झारखंड : धर्मांतरण वाले आदिवासी नहीं करते मरांग बुरु की पूजा…छीना जाए ST आरक्षण…बोले चंपाई सोरेन
Tribals who convert do not worship Marang Buru...ST reservation should be taken away...said Champai Soren

पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़कर भाजपा मे आये चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण कर ईसाई या मुस्लिम धर्म स्वीकार करने वाले आदिवासियों को आरक्षण के दायरे से बाहर करने की मांग की है.
चंपाई सोरेन ने साथ ही कांग्रेस पार्टी को आदवासी विरोधी भी कहा है.
चंपाई सोरेन ने आदिवासी नेता कार्तिक उरांव द्वारा 1967 में संसद में पेश किए गए डीलिस्टिंग प्रस्ताव का उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस व्यक्ति ने आदिवासी परंपराओं का त्याग कर दिया है, उसको अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जायेगा.
गौरतलब है कि हालिया संपन्न विधानसभा के बजट सत्र में डुमरी विधायक जयराम महतो ने भी धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को एसटी आरक्षण के दायरे से बाहर करने की मांग की थी. 2 साल पहले, पूर्व भाजपा सांसद कड़िया मुंडा की अगुवाई में रांची के मोरहाबादी मैदान में डीलिस्टिंग महासभा का आयोजन किया गया था. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों का एसटी आरक्षण छीनने वाला कानून लाने की बात कह चुके हैं.
चंपाई सोरेन ने बाबा कार्तिक उरांव का जिक्र किया
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को आरक्षण के दायरे से बाहर करने के मुद्दे पर ऑफिशियल ट्विटर (एक्स) पर लंबा चौड़ा ट्वीट किया है.
चंपाई सोरेन ने कहा कि 1967 में आदिवास नेता बाबा कार्तिक उरांव संसद में डीलिस्टिंग प्रस्ताव लाये थे. उनके प्रस्ताव को संसदीय समिति को भेजा गया था.
संयुक्त संसदीय समिति ने 17 नवंबर 1969 को सिफारिशें सौंपी जिसमें कहा कि जो व्यक्ति आदिवासी परंपराओं का त्याग कर चुका है. ईसाई या इस्लाम धर्म अपना चुका है, उसको अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं माना जायेगा.
उसे धर्मांतरण के बाद एसटी वर्ग को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित होना होगा.
चंपाई सोरेन ने कांग्रेस को बताया आदिवासी विरोधी
चंपाई सोरेन ने कहा कि सालभर तक इन सिफारिशों पर कुछ नहीं हुआ.
कार्तिक उरांव ने फिर लोकसभा के 322 और राज्यसभा के 26 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला पत्र तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपा. उनसे विधेयक की सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए कहा गया लेकिन ईसाई मिशनरी के प्रभाव में तात्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
चंपाई सोरेन ने कहा कि हमारे पास कांग्रेस को आदिवासी विरोधी कहने के कई कारण हैं.
1961 में कांग्रेस ने ही जनगणना से आदिवासी धर्मकोड को हटाया. झारखंड आंदोलन के दौरान आदिवासियों पर गोली चलवाई.
मरांग बुरु की पूजा नहीं करने वाले आरक्षण के हकदार नहीं!
चंपाई सोरेन ने कहा कि आदिवासी संस्कृति का मतलब केवल पूजन पद्धति नहीं है बल्कि संपूर्ण जीवनशैली है.
उन्होंने कहा कि जन्म से लेकर मृत्यु तक में तमाम अनुष्ठान मांझी, परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा द्वारा किए जाते हैं. लेकिन धर्मांतरण के बाद ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले इन कार्यों के लिए चर्च जाते हैं. वे मरांग बुरु या सिंग बोंगा की पूजा नहीं करते हैं. परंपराओं से दूर हटने के बावजूद आरक्षण का लाभ लेते हैं ये लोग.
इससे सरना आदिवासी बच्चे रेस में पिछड़ जाते हैं.