सीटियां बजती रहीं… लोग चिल्लाते रहे… लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी… आंखों में बसी धराली त्रासदी की वह दहला देने वाली दोपहर…

उत्तरकाशी (उत्तराखंड), 7 अगस्त :“हमने केवल चिल्लाया… सीटियां बजाईं… लेकिन तबाही इतनी तेज़ थी कि कोई कुछ नहीं कर सका…” यह शब्द हैं उत्तराखंड की दर्दनाक आपदा के प्रत्यक्षदर्शियों के, जिनकी आंखों के सामने धराली गांव कुछ ही सेकंड में एक खूबसूरत बस्ती से मलबे का मैदान बन गया।
मंगलवार दोपहर को जो हुआ, उसने मुखबा और आसपास के गांवों में दहशत और सदमे की लहर दौड़ा दी है। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग – हर कोई अभी भी स्तब्ध है। बादल फटने और मलबे के भयानक सैलाब ने सब कुछ लील लिया।
“हम कुछ नहीं कर पाए… बस चिल्लाते रह गए”
मुखबा गांव की महिलाओं ने बताया कि जब आपदा आई, तो उन्होंने केवल सीटियां बजाकर और चिल्लाकर धराली के लोगों को सतर्क करने की कोशिश की, लेकिन तेज़ी से आता मलबा किसी को बचने का वक्त ही नहीं दे रहा था।
प्रत्यक्षदर्शी आशा सेमवाल ने कहा –
“हमारे अपने वहां थे… और हम सिर्फ चिल्ला सके।”
25-30 लोग बाजार में, 150 से ज़्यादा अब भी लापता?
आपदा के समय धराली के बाजार में मौजूद थे बिहारी-नेपाली मजदूर, स्थानीय ग्रामीण और पर्यटक
छात्र जयराज ने बताया:
“मैं सीटियां बजाता रहा, लेकिन तब तक 20 से ज़्यादा होटल बह चुके थे।”
एक अनुमान के अनुसार, 150 से ज़्यादा लोग लापता हो सकते हैं।
500 साल पुराना कल्प केदार मंदिर भी मलबे में दब गया।
“यह बाढ़ नहीं… जलप्रलय था”
गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल के अनुसार,
“कम से कम ₹300-400 करोड़ की क्षति हुई है।”
“500 किमी/घंटा की रफ्तार से आया सैलाब – किसी को भागने का भी वक्त नहीं मिला।”
धराली की 70-90% आबादी तबाह
जयवीर नेगी, जो उस समय होटल में काम कर रहे थे, कहते हैं:
“धराली में कुल 400 लोग रहते हैं, लेकिन अब गांव का बड़ा हिस्सा मिट्टी के नीचे दब चुका है।”
लोगों की एक ही अपील – ‘सरकार मदद करे’
मुखबा की सुलोचना देवी ने कहा:
“हमारे शब्द नहीं, सिर्फ आंसू हैं… सरकार से अपील है कि राहत और पुनर्वास में देर न हो।”