सुप्रीम कोर्ट में महिला कर्मचारी को लेकर सुनाया बड़ा फैसला, निरीक्षक के खिलाफ रेप की FIR को कर दिया रद्द, जानिये कोर्ट ने क्या कहा…

Court News : सुप्रीम कोर्ट ने महिला कर्मचारी द्वारा लगाए गए शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के आरोप को निराधार मानते हुए आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर प्रतिशोध की भावना से दर्ज की गई थी और इसका उद्देश्य बाद में उत्पन्न हुए परिणामों का बदला लेना था।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दर्ज की गई एफआईआर और दायर चार्जशीट दोनों ही प्रतिशोध की भावना से प्रेरित थीं और इन्हें कायम रखना न्याय के हित में नहीं होगा।जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया।
इससे पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कार्यवाही जारी रखने का फैसला सुनाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि शिकायत दर्ज कराने का समय और परिस्थितियाँ संदेह पैदा करती हैं।
जानिये क्या है मामला?
यह पूरा मामला मध्य प्रदेश के एक नगर निगम में कार्यरत महिला कर्मचारी और उसके सहकर्मी, सहायक राजस्व निरीक्षक, के बीच विवाद से जुड़ा है। महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। शिकायत के अनुसार, यह संबंध 15 मार्च 2023 से अप्रैल तक जारी रहा।
महिला का आरोप था कि आरोपी पहले से शादीशुदा था और उसका एक बेटा भी था, इसके बावजूद उसने उससे शादी करने का झूठा वादा किया। जब महिला ने शादी के लिए दबाव डाला तो आरोपी ने इनकार कर दिया और उसे किसी और व्यक्ति से विवाह करने की सलाह दी। इसी के बाद महिला ने सहकर्मी के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया।
एफआईआर पर उठे सवाल
मामले में सबसे बड़ा सवाल एफआईआर दर्ज करने के समय को लेकर उठा। जांच में यह सामने आया कि आरोपी ने महिला के खिलाफ पहले कई शिकायतें की थीं, जिनमें आत्महत्या की धमकी देने और दुर्व्यवहार जैसे आरोप शामिल थे। इन शिकायतों के आधार पर नगर निगम प्रशासन ने महिला को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
नोटिस में साफ कहा गया था कि यदि महिला के आचरण में सुधार नहीं हुआ तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर नौकरी से निकाला जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया उसी नोटिस के बाद शुरू हुई, जिससे यह आशंका मजबूत होती है कि एफआईआर बदले की भावना से दर्ज कराई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “एफआईआर बाद में दर्ज की गई और यह आने वाले खतरनाक परिणामों का बदला लेने का साधन प्रतीत होती है।” कोर्ट ने माना कि इस तरह की परिस्थितियों में आपराधिक मुकदमे को जारी रखना न तो पीड़िता के हित में है और न ही आरोपी के।नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर दिया और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।