रांची: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के इस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 2016 की नियोजन नीति को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को खूंटी व सिमडेगा के शिक्षकों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गयी थी।

झारखंड सरकार ने वर्ष 2016 में बनाई थी नियोजन नीति

झारखंड सरकार ने वर्ष 2016 में तृतीय और चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए नियोजन नीति बनाई थी। इसमें अनुसूचित जिलों की नौकरी में सिर्फ उसी जिले के निवासियों को ही नियुक्त करने का प्रविधान किया गया था। गैर अनुसूचित जिले के लोग इसमें आवेदन भी नहीं कर सकते थे। जबकि गैर अनुसूचित जिले में सभी जिलों के लोग आवेदन कर सकते थे। सरकार ने दस साल के लिए यह प्रावधान किया था। सरकार की इस नीति को सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट ने कहा था- नीति संविधान के प्रविधानों के अनुरूप नहीं

हाई कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा कि सरकार की यह नीति संविधान के प्रविधानों के अनुरूप नहीं है। इस नीति से एक जिले के सभी पद किसी खास लोगों के लिए आरक्षित हो जा रहे हैं। जबकि शत-प्रतिशत आरक्षण किसी भी चीज में नहीं दिया जा सकता। जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने इस नीति को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना को भी निरस्त कर दी थी। अदालत ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया को रद करते हुए इन जिलों में फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। जबकि 11 गैर अनुसूचित जिलों में जारी नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा था। उक्त आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। अदालत ने नियुक्ति हुए करीब पांच हजार शिक्षकों की नियुक्ति पर पूर्व में रोक लगा दी थी।

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