रांची: क्या सरकारी उपक्रम सिर्फ संविदा कर्मचारियों के सहारे चल सकता है?…आज सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले हैरानी जतायी। झारक्राफ्ट में खाली पड़े पदों पर सिर्फ संविदाकर्मी को रखने जाने के MOU पर आज झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने इस इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है। इस मामले में अदालत ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी है। अदालत ने पूछा है कि किन परिस्थितियों में झारक्राफ्ट ने सरकार के साथ ऐसा MOU किया गया। राज्य सरकार से इस पर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि क्या सरकारी उपक्रम सिर्फ संविदा कर्मचारियों के सहारे चल सकता है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभय मिश्रा ने बताया कि सभी कर्मचारी रिक्त पद पर झारक्राफ्ट में नियुक्त हुए थे। लेकिन सेवा के छह साल बाद अब झारक्राफ्ट सभी को संविदाकर्मी मान रहा, ऐसा करना संविधान के खिलाफ है। आपको बता दें कि प्रकाश रंजन सहित अन्य आठ कर्मियों की ओर से झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।

जवाब में झारक्राफ्ट के वकील ने कहा कि सरकार ने एमओयू में ऐसी शर्त लगाई गई थी, कि खाली पदों पर भी संविदा कर्मियों की नियुक्ति होगी। कभी स्थाई नियुक्ति नहीं होगी। इस पर एडवोकेट अभय कुमार मिश्रा ने इसका जोरदार विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान के विरुद्ध है। बोर्ड या निगम सरकारी उपक्रम होता है, ऐसे में इस तरह का समझौता कैसे किया जा सकता है।

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