झारखंड की बेटियों की संघर्ष और सफलता की कहानी…राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के साथ ये महिलाएं बनीं प्रेरणा का स्रोत
The story of struggle and success of the daughters of Jharkhand... These women along with President Draupadi Murmu became a source of inspiration

रांची : कहते है ‘जब परिवार में एक महिला उठती है, तो पूरी पीढ़ी उठती है’ — यह कहावत झारखंड की उन अद्भुत महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिन्होंने समाज की रुढ़ियों, अन्याय और विषमताओं को ठेंगा दिखाकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया है।
द्रौपदी मुर्मु : आदिवासी समाज से पहली महिला राष्ट्रपति बनने तक का सफर
झारखंड की सीमा से सटे ओडिशा की मिट्टी में जन्मीं द्रौपदी मुर्मु ने भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनकर इतिहास रच दिया। वे देश की दूसरी महिला और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं। उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 60% से अधिक वोटों से हराकर यह मुकाम हासिल किया।
ओडिशा स्थित मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में जन्मीं मुर्मु संथाल जनजाति से हैं, जो खेती और खनन जैसी आजीविका पर निर्भर हैं। परंतु यह जनजाति भारत की सबसे साक्षर आदिवासी जातियों में गिनी जाती है। पढ़ाई में स्नातक मुर्मु ने शिक्षक, फिर ओडिशा सचिवालय से करियर शुरू किया और फिर 1997 में भाजपा से राजनीति में कदम रखा।
वो न केवल पहली महिला बनीं जो झारखंड की राज्यपाल बनीं, बल्कि 2015 से 2021 तक का कार्यकाल पूरा करने वाली पहली राज्यपाल भी रहीं।
जमुना टुडू : जंगलों की रक्षक, ‘लेडी टार्जन’
जमुना टुडू, जिन्हें ‘लेडी टार्जन’ कहा जाता है, ने जंगलों की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगाई। उन्होंने 2019 में पद्मश्री सम्मान प्राप्त किया।
जमुना और उनकी महिला टोली ने झारखंड के गांव के आसपास के 50 हेक्टेयर जंगल को वन माफिया से बचाया। उनके पास कोई आधुनिक हथियार नहीं थे—सिर्फ तीर, धनुष और पत्थर, इसे ही उन्होंने अपना हथियार बनाया और अपने हौसले और जज़्बे के दम पर आज पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गई है।

सोनाली मुखर्जी : तेज़ाब हमले से जूझी, लेकिन हारी नहीं
बोकारो की सोनाली मुखर्जी, एक एसिड अटैक सर्वाइवर, आज महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी हैं। चेहरे पर तेज़ाब गिरा, पर उनके हौसले को कोई तेजाब पिघला नहीं पाया और वो कइयों की आवाज बनकर उभरीं। उन्होंने विकलांगों की सहायता, ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कार्य, और कई एनजीओ का संचालन कर समाज में बदलाव लाने का कार्य किया।
सोनाली को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और फेसबुक द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन प्रतियोगिता में ‘वीरांगना’ सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

सुचित्रा सिन्हा : आदिवासी हस्तशिल्प को दी नई जान
रांची की सुचित्रा सिन्हा, NITI Aayog द्वारा 75 Women Transforming India में शामिल की गईं। उन्होंने सरायकेला जिले के नीमडीह ब्लॉक में विलुप्त होती जनजाति ‘सबरा’ के साथ 25 वर्षों से अधिक समय से काम किया है। इन जनजातियों को ‘सबसे गरीब में गरीब’ माना जाता है, और उनकी पारंपरिक हस्तकला लगभग समाप्त हो चुकी थी। लेकिन सुचित्रा की संस्था ‘अंबालिका’ ने उन्हें नया जीवन दिया, स्थायी रोजगार और पहचान दिलाई। उनके अथक प्रयासों से आज ये महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनी है बल्कि इन्होंने अपनी एक नई पहचान भी हासिल की है।

छुटनी महतो : डायन कहकर प्रताड़ित महिलाओं की रक्षक
62 वर्षीय छुटनी महतो को 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने झारखंड में 100 से अधिक महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया। पीड़िता, छुटनी को भी कभी डायन कहा गया था। उन्हें ससुराल में काफी प्रताड़ित भी किया गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गांव-गांव जाकर जागरूकता फैलाई और महिलाओं को समाज में सम्मान दिलाया।

नारी शक्ति की पहचान बना झारखंड
झारखंड की इन बेटियों ने दिखा दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर हमारे इरादे दृढ़ हो, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है और समाज के लिए सफलता का पर्यायवाची बना जा सकता है। इन महिलाओं ने न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि पूरे समाज को नया रास्ता दिखाया।
अगर आप भी झारखंड की इन वीरांगनाओं से प्रेरित हैं, तो इस कहानी को शेयर करें—क्योंकि प्रेरणा जब बांटी जाती है, तब बदलाव की शुरुआत होती है।