्यक निर्देश देने का आग्रह करती है। झारखण्ड में फसलों में विविधता लाने की दिशा में अभी तक कोई विशेष कार्य योजना पर कार्य नहीं हुआ है। कारण किसानों का सब्सिस्टेंस खेती पर केंद्रित होना। हमने धान अधिप्राप्ति को 2 वर्ष में 4 से 8 लाख टन तक पहुँचाया है परंतु अभी भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए केंद्र सरकार और FCI के विशेष सहयोग की आवश्यकता है।

सिंचाई की सुविधा हेतु विशेष पैकेज स्वीकृत किया जाए

मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में सिंचाई की सुविधाओं का घोर अभाव है एवं मात्र 20 प्रतिशत भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। राज्य में 5 लाख हेक्टेयर खरीफ की भूमि अपलैंड की श्रेणी में आती है जिस पर फसलों में विविधता लाई जा सकती है बशर्ते कि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। राज्य में दलहन एवं तिलहन के उत्पादन की असीम संभावना है। झारखण्ड राज्य में लघु सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने हेतु एक विशेष पैकेज स्वीकृत किया जाए। बागवानी के क्षेत्र में विस्तार के लिए बिरसा हरित ग्राम योजना लागू की है। इस योजना के क्रियान्वयन से जहाँ राज्य के गरीब किसान परिवारों को आजीविका का स्थायी अवसर दिया जा रहा है वहीं एक बड़े क्षेत्रफल में परती टांड भूमि का बेहतर प्रबंधन व उपयोग सुनिश्चित किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत अब तक लगभग 60,000 एकड़ टांड भूमि में आम एवं मिश्रित बागवानी सफलतापूर्वक की जा चुकी है। इस वित्तीय वर्ष में 25,000 एकड़ में बागवानी की प्रारम्भिक गतिविधियों को कराया जा रहा है। इससे किसानों को प्रति एकड़ प्रति वर्ष औसतन 25,000/- से 30,000/- रुपये की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो रही है।

उत्खनन से प्राप्त आय का अधिक हिस्सा झारखण्ड को प्राप्त होना चाहिए

मुख्यमंत्री ने कहा झारखण्ड का गठन ही जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हुआ है । परन्तु यहाँ जितनी भी कंपनियाँ खनन एवं उद्योग लगाने आई। उन सभी ने बस यहां जल, जंगल और जमीन का दोहन किया है। किसी भी खनन कंपनी द्वारा माईनिंग करके जमीन को रिक्लेम करने का प्रयास नहीं हुआ है। कभी भी विस्थापितों की समस्या को दूर करने का सही से प्रयास नहीं हुआ। झारखण्ड के खनिज एवं वन संपदाओं का देश के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है परन्तु झारखण्ड के आदिवासी और मूलवासी ने हमेशा अपने को ठगा हुआ महसूस किया। मुझे लगता है कि खनिज संपदा के उत्खनन से प्राप्त आय का अधीकाधीक हिस्सा झारखण्ड जैसे राज्य को प्राप्त होना चाहिए परन्तु पिछले कुछ वर्षों में जो नीतिगत परिवर्तन हुए हैं वो ठीक इसके विपरित साबित हुए हैं। उदाहरण के लिए GST लागु होने से झारखण्ड को काफी घाटा हुआ है परन्तु उसकी भरपाई करने का प्रयास समुचित तरीके से नहीं किया गया है। झारखण्ड राज्य में विभिन्न खनन कंपनियों की भू अर्जन, रॉयल्टी इत्यादि मद में करीब एक लाख छत्तीस हज़ार करोड़ रुपये बकाया है परन्तु खनन कंपनियों इसके भुगतान में कोई रुचि नहीं दिखा रही है। हम लोगों ने विभिन्न बैठकों में इस विषय को उठाया है तथा इस संबंध में पत्राचार भी किया है परन्तु हमारे सभी प्रयासों का फलाफल अभी तक शून्य रहा है। झारखण्ड को ये बकाया राशि का भुगतान कराने का निर्देश इन खनन कंपनियों को केंद्र सरकार दे, जिससे कि राज्य के लोगों के सर्वांगीण विकास में इस राशि का उपयोग किया जा सके।

आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के हितों का रखें ध्यान

मुख्यमंत्री ने कहा झारखण्ड का करीब 30 प्रतिशत एरिया वन भूमि से आच्छादित है एवं अधिकांश खनिज संपदा वन क्षेत्र में अवस्थित है, जिसके लिए वन भूमि अपयोजन की आवश्यकता होती है। अभी हाल के दिनों में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अन्तर्गत नई नियमावली बनाई गई है जिसमें वन भूमि अपयोजन के लिए स्टेज 2 क्लीयरेंस के पूर्व ग्राम सभा की सहमति के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है जो मेरे विचार से आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के हितों के प्रतिकूल है। झारखण्ड में विभिन्न कंपनियों के भू-अर्जन, रॉयल्टी आदि मद में करीब 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाया है परंतु कम्पनियां इसके भुगतान में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इस बाबत कई प्रयास किये गए जिनका फलाफल शून्य रहा।  मैं माननीय प्रधानमंत्री जी एवं नीति आयोग से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का भी आग्रह करना चाहूँगा ।

क्या-क्या बोले मुख्यमंत्री

आज@NITIAayog की 7वी गवर्निंग काउंसिल बैठक में भाग लिया। ढाई वर्षों में राज्य ने आर्थिक, सामाजिक विकास एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कई कदम उठाये हैं। इसे और बल देने हेतु Cooperative Federalism की अवधारणा के तहत केंद्र सरकार का सहयोग सभी राज्यों विशेषकर झारखण्ड को प्राप्त हो।

राज्य में तिलहन और दलहन उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। राज्य में सिंचाई सुविधाओं का घोर अभाव है। मात्र 20% भूमि पर ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है।
मेरा अनुरोध है कि झारखण्ड राज्य में लघु सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने हेतु एक विशेष पैकेज स्वीकृत किया जाय।

झारखण्ड में फसलों में विविधता लाने की दिशा में अभी तक कोई विशेष कार्य योजना पर कार्य नहीं हुआ है। कारण किसानों का सब्सिस्टेंस खेती पर केंद्रित रहना। हमने धान अधिप्राप्ति को 2 वर्ष में 4 से 8 लाख टन पहुँचाया परंतु आगे बढ़ने के लिए केंद्र सरकार और FCI के विशेष सहयोग की आवश्यकता है।

सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण हर 3-4 साल में झारखण्ड को सुखाड़ का दंश झेलना पड़ता है। वर्तमान परिस्थिति में राज्य सुखाड़ की ओर बढ़ रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि झारखण्ड राज्य के लिए विशेष पैकेज स्वीकृत किया जाए जिससे सुखाड़ जैसी विकट समस्या से निबटा जा सके।

झारखण्ड में करीब 30% वन भूमि क्षेत्र है। नई नियमावली में वन भूमि अपयोजन के लिए स्टेज-2 क्लीयरेंस के पूर्व ग्राम सभा की सहमति का प्रावधान समाप्त कर दिया गया जो आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के हितों के प्रतिकूल है। माननीय प्रधानमंत्री जी से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने हेतु आग्रह है।

झारखण्ड में विभिन्न खनन कंपनियों के भू-अर्जन, रॉयल्टी आदि मद में करीब 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाया है परंतु कंपनियां इसके भुगतान में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इस बाबत कई प्रयास भी किये गए जिनका फलाफल शून्य रहा। माननीय प्रधानमंत्री जी से विनम्र आग्रह है बकाया राशिभुगतान कराने हेतु निर्देश इन खनन कंपनियों को दें जिससे राज्य के नागरिकों के सर्वांगीण विकास में इस राशि का उपयोग किया जा सके।

झारखण्ड को कोयला कंपनियों द्वारा Ad Valorem के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान नहीं किया जा रहा जिससे राज्य को हजारों करोड़ की राशि से वंचित होना पड़ रहा है। मुझे बताया गया है कि कोयला मंत्रालय द्वारा इस प्रावधान को समाप्त करने की तैयारी की जा रही है जो झारखण्ड जैसे राज्य के लिए अन्याय होगा। माननीय प्रधानमंत्री जी से इस विषय पर सकारात्मक पहल करने हेतु आग्रह है।

झारखण्ड के खनिज एवं वन संपदाओं का देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। परंतु राज्य के आदिवासी और मूलवासी ने हमेशा ठगा हुआ महसूस किया है। खनिज संपदा के उत्खनन से प्राप्त आय का अधिकाधिक हिस्सा झारखण्ड जैसे राज्य को प्राप्त होना चाहिए परंतु पिछले कुछ वर्षों में जो नीतिगत परिवर्तन हुए वो ठीक इसके विपरीत साबित हुए हैं। जैसे GST लागू होने से झारखण्ड को काफी घाटा हुआ है परंतु इसकी भरपाई करने का प्रयास समुचित तरीके से नहीं किया गया।

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