झारखंड की दर्दभरी कहानी: सात माह की मासूम पंचमी की जिंदगी पर संकट, अस्पताल में जंग लड़ रही है ये छोटी सी जान!
Jharkhand's sad story: Seven-month-old Panchami's life is in danger, this little life is fighting a battle in the hospital!

घाटशिला : सात माह की मासूम पंचमी पैरा आज घाटशिला अनुमंडल अस्पताल के एमटीसी वार्ड में जिंदगी की जंग लड़ रही है। उसका बचपन उस मोड़ पर है, जहां मां-बाप का साया तो पहले ही उठ चुका है और अब उसके भविष्य पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। पश्चिम बंगाल के बांदवान थाना अंतर्गत कुचिया गांव निवासी अमित पैरा ने दो वर्ष पूर्व डुमरिया प्रखंड के माडोतोलिया (तोरियाबेड़ा) निवासी पूजा गोडसराय (16) से प्रेम विवाह किया था।
इस विवाह को अमित के परिवार ने कभी स्वीकार नहीं किया। शादी के कुछ समय बाद ही अमित बीमार पड़ा और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पति के निधन के बाद पूजा अपनी मासूम बच्ची के साथ मायके आकर रहने लगी, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 13 मई को पूजा की भी बीमारी के चलते मौत हो गई। पिता के बाद मां की मौत ने बच्ची पंचमी को पूरी तरह बेसहारा कर दिया। इतना ही नहीं समाज की संवेदनहीनता का आलम यह रहा कि पूजा का शव एक दिन तक घर में पड़ा रहा. क्योंकि गांव वालों ने विवाह को सामाजिक मान्यता नहीं दी थी।
अंततः सामाजिक संगठनों के हस्तक्षेप और सहयोग से पूजा का अंतिम संस्कार तो किसी तरह संपन्न हो गया, लेकिन अब मासूम पंचमी अपने ननिहाल में नानी और छोटी मौसी राखी गोडसराय के भरोसे है। हालांकि, आर्थिक तंगी और पारिवारिक हालात ऐसे नहीं हैं कि बच्ची के पालन- पोषण की जिम्मेदारी आसानी से उठाई जा सके। बच्ची के इलाज के बाद अब सबसे बड़ा सवाल उसके भविष्य को लेकर खड़ा हो गया है।
लड़के पक्ष ने पहले ही पूजा और उसकी बेटी को अपनाने से इनकार कर दिया था। ऐसे में यह मामला न केवल पारिवारिक, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक संवेदनशीलता का भी है। बच्ची के स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर अब समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह आगे आकर सहायता करे, ताकि पंचमी को एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिल सके।
समाज को भी लेना होगा जिम्मेदार फैसला
पंचमी की कहानी उस गहरी सामाजिक विडंबना को उजागर करती है, जहां प्रेम विवाह को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है और महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। इस नन्हीं बच्ची के पास अब उम्मीद की किरण सिर्फ समाज, प्रशासन और संवेदनशील लोगों से ही बची है। यदि किसी सामाजिक संगठन, व्यक्ति या प्रशासनिक इकाई से मदद मिलती है, तो मासूम पंचमी का जीवन एक नई दिशा ले सकता है। जरूरत है तो सिर्फ एक संवेदनशील सोच और सहयोग की।